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Last Updated :नई दिल्ली , मंगलवार, 19 मार्च 2024 (17:58 IST)

CAA को लेकर Supreme Court ने मोदी सरकार से मांगा जवाब, 200 से ज्यादा याचिकाएं हुईं दायर

स्टे लगाने से किया इंकार

CAA  को लेकर Supreme Court ने मोदी सरकार से मांगा जवाब, 200 से ज्यादा याचिकाएं हुईं दायर - supreme court seeks reply from center on caa within 3 weeks next hearing on april 9
supreme court seeks reply from center on caa within 3 weeks next hearing on april 9    सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सीएए (CAA) पर मंगलवार को नरेंद्र मोदी सरकार से जवाब मांगा है। CAA को लेकर कई याचिकाएं दायर की गई हैं। मामले पर 9 अप्रैल को अगली सुनवाई करेगा। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगाने से इंकार कर दिया है। इस पर रोक लगाने के लिए याचिकाएं दायर की गई थीं। सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पेटिशंस और एप्लीकेशंस का जवाब देने के लिए कोर्ट से समय मांगा था। याचिकाएं इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग और अन्य की ओर से दायर की गई थी। 
237 याचिकाएं : सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही थी। सीएए को लेकर कुल 237 याचिकाएं दायर की गई थीं।
जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सीएए लागू होने से किसी की नागरिकता नहीं जाने वाली है। याचिकाकर्ताओं के दिमाग में इसको लेकर पूर्वाग्रह डाला गया है।
सिब्बल बोले इतनी जल्दबाजी क्यों : कपिल सिब्बल ने कोर्ट में दलील दी कि अगर नागरिकता को लेकर प्रक्रिया शुरू कर दी गई तो फिर से वापस नहीं लिया जा सकता। उन्होंने कहा कि अगर अभी तक इंतजार किया गया है तो जुलाई में कोर्ट का फैसला आने तक इंतजार किया जा सकता है। आखिर इतनी जल्दबाजी क्या है? 

क्या कहा पीठ ने : पीठ ने सीएए अधिनियम और नियमों के तहत नागरिकता देने से केंद्र सरकार को रोकने का निर्देश देने की याचिकाकर्ताओं की गुहार ठुकराते हुए कहा, "हम कोई प्रथम दृष्टया विचार व्यक्त नहीं कर रहे हैं।"शीर्ष अदालत ने हालांकि, केंद्र सरकार को नोटिस जारी करके उसे अपना पक्ष तीन सप्ताह के भीतर रखने का निर्देश दिया।
 
पीठ के समक्ष केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील देते हुए जबाव के लिए चार सप्ताह का समय देने की गुहार लगाई। उन्होंने पीठ के समक्ष कहा, "दो सौ 37 याचिकाएं हैं। रोक (सीएए पर) लगाने की मांग करते हुए 20 आवेदन हैं। मुझे जवाब दाखिल करने के लिए समय चाहिए। अधिनियम (सीएए) किसी की नागरिकता नहीं छीनता है। याचिकाकर्ताओं के प्रति कोई पूर्वाग्रह नहीं है।”
 
दूसरी ओर, याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ताओं कपिल सिब्बल, इंदिरा जयसिंह और विजय हंसारिया ने चार सप्ताह का समय देने की केंद्र के अनुरोध का विरोध किया।
 
अधिवक्ताओं ने पीठ से बार -बार अनुरोध किया कि कहा कि वह सॉलीसीटर जनरल  मेहता से बयान देने को कहें कि इस बीच (याचिकाओं पर फैसला होने तक) किसी को नागरिकता नहीं दी जाएगी, क्योंकि एक बार नागरिकता मिलने के बाद पूरी प्रक्रिया अपरिवर्तनीय हो जाएगी और मामला निरर्थक हो जाएगा। इस पर सॉलिसिटर जनरल मेहता ने कहा, 'मैं कोई बयान नहीं देने जा रहा हूं।'
 
पीठ के समक्ष दलील देते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता सिब्बल और जयसिंह ने कहा कि पहले जब शीर्ष अदालत ने 22 जनवरी 2020 को मामले में केंद्र को नोटिस जारी किया था तो उसने रोक के सवाल पर विचार नहीं किया था, क्योंकि तब तक सीएए संबंधी कोई नियम अधिसूचित नहीं किया गया था।
 
श्री सिब्बल ने कहा, "चार साल बाद 11 मार्च को अधिसूचना जारी की गई। अगर किसी को नागरिकता मिलती है तो वह अपरिवर्तनीय होगी। आप इसे वापस नहीं ले सकते। यह निष्फल हो जाएगी।"
 
वरिष्ठ अधिवक्ता जयसिंह ने भी कहा कि जब तक अदालत इस मामले की सुनवाई नहीं कर लेती तब तक इस (सीएए) पर रोक लगाई जानी चाहिए।
 
याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ताओं की ओर से बार-बार दलील देने पर पीठ ने कहा कि नागरिकता देने के लिए बुनियादी ढांचा अभी तक तैयार नहीं हुआ है।
 
अधिवक्ता निज़ामुद्दीन पाशा ने पीठ के समक्ष कहा कि असम का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा वहां राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) प्रक्रिया से 19 लाख लोगों को बाहर रखा गया और अब मुसलमानों को छोड़कर वे सभी नागरिकता के लिए आवेदन दायर कर सकते हैं, जिस पर कार्रवाई की जा सकती है। शीर्ष अदालत ने इस मामले में भी विचार करने का फैसला किया। याचिकाकर्ताओं की दलीलें सुनने के बाद पीठ ने केंद्र को नोटिस जारी करते हुए मामले को नौ अप्रैल के लिए सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया।
 
 शीर्ष अदालत ने 15 मार्च को इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग का पक्ष रख रहे श्री सिब्बल की शीघ्र सुनवाई की गुहार स्वीकार करते हुए मामले को 19 मार्च के लिए सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया था।
 
याचिका में अदालत से केंद्र सरकार को यह निर्देश देने की गुहार लगाई गई है कि मौजूदा रिट याचिका पर फैसला आने तक किसी भी धर्म या संप्रदाय के सदस्य के खिलाफ कोई कठोर कार्रवाई नहीं हो सकती।
 
याचिका में केंद्र सरकार को आदेश देने की गुहार लगाई है कि नागरिकता संशोधन नियम 2024 और संबंधित कानूनों यानी नागरिकता अधिनियम 1955, पासपोर्ट अधिनियम 1920, विदेशी अधिनियम 1946 और उनके तहत बनाए गए किसी भी नियम या आदेश के तहत किसी पर भी कठोर कार्रवाई नहीं की जा सकती है।
 
सीएए में उन व्यक्तियों को नागरिकता देने का प्रस्ताव है, जो अफगानिस्तान, बंगलादेश या पाकिस्तान देशों के हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी या ईसाई समुदाय के अवैध प्रवासी हैं और 31 दिसंबर 2014 को या उससे पहले भारत में प्रवेश किया था।  इनपुट एजेंसियां 
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