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Last Updated :नई दिल्ली , सोमवार, 18 मार्च 2024 (20:33 IST)

Electoral Bonds पर सोशल मीडिया पोस्ट से गुस्साए CJI चंद्रचूड़, कहा- हमारे कंधे काफी चौड़े

Electoral Bonds पर सोशल मीडिया पोस्ट से गुस्साए CJI चंद्रचूड़, कहा- हमारे कंधे काफी चौड़े - Our shoulders broad enough : SC on social media commentary after Electoral Bonds order
Electoral Bonds : चुनावी बॉन्ड संबंधी मामलों पर सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बाद उसे ‘शर्मिंदा’ करने के इरादे से सोशल मीडिया पर शेयर की गई पोस्ट का मामला उठाए जाने पर शीर्ष अदालत ने कहा कि एक संस्था के रूप में ‘हमारे कंधे काफी चौड़े’ हैं।
 
चुनावी बॉन्ड मामले की सुनवाई कर रही 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ की अगुवाई कर रहे प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि जब कोई अदालत फैसला सुनाती है तो वह निर्णय चर्चा के लिए राष्ट्र की संपत्ति बन जाता है। पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत की चिंता केवल अपने 15 फरवरी के फैसले में दिए गए निर्देशों को लागू करने को लेकर है।
संविधान पीठ ने 15 फरवरी को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए केंद्र की चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया था और इसे ‘असंवैधानिक’ करार देते हुए निर्वाचन आयोग को चंदा देने वालों, चंदे के रूप में दी गई राशि और प्राप्तकर्ताओं का 13 मार्च तक खुलासा करने का आदेश दिया था।
 
उसने निर्देश दिया था कि भारतीय स्टेट बैंक (SBI) 12 अप्रैल, 2019 से आज तक खरीदे गए चुनावी बॉन्ड का विवरण निर्वाचन आयोग को सौंपे।
 
कोर्ट ने 11 मार्च को एसबीआई को बड़ा झटका देते हुए चुनावी बॉन्ड संबंधी जानकारी का खुलासा करने के लिए समय-सीमा बढ़ाने का अनुरोध करने वाली उसकी याचिका खारिज कर दी थी और उससे पूछा था कि उसने अदालत के निर्देश के अनुपालन के लिए क्या कदम उठाए हैं।
 
कोर्ट ने सोमवार को एसबीआई को पुन: फटकार लगाते हुए उसे मनमाना रवैया न अपनाने और 21 मार्च तक चुनावी बॉन्ड योजना से संबंधित सभी जानकारियों का ‘पूरी तरह खुलासा’ करने को कहा।
 
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सोमवार को सुनवाई के दौरान कहा कि मैं कुछ साझा करना चाहता हूं और अदालत के बाहर हो रही इस चीज को बहुत कष्ट के साथ देख रहा हूं। माननीय न्यायाधीश एक तरह से अलग-थलग रहकर काम करते हैं। आप एकांत में काम करते हैं। मैं यह नकारात्मक संदर्भ में नहीं कह रहा, लेकिन हमें यहां जो चीजें पता चलती है, वे माननीय न्यायाधीशों को कभी पता नहीं चलतीं।’’
 
उन्होंने कहा कि केंद्र का तर्क यह था कि वे काले धन पर अंकुश लगाना चाहता था और शीर्ष अदालत ने इस मामले पर अपना फैसला सुनाया।
उन्होंने कहा कि हममें से हर कोई जानता है कि न्यायालय के निर्णय और निर्देशों के जरिए माननीय न्यायाधीशों ने किसी को निशाना बनाने की कोशिश नहीं की लेकिन किसी अन्य स्तर पर निशाना बनाने की कोशिश शुरू हो गई है, यह सरकारी स्तर पर नहीं है।
मेहता ने कहा कि एसबीआई की अर्जी पर 11 मार्च को सुनवाई के दौरान अदालत ने स्थिति को स्पष्ट किया, ‘‘लेकिन सबसे गंभीर चीजें इसके बाद घटीं। अदालत के सामने मौजूद लोगों ने अदालत को जान-बूझकर शर्मिंदा करने के लिए प्रेस साक्षात्कार देने शुरू कर दिए और इस खेल में समान अवसर नहीं हैं। इस तरफ से, कोई भी इसका खंडन नहीं कर सकता। न तो सरकार ऐसा कर सकती है, न ही एसबीआई ऐसा कर सकती है। कोई और भी ऐसा नहीं कर सकता।’’
 
उन्होंने कहा कि तथ्यों को तोड़-मरोड़कर और अन्य आंकड़ों के आधार पर किसी भी तरह की पोस्ट साझा की जा रही हैं। मैं जानता हूं कि माननीय न्यायाधीश इन पर नियंत्रण नहीं कर सकते। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि सरकार को केवल फैसले में जारी निर्देशों को लागू करने की चिंता होती है।
 
उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों के रूप में हम संविधान के अनुसार निर्णय लेते हैं। हम कानून के शासन के अनुसार काम करते हैं। हम सोशल मीडिया और प्रेस में टिप्पणियों का विषय भी बनते हैं लेकिन निश्चित रूप से, एक संस्था के रूप में हमारे कंधे काफी चौड़े हैं।
 
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि हमारी अदालत को उस राजनीति में एक संस्थागत भूमिका निभानी है जो संविधान और कानून के शासन द्वारा शासित होती है। हमारा यही एकमात्र काम है।
उन्होंने कहा कि एक बार जब अदालत फैसला सुना देती है, तो यह निर्णय देश की संपत्ति बन जाता है जिस पर बहस हो सकती है।
 
मेहता ने कहा कि उनका उद्देश्य शीर्ष अदालत को यह सूचित करना था कि ‘‘कुछ और ऐसा चल रहा है’’ जो न तो न्यायालय का इरादा था और न ही इस योजना का इरादा था। भाषा
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