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Last Updated : रविवार, 23 जनवरी 2022 (17:34 IST)

दस साल की उम्र में शादी, 18 स्‍कूल खोले, प्‍लेग से गई जान, ऐसी थी महिलाओं को Right to education दिलाने वाली सावित्रीबाई फुले की कहानी

दस साल की उम्र में शादी, 18 स्‍कूल खोले, प्‍लेग से गई जान, ऐसी थी महिलाओं को Right to education दिलाने वाली सावित्रीबाई फुले की कहानी - Right to education, savitri bai fuley, savitri bai fule, social worker
देश की पहली महिला शिक्षिका और समाज सावित्रीबाई फुले की 3 जनवरी को 190वीं जयंती गई है। जिन्होंने अपना जीवन सिर्फ लड़कियों को पढ़ाने और समाज को ऊपर उठाने में लगा दिया। सावित्रीबाई फुले एक दलित परिवार में पैदा हुई थीं। लेकिन तब भी उनका लक्ष्य यही रहा कि किसी के साथ भेदभाव ना हो और सभी को पढ़ने का अवसर मिले।

सावित्रीबाई फुले, भारत की पहली महिला शिक्षक, कवियत्री, समाजसेविका जिनका लक्ष्य लड़कियों को शिक्षित करना रहा। सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 में महाराष्ट्र में हुआ था।

उनका जन्म सतारा के एक छोटे गांव में हुआ था। सावित्रीबाई फुले की पिता का नाम खन्दोजी नेवसे और माता का नाम लक्ष्मी था। 10 साल की उम्र में उनकी शादी कर दी गई थी।

सावित्रीबाई फुले के पति तब तीसरी कक्षा में थे जिनकी उम्र 13 साल थी। शादी के बाद सावित्रीबाई ने अपने पति ज्योतिबा फुले की मदद से शिक्षा हासिल की थी। उनके पति एक दलित चिंतक और समाज सुधारक थे।

17 साल की छोटी सी उम्र में ही सावित्रीबाई ने लड़कियों को शिक्षित करना शुरू किया था। सावित्रीबाई ने लड़कियों के लिए पहला स्कूल 1848 में खोला।

सावित्रीबाई ने लड़कियों के लिए कुल 18 स्कूल खोले। बता दें कि उन्होंने अठारहवां स्कूल भी पुणे में ही खोला था। सावित्रीबाई हर जाति जिसे समाज पढ़ाई-लिखाई के काबिल नहीं समझता था। उन सभी तबकों की लड़कियों को शिक्षित किया। इसलिए उन्हें भारत की पहली महिला अध्यापिका कहा जाता है।

सावित्रीबाई फुले दो साड़ियों के साथ स्कूल जाती थीं, एक पहनकर और एक झोले में रखकर। क्योंकि रास्ते में जो लोग रहते थे उनका मानना था कि शूद्र-अति शूद्र को पढ़ने का अधिकार नहीं है। इस दौरान रास्ते में सावित्रीबाई पर गोबर फेंका जाता था। जिसकी वजह से कपड़े पूरी तरह से गंदे हो जाते और बदबू मारने लगते।

स्कल पहुंचकर सावित्रीबाई अपने झोले में लाई दूसरी साड़ी को पहनती और फिर बच्चों को पढ़ाना शुरू करतीं। ये सिलसिला चलता रहा। लेकिन बाद में उन्होंने खुद के स्कूल खोलना शुरू कर दिया जिसका मुख्य लक्ष्य दलित बच्चियों को शिक्षित करना था।

1897 में प्लेग महामारी के चपेट में भारत के कई हिस्से का चुके थे। सावित्रीबाई फुले प्रभावित जगहों पर पीड़ितों की सहायता के लिए जाती थी। जबकि वे खुद भी इस महामारी की चपेट में आ सकती हैं।

पीड़ित बच्चों की देखभाल के दौरान सावित्रीबाई भी प्लेग से संक्रमित हो गईं और 10 मार्च 1897 को रात 9 बजे सावित्रीबाई फुले ने अपनी आखिरी सांस ली। सावित्रीबाई फुले आखरी सांस तक अपने जीवन के उद्देश्य को लेकर संघर्षरत थी।
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