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Last Updated : शनिवार, 20 जुलाई 2019 (22:54 IST)

2012 में पद छोड़ना चाहती थीं शीला दीक्षित, निर्भया कांड ने फिर बदला मन

Sheila Dikshit। 2012 में पद छोड़ना चाहती थीं शीला दीक्षित, निर्भया कांड ने फिर बदला मन - Sheila Dikshit wanted to quit in 2012
नई दिल्ली। शीला दीक्षित की 2012 की सर्दियों में दूसरी एंजियाप्लास्टी हुई थी और उनका परिवार चाहता था कि वे राजनीति छोड़ दें। लेकिन तब 16 दिसंबर सामूहिक बलात्कार की बर्बर घटना हुई जिसके बाद उन्होंने मन बनाया कि वे मैदान छोड़कर नहीं भागेंगी।
 
दीक्षित द्वारा थकान और सांस लेने में परेशानी की शिकायत करने के बाद चिकित्सकों ने इस बात की पुष्टि की कि उनकी दाहिनी धमनी में 90 प्रतिशत रुकावट है और वे एंजियाप्लास्टी की प्रक्रिया से गुजरीं।
 
दीक्षित ने पिछले वर्ष प्रकाशित अपनी जीवनी 'सिटीजन दिल्ली : माई टाइम्स, माई लाइफ' में लिखा कि मेरे परिवार ने मुझसे कहा था कि मुझे अपनी स्वास्थ्य चिंताओं को अन्य चीजों से ऊपर रखना होगा। मेरे इस्तीफे का निर्णय लगभग तय था। इसके अलावा विधानसभा चुनाव में 1 वर्ष का समय था और पार्टी को एक विकल्प खोजने का पर्याप्त समय था।
 
यद्यपि जैसे ही उनके स्वास्थ्य में सुधार हुआ और वे पद छोड़ने के अपने निर्णय से पार्टी आलाकमान को सूचित करने वाली थीं। देश में 16 दिसंबर 2012 को एक लड़की से चलती बस में सामूहिक बलात्कार की घटना हो गई। बाद में मीडिया ने उस लड़की का नाम 'निर्भया' रख दिया।
 
दीक्षित ने लिखा कि निर्भया घटना के बाद मैं पसोपेश में थी। मेरा परिवार जिसने मुझे उस समय के दौरान दिक्कत में देखा था, मुझसे पद छोड़ने का आग्रह किया जैसी कि पहले योजना थी। यद्यपि मैं महसूस कर रही थी कि ऐसा कदम मैदान छोड़कर भागने के तौर पर देखा जाएगा। केंद्र नहीं चाहता था कि दोष सीधा उस पर पड़े और मैं यह अच्छी तरह से जान रही थी कि हमारी सरकार पर विपक्ष द्वारा आरोप लगाया जाएगा, मैंने उसका सामना करने का निर्णय किया। किसी को तो आरोप स्वीकार करने थे।
 
घटना से दीक्षित बेहद दु:खी थीं। उन्होंने लिखा कि मैंने तत्काल दिल्ली सरकार और पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों को बुलाया ताकि स्थिति का आकलन कर सकूं। वे उन लोगों के साथ एकजुटता दिखाने के लिए जंतर-मंतर भी गईं, जो वहां एकत्रित हुए थे।
 
उन्होंने लिखा कि मैं जब जंतर-मंतर पहुंचीं तो मैंने अपनी मौजूदगी के खिलाफ कुछ विरोध महसूस किया लेकिन जब मैंने 'निर्भया' के लिए मोमबत्ती जलाई तो किसी ने भी मेरे खिलाफ नहीं बोला। (भाषा)
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