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Written By वेबदुनिया न्यूज डेस्क
Last Updated : मंगलवार, 4 मई 2021 (09:49 IST)

Right to health : क्या हैं मरीजों के स्वास्थ्य से जुड़े अधिकार?

Right to health : क्या हैं मरीजों के स्वास्थ्य से जुड़े अधिकार? - Right to health in India
विश्व में किसी भी राष्ट्र की सबसे बड़ी जिम्मेदारी होती है अपने नागरिकों की रक्षा करना। चाहे वो किसी सैन्य आक्रमण से हो या कोरोना जैसी महामारी से। जीवन का अधिकार सबसे मूलभूत और आवश्यक अधिकार है, इसके बिना किसी राष्ट्र या नागरिक का अस्तित्व असंभव है। स्वस्थ्य जीवन के लिए हर लोकतांत्रिक देश में चिकित्सा को सर्वसुलभ कराना हर सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता होती है।

भारत में भी संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत राइट टू हेल्थ मौलिक अधिकार है, मतलब भारतीय संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत जो जीवन का अधिकार है इसके तहत सस्ते इलाज की व्यवस्‍था होनी चाहिए। राइट टू हेल्थ में इलाज आम लोगों की जेब के दायरे में होना चाहिए। ऐसे में सरकार की जिम्मेदारी है कि वह आम लोगों के लिए सस्ते इलाज की व्यवस्था करे। राज्य की ये भी जिम्मेदारी है कि सरकार और स्थानीय एडमिनिस्ट्रेशन की तरफ से चलाए जाने वाले अस्पतालों की संख्या ज्यादा से ज्यादा बढ़ाई जाए और इसकी व्यवस्था की जाए।

विडंबना है कि 21वीं सदी के 'नए भारत' में इस समय अनेक नागरिक इस समय इस मौलिक अधिकार से वंचित हैं। लोग अस्पतालों के बाहर मर रहे हैं, जीवन रक्षक दवाइयां या तो मिल ही नहीं रही हैं या उनकी बेहद ऊंचे दामों पर कालाबाजारी की जा रही है। ऑक्सीजन की किल्लत से बड़े अस्पताल भी मरीजों को भर्ती कर पाने में असमर्थ हैं। देश की राजधानी दिल्ली के श्मशानों में चिताओं के जलने का दुखद सिलसिला अनवरत जारी है।

क्या करना चाहिए सरकार को :  गौरतलब है कि इस समय कोविड या अन्य इलाज बेहद महंगा हो चुका है और अब तो यह आम आदमी के लिए इतना महंगा हो चुका है कि इलाज करवाने के लिए लोगों को अपनी जीवनभर की बचत या संपतियां बेचना पड़ रही हैं। अब सवाल यह आता है कि इस स्थिति पर कैसे नियंत्रण किया जाए। 
 
उल्लेखनीय है कि ऐसे स्थितियों के लिए केंद्र, राज्य सरकार यहां तक की स्थानीय प्रशासन राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन कानून (नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट)  के तहत प्रावधान का इस्तेमाल कर प्राइवेट अस्पतालों में इलाज के एवज में लिए जाने वाले चार्ज व जीवन रक्षक दवाइयों, उपकरणों पर कैप लगा सकते हैं।
 
कोविड से बहुत पहले 2018 में ही देश में मरीज़ों के अधिकारों के संबंध में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक चार्टर जारी किया था, जिसमें मरीजों के 17 अधिकार बताए गए थे। 
 
क्या हैं मरीजों के स्वास्थ्य से जुड़े अधिकार?
 
1. स्वास्थ्य संबंधी हर सूचना आप डॉक्टर या अस्पताल से ले सकते हैं।
 
2. अपने स्वास्थ्य और इलाज संबंधी रिकॉर्ड्स और रिपोर्ट्स पा सकते हैं।
 
3. इमरजेंसी हालत में पूरा या एडवांस भुगतान किए बगैर आपको इलाज से मना ​नहीं किया जा सकता।
 
4. आपकी सेहत के बारे में अस्पताल/डॉक्टर को गोपनीयता/निजता रखना होगी व अच्छा सलूक करना होगा।
 
5. आपके साथ किसी तरह का भेदभाव नहीं किया जा सकता।
 
6. मानकों के हिसाब से इलाज में क्वालिटी और सुरक्षा आपको मिलना चाहिए।
 
7. आप इलाज के दूसरे उपलब्ध विकल्प चुन सकते हैं।
 
8. आप सेकंड ओपिनियन लेने के लिए स्वतंत्र हैं।
 
9. इलाज की दरों और सुविधाओं को लेकर पारदर्शिता अस्पतालों/डॉक्टरों को बरतना चाहिए।
 
10. आप दवाएं या टेस्ट के लिए अपने हिसाब से स्टोर या संस्था का चयन कर सकते है।
 
11. गंभीर रोगों के इलाज से पहले आपको उसके खतरों, प्रक्रियाओं और अंजाम बताकर मरीज़ की मंज़ूरी ज़रूरी। 
12. आपको व्यावसायिक हितों से परे ठीक से रेफर या ट्रांसफर किए जाना चाहिए।
 
13. बायोमेडिकल या स्वास्थ्य शोध में शामिल लोगों से सुरक्षा आपको मिलना चाहिए।
 
14. क्लीनिकल ट्रायल में शामिल मरीज़ों से आपको सुरक्षित रखा जाना चाहिए।
 
15. बिलिंग प्रोसेस की वजह से डिस्चार्ज या शव सौंपने को अस्पताल टाल नहीं सकता।
 
16. मरीज़ को आसान भाषा में स्वास्थ्य और इलाज के बारे में शिक्षित करना चाहिए।
 
17. आपकी शिकायतें सुनकर उसका निवारण अस्पताल/डॉक्टर को करना चाहिए।

क्या कहता है सुप्रीम कोर्ट : एसोसिएशन ऑफ़ मेडिकल सुपरस्पेशलिटी एस्पिरेंट्‍स एवं रेसिडेंट्स बनाम भारत संघ के मामले में (2019) 8 SCC 607 में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह कहा गया था कि भारत के संविधान का अनुच्छेद 21, प्रत्येक व्यक्ति के जीवन के अधिकार की रक्षा के लिए राज्य पर एक दायित्व को लागू करता है। मानव जीवन का संरक्षण इस प्रकार सर्वोपरि है।
 
इसी मामले में आगे कहा गया कि राज्य द्वारा संचालित सरकारी अस्पताल और उसमें कार्यरत चिकित्सा अधिकारी मानव जीवन के संरक्षण के लिए चिकित्सा सहायता देने के लिए बाध्य हैं। अब सवाल यह है कि क्या इस समय उल्लेखित अधिकारों का लाभ लोगों को मिल रहा है? जब इन अधिकारों की सबसे ज्यादा जरूरत है तब देश में बहुत से नागरिक इनसे वंचित क्यों हैं?

आपदा से ज्यादा खतरनाक है पॉलिसी पैरालिसिस : उल्लेखनीय है कि कोरोना महामारी की शुरूआत में (2020) आरटीपीसीआर जांच की बात करें तो प्रारंभ में इसके लिए अधिकतम 4500 निर्धारित थे, लेकिन वर्तमान में राज्यों को यह अधिकार दे दिया गया है कि वे निजी प्रयोगशालाओं से बातचीत करके आपसी सहमति से जांच की कीमत तय करें। अब कोरोना की कई जांचों का शुल्क कम किया गया है जो राज्यों में अलग-अलग दरों से निर्धारित है।

इसके अलावा सरकार की सबसे अहम स्वास्थ्य योजनाओं में से एक आयुष्मान भारत योजना कोविड-19 से जंग में बेहद प्रभावी साबित हो रही है। इस योजना के तहत आने वालों के लिए इस बीमारी की जांच व इलाज निशुल्क है। लेकिन इस समय निजी अस्पतालों में यह सुविधा गरीब या मध्यमवर्गीय मरीजों को नहीं मिल रही। यहां तक की अस्पताल कैशलेस बीमा भी स्वीकार नहीं कर रहे हैं और केंद्र या राज्यों की तरफ से इस पर देर से ध्यान दिया गया और आदेश के बाद अभी भी मरीजों को यह सुविधा मिलने में दिक्कतें आ रही हैं।

पिछले लॉक डाउन से मिली आलोचना से घबराई केंद्र सरकार कड़े निर्णय लेने में हिचक रही है। इस समय केंद्र द्वारा राज्यों, राज्यों द्वारा जिला क्राइसिस मैंनेजमेंट कमेटी को परिस्थिति अनुसार निर्णय लेने के अधिकारों की 'वॉली' चल रही है। इस समय लोगों को मरने से बचाने के लिए कड़े और ठोस कदम उठाने की अत्यंत आवश्यकता है।
 
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