विरासत में मिली राजनीति से क्या राहुल कर पाएंगे न्याय...
- महिमा जोशी
2019 के चुनाव में राहुल गांधी के लिए डू और डाई (आर या पार) की स्थिति बनी हुई है। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को सत्ता में लाने के लिए पुरजोर मेहनत कर रहे हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से राहुल गांधी को नासमझ व साथ ही कम विषयों की जानकारी होने की वजह से राजनीति की दुनिया में पप्पू जैसे नामों से बुलाया जाता है, साथ ही उन्हें प्रधानमंत्री जैसे पद के लिए भी अयोग्य माना जा रहा है।
राहुल को हमेशा ही उनकी बौद्धिक शक्ति के आधार पर तोला जाता है। सोशल मीडिया पर बन रहे मीम और ट्रॉल्स में राहुल गांधी एक लोकप्रिय चेहरा बने हुए हैं। आए दिन अपने भाषणों में बिना सोच-विचार के बोलने की वजह से वे हमेशा ही विवादों में घिरे रहते हैं। थोड़े दिन पहले ही अपने भाषण में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पूरे देश में हंसी के पत्र बनते नजर आए जब उन्होंने कोका कोला कंपनी के मालिक को शिकंजी बेचने वाला और मैकडोनाल्डस वाले को ढाबा चलाने वाला बताया।
वे केवल यही नहीं रुके, उन्होंने फोर्ड, मर्सिडीज और होंडा जैसी ऑटोमोबाइल कंपनियों के मालिकों को मैकेनिक तक कह दिया। उनके इन्हीं नासमझीभरे बयानों की वजह से वे प्रधानमंत्री पद से दूर होते जा रहे हैं। राजनीति को लोगों की शर्ट और पैंट बताने वाले राहुल पर जनता कैसे भरोसा कर सकती है। राहुल गांधी मानते हैं कि देश सिर्फ बीजेपी और उसके नेता नहीं चला सकते। बीजेपी पर हमेशा निशाना साधने वाले राहुल सोचते हैं कि ये देश जनता का है और इसे जनता के साथ मिलकर चलाया जाना चाहिए।
कुछ दिन पहले आरएसएस के खिलाफ मानहानि के मुकदमे में फंसे गांधी ने कहा कि ये केवल बीजेपी की चाल है और वे उन्हें फंसाना चाहते हैं। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को मोहनलाल बुलाने की गलती राहुल एक बार नहीं, बल्कि तीन बार कर चुके हैं, और एक ऐसा व्यक्ति जो राष्ट्रपिता का नाम भी सही नहीं ले पाता, उसे देश का प्रधानमंत्री बनाना देश के लिए एक कठिन फैसला है।
राहुल गांधी के इन्हीं बिना सोचे-समझे विचारों की वजह से उनका खुद का गठबंधन भी उन पर भरोसा करने से कतराता है। राहुल गांधी हमेशा ही मोदी सरकार को गलत साबित करने में लगे रहते हैं। आज देश का युवा आगे बढ़ने के लिए नए-नए अवसर चाहता है, भारत को आगे बढ़ता देखना चाहता है, लेकिन राजनीति के दांवपेंचों में फंसकर रह जाता है। राहुल अभी फिलहाल विपक्षी दल के नेता हैं, उनका काम है सरकार के साथ मिलकर राष्ट्र के लिए नियोजित योजनाओं का निर्माण करना, पर सत्ता की भूख राष्ट्र प्रगति पर बहुत बुरा असर डाल रही है।
अगर राहुल गांधी जनता के नेता के रूप में सामने आना चाहते हैं तो उन्हें जनता की परेशानियों के विषय में जानने की आवश्यकता है। हमेशा विपक्षियों से मुकाबला करने की वजह से राहुल गांधी जनता से दूर होते जा रहे हैं। युवा उनसे जुड़ नहीं पाते हैं और फिलहाल तो उन्हें अपने नेता के तौर पर देखना सभी के लिए थोड़ा मुश्किल होगा।