नई दिल्ली। वलयाकार सूर्य ग्रहण देखने की चाहत रखने वाले लोगों को आसमान में छाए बादलों ने दिल्ली सहित कुछ अन्य राज्यों में निराश किया और वे यह खगोलीय घटना स्पष्ट रूप से नहीं देख पाए। वलयाकार सूर्य ग्रहण में सूर्य ‘अग्नि वलय’ जैसा नजर आता है। दिल्ली में सूर्य ग्रहण सुबह 10 बज कर 19 मिनट पर शुरू होकर दोपहर एक बजकर 58 मिनट तक रहा। भौगोलिक स्थिति के कारण देश के अन्य राज्यों में इसके समय में थोड़ा अंतर रहा।
दिल्ली में नेहरू तारामंडल की निदेशक एन रत्नाश्री ने कहा कि यहां बादलों के कारण सूर्य ग्रहण की दृश्यता बाधित हुई। रविवार सुबह वलयाकार सूर्य ग्रहण को देश के उत्तरी हिस्से के कुछ क्षेत्रों में ही देखा जा सका, जिनमें राजस्थान, हरियाणा और उत्तराखंड के इलाके शामिल हैं।
देश के शेष हिस्सों में सूर्य ग्रहण आंशिक रूप से देखा गया। कोरोनावायरस वैश्विक महामारी के मद्देनजर सामाजिक दूरी के नियमों के कारण भी सूर्य ग्रहण देखने का मजा किरकिरा हुआ। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में सूर्य ग्रहण देखने के लिए लोगों ने तरह-तरह के इंतजाम किए थे, लेकिन राज्य के अनेक हिस्सों में कल रात से शुरू हुई बारिश और दिनभर बादल छाए रहने की वजह से ज्यादातर लोग यह दुर्लभ खगोलीय घटना नहीं देख सके।
इंदिरा गांधी तारामंडल के राज्य परियोजना समन्वयक अनिल यादव ने बताया कि लखनऊ में सूर्य ग्रहण पूर्वाह्न 9:27 पर शुरू हुआ था और यह अपराहन 2:02 तक रहा। मगर आसमान में बादल छाए रहने की वजह से लोग इस खगोलीय घटना को नहीं देख सके। दिन में करीब 1:00 बजे कुछ वक्त के लिए सूर्य ग्रहण नजर आया जिसे बमुश्किल 100-150 लोग ही देख पाए।
हरियाणा के कुरुक्षेत्र में सूर्य ग्रहण के मौके पर रविवार को ब्रह्म सरोवर के तट पर सिर्फ सामान्य धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किया गया। प्रशासन ने कोरोनावायरस महामारी की वजह से इस बार के सूर्य ग्रहण के मौके पर कोई मेला आयोजित नहीं करने का निर्णय किया था।
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, सूर्य ग्रहण के दौरान कुरुक्षेत्र के पवित्र सरोवर में स्नान शुभ माना जाता है।उत्तराखंड में कई जगह लोगों ने सूर्य ग्रहण देखा, जबकि देहरादून और टिहरी में लोगों ने वलयाकार ग्रहण देखने का भी दावा किया। सूर्य ग्रहण के दौरान चारधाम सहित समस्त मंदिरों के कपाट बंद रहे।
चारों धामों, बदरीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री, सहित प्रदेश के सभी प्रमुख मंदिरों के कपाट सूर्य ग्रहण शुरू होने से पहले सूतक काल लगते ही शनिवार रात करीब साढ़े दस बजे बंद कर दिए गए जिन्हें रविवार को ढाई बजे दोबारा खोला गया।
कोरोनावायरस महामारी के कारण लागू पाबंदियों के चलते सूर्य ग्रहण देखने के लिए कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु स्थित जवाहरलाल नेहरू तारामंडल में इस साल कोई इंतजाम नहीं किया गया। बेंगलुरु में जारी एक बयान में अधिकारियों ने कहा कि सूर्य ग्रहण ऑनलाइन दिखाने के इंतजाम किए थे।
अहमदाबाद में एक अधिकारी ने बताया कि गुजरात में सूर्य ग्रहण 72 प्रतिशत दिखा। हालांकि आसमान में बादल छा जाने और बारिश ने राज्य के कुछ हिस्सों में इस खगोलीय घटना को देखे जाने में खलल डाला। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पर गुजरात परिषद ने इस अवसर पर छात्रों एवं अन्य के लिए विशेष इंतजाम किए थे।
परिषद के सलाहकार नरोत्तम साहू ने कहा, कोविड-19 महामारी के कारण कोई बड़ा आयोजन नहीं किया गया। सीमित कार्यक्रम ही आयोजित किए गए।गोवा में मॉनसून के घने बादलों के कारण कई स्थानों पर लोग स्पष्ट रूप से सूर्य ग्रहण नहीं देख पाए।
एसोसिएशन ऑफ फ्रेंड्स ऑफ एस्ट्रोनॉमी के पूर्व अध्यक्ष अतुल नाइक ने कहा कि पणजी स्थिति वेधशाला लॉकडाउन की पाबंदियों के कारण बंद है। इस कारण कई लोगों ने अपने घरों से यह घटना देखी। तमिलनाडु के ज्यादातर इलाकों में आसमान में बादल छाए रहने के कारण आंशिक सूर्य ग्रहण ही दिख सका। हालांकि कई लोगों ने इस घटना की तस्वीरें लीं और उन्हें सोशल मीडिया पर साझा किया।
इंदिरा गांधी परमाणु अनुसंधान केंद्र, कलपक्कम, के रिमोट हैंडलिंग एंड इरैडिएशन एक्सपेरीमेंट्स डिविजन के प्रमुख एस. जोसेफ विंस्टन ने कहा, हमने दोपहर तक इस खगोलीय घटना को रिकॉर्ड किया, लेकिन बाद में आसमान में बादल छा जाने के कारण हम स्पष्ट नजारा नहीं देख सकें।दुनिया के जिन अन्य हिस्सों में पूर्ण सूर्य ग्रहण दिखा, वे कांगो, सूडान, इथियोपिया, यमन, सऊदी अरब, ओमान, पाकिस्तान और चीन हैं।
सूर्य ग्रहण अमावस्या के दिन होता है, जब चंद्रमा, पृथ्वी और सूर्य के बीच में आ जाता है और जब ये तीनों खगोलीय पिंड एक रेखा में होते हैं। वलयाकार सूर्य ग्रहण तब होता है, जब चंद्रमा का कोणीय व्यास सूर्य से कम हो जाता है जिससे चंद्रमा सूर्य को पूरी तरह से नहीं ढंक पाता है।
इसके परिणामस्वरूप, चंद्रमा के चारों ओर सूर्य का बाहरी हिस्सा दिखता रहता है, जो एक वलय का आकार ले लेता है। यह ‘अग्नि-वलय’ की तरह दिखता है।(भाषा)