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Last Modified: बुधवार, 14 मई 2025 (15:38 IST)

सुप्रीम कोर्ट का सवाल, महिलाएं राफेल उड़ा सकती है तो कानूनी शाखा में उनकी संख्या सीमित क्यों?

supreme court
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सेना की जज एडवोकेट जनरल (जेएजी-विधि) शाखा में 50-50 चयन मानदंड पर सवाल उठाते हुए केंद्र से पूछा कि यदि भारतीय वायुसेना में कोई महिला राफेल लड़ाकू विमान उड़ा सकती है तो सेना की जेएजी शाखा के लैंगिक रूप से तटस्थ पदों पर कम महिला अधिकारी क्यों हैं?
 
न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ ने 8 मई को 2 अधिकारियों अर्शनूर कौर और आस्था त्यागी की याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। याचिकाकर्ताओं ने अपने कई समकक्षों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन कर क्रमश: चौथा और पांचवां स्थान प्राप्त किया था लेकिन महिलाओं के लिए कम रिक्तियां निर्धारित होने के कारण जेएजी विभाग के लिए उनका चयन नहीं किया गया।
 
अधिकारियों ने पुरुषों और महिलाओं के लिए असंगत रिक्तियों को चुनौती देते हुए कहा था कि उनका चयन नहीं किया जा सका क्योंकि कुल छह पदों में से महिलाओं के लिए केवल तीन रिक्तियां थीं। पीठ ने अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए कहा कि हम याचिकाकर्ता अर्शनूर कौर द्वारा प्रस्तुत मामले से प्रथम दृष्टया संतुष्ट हैं।
 
शीर्ष अदालत ने कहा कि हम प्रतिवादियों को निर्देश देते हैं कि जज एडवोकेट जनरल (जेएजी) के रूप में नियुक्ति के लिए अगले उपलब्ध प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में उन्हें शामिल करने के उद्देश्य से जो भी कार्रवाई आवश्यक है, उसे शुरू किया जाए।
 
पीठ ने एक समाचार पत्र के लेख का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि एक महिला लड़ाकू पायलट राफेल विमान उड़ाएगी। उसने कहा कि ऐसी स्थिति में उसे युद्ध बंदी बनाए जाने का खतरा है।
 
न्यायमूर्ति दत्ता ने केंद्र और सेना की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी से कहा कि अगर भारतीय वायुसेना में एक महिला का राफेल लड़ाकू विमान उड़ाना स्वीकार्य है तो सेना के लिए जेएजी में अधिक महिलाओं को शामिल करने की अनुमति देना इतना मुश्किल क्यों है?
 
पीठ को बताया गया कि कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान दूसरी याचिकाकर्ता त्यागी भारतीय नौसेना में शामिल हो गईं। इसके बाद शीर्ष अदालत ने पदों के लैंगिक आधार पर तटस्थ होने का दावा करने के बावजूद महिलाओं के लिए सीमित पद निर्धारित करने के लिए केंद्र से सवाल किया। भाटी ने कहा कि जेएजी शाखा सहित सेना में महिला अधिकारियों की भर्ती और नियुक्ति एक प्रगतिशील प्रक्रिया है।
 
उन्होंने कहा कि 2012 से 2023 तक 70:30 (या अब 50:50) के अनुपात में पुरुष और महिला अधिकारियों की भर्ती की नीति को भेदभावपूर्ण एवं मौलिक अधिकारों का हनन कहना न केवल गलत होगा बल्कि यह कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र का भी अतिक्रमण होगा जो भारतीय सेना में पुरुष एवं महिला अधिकारियों की भर्ती के बारे में निर्णय लेने के लिए एकमात्र सक्षम प्राधिकारी है।
 
शीर्ष अदालत ने सवाल किया कि पदों को लैंगिक रूप से तटस्थ क्यों बताया गया है जबकि रिक्तियां लैंगिकता के आधार पर विभाजित होने के कारण उच्च योग्यता वाली महिला उम्मीदवारों को शामिल नहीं किया जा सका।
 
न्यायमूर्ति मनमोहन ने कहा कि यदि 10 महिलाएं योग्यता के आधार पर जेएजी के लिए योग्य हैं तो क्या उन सभी को जेएजी शाखा की अधिकारी के रूप में नियुक्त किया जाएगा। पीठ ने कहा कि लैंगिक तटस्थता का मतलब 50:50 का अनुपात नहीं है बल्कि इसका मतलब यह है कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई किस लिंग से है।
 
भाटी ने केंद्र के फैसले का बचाव करते हुए कहा कि श्रम बल आकलन और आवश्यकता के आधार पर सेना की सभी शाखाओं में लिंग-विशिष्ट रिक्तियां मौजूद हैं। भाटी ने कहा कि रक्षा सेवाओं में लैंगिक एकीकरण एक विकासशील प्रक्रिया है और यह समय-समय पर समीक्षा एवं अध्ययन का विषय है। (भाषा)
edited by : Nrapendra Gupta
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