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Last Modified: उत्तरकाशी , गुरुवार, 16 नवंबर 2023 (19:34 IST)

Uttarakhand Tunnel Accident : 'बौखनाग देवता' का प्रकोप है उत्तराखंड का सुरंग हादसा? क्या कहते हैं स्थानीय लोग

Uttarakhand Tunnel Accident : 'बौखनाग देवता' का प्रकोप है उत्तराखंड का सुरंग हादसा? क्या कहते हैं स्थानीय लोग - Uttarakhand Tunnel Accident Boukhnag Devta
Uttarakhand Tunnel Accident :  यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर निर्माणाधीन सिलक्यारा सुरंग हादसे को स्थानीय लोग ‘बाबा बौखनाग देवता’ का प्रकोप होने का दावा कर रहे हैं जिनके मंदिर को दिवाली से कुछ दिन पहले निर्माण कंपनी ने तोड़ दिया था।
 
सुरंग के एक हिस्से के ढह जाने से उसके अंदर फंसे श्रमिकों को बाहर निकालने के लिए मंगलवार रात को मलबे को ड्रिल कर उसमें माइल्ड स्टील पाइप डालकर 'एस्केप टनल' बनाने के लिए ऑगर मशीन स्थापित की गई थी, लेकिन ड्रिलिंग शुरू होने के कुछ देर बाद ही ऊपर से भूस्खलन होने के कारण उसे रोकना पड़ा। बाद में ऑगर मशीन में भी खराबी आ गई थी।
 
मजदूरों को बाहर निकालने के सारे इंतजाम विफल होने पर बुधवार को निर्माण कंपनी के अधिकारियों ने बौखनाग देवता के पुजारी को बुलाकर उनसे क्षमा याचना की और उनसे पूजा संपन्न करवाई।
 
बौखनाग देवता के पुजारी गणेश प्रसाद बिजल्वाण ने सुरंग में पूजा अर्चना की तथा शंख बजाया। देवता की आरती करने के बाद उन्होंने सुरंग के चारों तरफ चावल फेकें और मजदूरों को बचाने के लिए किए जा रहे अभियान की सफलता के लिए प्रार्थना की।
 
बताया जा रहा है कि सुरंग के मुहाने पर बने बौखनाग मंदिर के टूटने के बाद स्थानीय लोग बौखनाग देवता के रुष्ट होने के कारण हादसा होने की आशंका जता रहे हैं। बौखनाग देवता को इलाके का रक्षक माना जाता है।
 
सुरंग ढहने के कारण 40 श्रमिक पिछले चार दिन से उसके अंदर फंसे हैं जिन्हें बाहर लाने के लिए देश भर के तमाम बड़े तकनीकी विशेषज्ञों से लेकर अत्याधुनिक मशीनों का सहारा लिया जा रहा है। सुरंग में मलबा गिरने की वजह से बचाव कार्य में दिक्कतें आ रही हैं।
 
सिलक्यारा गांव के निवासी 40 वर्षीय धनवीर चंद रमोला ने कहा, ‘‘परियोजना शुरू होने से पहले सुरंग के मुंह के पास एक छोटा मंदिर बनाया गया था और स्थानीय मान्यताओं को सम्मान देते हुए अधिकारी और मजदूर पूजा करने के बाद ही सुरंग के अंदर दाखिल होते थे। 
 
हांलांकि उन्होंने दावा किया कि कुछ दिन पहले निर्माण कंपनी प्रबंधन ने मंदिर को वहां से हटवा दिया और लोगों का मानना है कि इसी की वजह से यह हादसा हुआ है।
 
एक अन्य ग्रामीण राकेश नौटियाल ने कहा कि हमने निर्माण कंपनी से कहा था कि मंदिर को न तोड़ा जाए या ऐसा करने से पहले आसपास उनका दूसरा मंदिर बना दिया जाए।
 
नौटियाल ने कहा कि कंपनी वालों ने हमारी चेतावनी को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह हमारा अंधविश्वास है।
 
उन्होंने दावा किया कि पहले भी सुरंग में एक हिस्सा गिरा था लेकिन तब एक भी मजदूर नहीं फंसा और न ही किसी अन्य प्रकार का नुकसान हुआ।
 
पुजारी बिजल्वाण ने कहा कि उत्तराखंड देवताओं की भूमि है। किसी भी पुल, सड़क या सुरंग को बनाने से पहले स्थानीय देवता के लिए छोटा मंदिर बनाने की परंपरा है। इनका आशीर्वाद लेकर ही काम पूरा किया जाता है।
 
उन्होंने कहा कि उनका भी मानना है कि निर्माण कंपनी ने मंदिर को तोड़कर गलती की और इसी वजह से हादसा हुआ जिससे 40 श्रमिकों की जिंदगी संकट में फंस गई। एजेंसियां
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