नई दिल्ली। राज्यसभा ने बुधवार को उत्तर प्रदेश के गोंड समुदाय को अनुसूचित जाति से निकालकर अनुसूचित जनजाति सूची में डालने के प्रावधान वाले विधेयक को ध्वनिमत से पारित कर दिया।
उच्च सदन ने संविधान (अनुसूचित जातियां और अनुसूचित जनजातियां) आदेश (दूसरा संशोधन) विधेयक, 2022 को चर्चा के बाद ध्वनिमत से पारित कर दिया। इससे पहले विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नीत सरकार देश में जनजातीय समुदाय और उनके क्षेत्रों के विकास के लिए प्रतिबद्ध है और यह विधेयक उसी कड़ी में समाधान का रास्ता है।
उन्होंने कहा कि 1980 में पहली बार एक पत्र मिला था कि उत्तर प्रदेश के एक इलाके में एक विशेष जनजाति के लोग बड़ी संख्या में रहते हैं। उन्होंने कहा कि इस पत्र में मांग की गई थी कि इस समुदाय के लोगों को संविधान के तहत न्याय मिले।
उन्होंने कहा कि यह पत्र तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को लिखा गया था और उसके जवाब में प्रधानमंत्री ने कहा था कि समय आने पर इस बारे में विचार किया जाएगा। उन्होंने कहा कि इस समुदाय के लोगों की मांग का समाधान करने में विलंब हुआ और इस विधेयक से हमारी इच्छाशक्ति का पता चलता है।
मुंडा ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में इस सरकार ने ऐसी समस्याओं का समाधान करना शुरू कर दिया है और पिछले सत्र में भी ऐसा ही एक विधेयक लाया गया था। उन्होंने आश्वासन दिया कि सरकार इस तरह की मांगों को पूरा करने के मकसद से काम करने के लिए प्रतिबद्ध है।
उन्होंने कहा कि कांग्रेस सदस्य यह दावा करते रहे हैं कि उनकी पूर्ववर्ती सरकारें आदिवासियों की हितैषी रही हैं। उन्होंने कहा कि किंतु इस मामले की फाइल 1980 से सरकार के पास है जो सारी सच्चाई स्वयं बता रही है।
मुंडा ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के आह्वान पर पूरे देश में 15 नवंबर को आदिवासी स्वाभिमान दिवस पूरे उत्साह से मनाया गया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी की पहल पर एक आदिवासी महिला को राष्ट्रपति पद पर आसीन किया गया।
उन्होंने कहा कि आदिवासी का हितैषी होने का दावा करने वाले दलों को एक संवैधानिक पद पर सर्वसम्मति से चुनाव करना चाहिए था। मुंडा ने कहा कि कुछ लोगों ने संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्तियों की भी आलोचना करनी शुरू कर दी। उन्होंने आगाह किया कि इस तरह की चीजें लोकतंत्र को कमजोर करती हैं।
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने इस बात को लेकर कार्ययोजना बनाई है कि 21वीं शताब्दी में कोई भी आदिवासी पुरुष या महिला विकास के मामले में पीछे नहीं रहे।
जनजातीय कार्यों के लिए सरकार के बजटीय आवंटन को लेकर विपक्ष के सदस्यों द्वारा उठाए गए प्रश्नों के जवाब में मंत्री ने कहा कि 2013-14 में अनुसूचित जनजाति मामलों के लिए कुल बजटीय आवंटन 24 हजार 594 करोड़ रुपए था जो 2021-22 में बढ़कर 85 हजार 930 करोड़ रुपए हो गया है। उन्होंने कहा कि यह 270 प्रतिशत से अधिक वृद्धि है और इससे सरकार की मंशा का पता चलता है।
उन्होंने कहा कि औद्योगिकीकरण और नक्सलवाद के नाम पर देश में आदिवासियों की जमीन को छीना गया।मुंडा ने विपक्ष के सदस्यों से कहा कि यदि वे आदिवासियों की परवाह करने का दावा करते हैं तो उन्हें एक संवैधानिक पद के चुनाव में अपने उम्मीदवार को वापस ले लेना चाहिए था।
मंत्री के जवाब के बाद सदन ने विधेयक को ध्वनिमत से पारित कर दिया। इस विधेयक पर सरकार की ओर से लाए गए कुछ संशोधनों को भी सदन ने ध्वनिमत से पारित कर दिया। विधेयक के उद्देश्यों और कारणों में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश सरकार की सिफारिश के आधार पर यह प्रस्ताव किया गया है कि संविधान अनुसूचित जातियां आदेश 1950 और संविधान अनुसूचित जनजातियां (उत्तर प्रदेश) आदेश 1967 का संशोधन करके उत्तर प्रदेश राज्य के संबंध में इनकी सूचियों में बदलाव किया जाए।
यह विधेयक संविधान अनुसूचित जातियां आदेश 1950 की अनुसूची के भाग 18 - उत्तर प्रदेश की प्रविष्टि 36 में संत कबीर नगर, कुशीनगर, चंदौली और संत रविदास नगर जिलों से गोंड समुदाय को लोप करने के लिए है।Edited By : Chetan Gour (भाषा)