सरहद पर उतने जवान शहीद नहीं होते, जितने ट्रैक मेन रेलवे ट्रैक पर गंवा देते हैं जान, राहुल गांधी के सामने छलका दर्द
- 550 से ज्यादा ट्रैक मेन की ट्रेन हादसों में हो जाती है मौत
-
16 किमी रोज ट्रैक पर पैदल चलते हैं, पीने के लिए नहीं मिलता 2 लीटर से ज्यादा पानी
-
रेलवे में देशभर में साढे 3 लाख ट्रैक मेन काम करते हैं
-
समस्याएं सुनकर राहुल बोले— रेलवे के महादलित हो आप
80 के दशक में एक फिल्म आई थी नाम था लव मैरिज। इस फिल्म में एक गाना था अपना जीवन रेल की पटरी। जब कांग्रेस नेता और विपक्ष के राहुल गांधी दिल्ली के छावनी ट्रैक पर पहुंचे तो यहां काम करने वाले हजारों ट्रैक मेन, गैंग मेन और की-मेन ने अपना और अपने काम से जुड़े दर्द को कुछ ऐसे ही बयां किया।
राहुल गांधी के सामने रेलवे कर्मचारियों का दर्द छलक उठा। बातचीत में सामने आया कि ट्रैक पर काम करने वाले हजारों कर्मचारी कितनी तरह की तकलीफों और संसाधनों के अभावों से जूझ रहे हैं। रोजाना कई ट्रैक मेन घायल हो जाते हैं तो हर साल सैकडों कर्मचारियों की ट्रेन हादसों में मौत हो जाती है। उन्होंने बताया कि कैसे उनकी पूरी जिंदगी रेलवे ट्रैक पर ही गुजर जाती है और वे यहीं रिटायर्ड हो जाते हैं।
550 ट्रैक मेन हो जाते हैं हादसों का शिकार : राहुल गांधी के साथ बातचीत में रेलवे ट्रैक मेन ने अपने काम से जुड़ी जो सचाई बताई उसे जानकर हर कोई हैरान रह जाएगा। दिन रात पटरियों पर दौड़ती देशभर की ट्रेनों और ट्रैक की सुरक्षा करने वाले कर्मचारियों में से हर साल करीब 550 से ज्यादा कर्मचारी ट्रैक पर रन ओवर हो जाते हैं यानी ट्रैक पर हादसों का शिकार हो जाते हैं। इनमें से कई लोग घायल हो जाते हैं। हादसों का शिकार होने वाले और घायल होने वालों में ट्रेक मैंटेनर, ट्रैक मेन और की- मेन शामिल हैं। ट्रैक पर काम करने वाले कर्मचारियों का कहना है कि जितने देश की सरहदों पर शहीद नहीं होते उससे कहीं ज्यादा लोग भारत की रेलवे ट्रैक पर मारे जाते हैं।
दिनभर में सिर्फ 2 लीटर पानी : राहुल गांधी को ट्रैक मेन ने बताया कि वे दिनभर में करीब 16 किलोमीटर ट्रैक पर पैदल चलते हैं, लेकिन उन्हें पीने के लिए 2 लीटर से ज्यादा पानी भी नहीं मिलता है। उनके पास रेलवे की तरफ से दिए गए जूते हैं, लेकिन वे ट्रैक पर चलने के लिए कारगर नहीं है। उन्हें अपने ही खरीदे हुए जूते पहनना पड़ते हैं।
पता नहीं चलता कि ट्रेन आ रही है : ट्रैक मेन ने बताया कि एक जीपीएस यंत्र है जो यह बता देता है कि चार किमी की दूरी पर ही पता चल जाता है कि ट्रेन आर ही है। इससे ट्रैक पर काम करने वाले कर्मचारी सतर्क हो सकते हैं और उनकी जान बच सकती है। लेकिन काम के मारे और थके हुए कर्मचारी कई बार ट्रैक पर ट्रेन की चपेट में आ जाते हैं। कई घायल हो जाते हैं और कई लोगों की मौत हो जाती है। दरअसल इन हादसों के पीछे विजिब्लिटी और ट्रेनों की रफ्तार भी एक वजह है। बता दें कि पूरे देश में करीब 11 लाख रेलवे कर्मचारी हैं, जबकि साढे 3 लाख कर्मचारी ऐसे हैं, जो देशभर के रेलवे ट्रैक पर अलग अलग तरह का काम करते हैं।
कुल मिलाकर रेलवे में काम करने वाले ट्रेक मैंटेनर, ट्रैक मेन और की- मेन की जिंदगी संसाधनों और सुरक्षा इंतजामों के अभाव में बुरी तरह से प्रभावित है। राहुल गांधी ने इनकी समस्याएं सुनी और उन्हें रेल मंत्रालय तक पहुंचाने का आश्वासन दिया।
Edited by Navin Rangiyal