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Last Updated :महू , शनिवार, 14 अप्रैल 2018 (16:47 IST)

आम्बेडकर जयंती पर राष्ट्रपति बोले- समाज को 'समर' की नहीं कि 'समरसता' की जरूरत

आम्बेडकर जयंती पर राष्ट्रपति बोले- समाज को 'समर' की नहीं कि 'समरसता' की जरूरत - President Kovind in Mhow
महू (मध्यप्रदेश)। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद संविधान निर्माता डॉ. बीआर अंबेडकर की जयंती पर शनिवार को उनकी जन्मस्थली पहुंचने वाले देश के पहले राष्ट्रपति बन गए। महू पहुंचने के बाद राष्ट्रपति ने नागरिकों को 'विभाजनकारी ताकतों' के प्रति आगाह करते हुए 'सामाजिक समसरता' पर जोर दिया और कहा कि भारतीय समाज को 'समर की नहीं, बल्कि समरसता' की जरूरत है।
 
राष्ट्रपति महू में प्रदेश सरकार द्वारा आयोजित 127वीं अंबेडकर जयंती समारोह को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे। महू अंबेडकर की जन्मस्थली है। कोविंद ने कहा कि देश में मुझसे पहले 13 राष्ट्रपति हुए हैं। मुझे पता चला है कि मैं अंबेडकर जयंती पर संविधान निर्माता की जन्मस्थली पहुंचने वाला पहला राष्ट्रपति हूं। 
 
 राष्ट्रपति ने महू के काली पल्टन इलाके में अंबेडकर जन्मस्थली पर 10 साल पहले प्रदेश सरकार द्वारा बनाए गए स्मारक में संविधान निर्माता के सामने श्रद्धा से शीश नवाया। इसके साथ ही दलित समुदाय के लोगों के साथ भोजन भी किया। उन्होंने देशभर से आए हजारों अंबेडकर अनुयायियों की मौजूदगी में कहा कि मुझे राष्ट्रपति के रूप में उस संविधान की रक्षा का दायित्व मिला है जिसके प्रमुख निर्माता बाबा साहेब अंबेडकर थे। अगर मैं राष्ट्रपति बनने के बाद उनकी जन्मस्थली पर माथा नहीं टेकता, तो मुझे अपने अंतरमन में ग्लानि होती। 
 
राष्ट्रपति ने भारतीयता के संबंध में अंबेडकर के विचारों का हवाला देते हुए कहा कि सभी नागरिकों को विभाजनकारी तत्वों की बातों पर ध्यान नहीं देते हुए देशहित को सबसे ऊपर रखना चाहिए और हमेशा खुद को केवल भारतीय मानना चाहिए। उन्होंने कहा कि समभाव यानी बराबरी के भाव और ममभाव यानी अपनेपन के भाव को जोड़ने से समरसता का भाव पैदा होता है। समाज को आज समर (युद्ध) की नहीं, बल्कि समरसता की जरूरत है... अहिंसा और शांति की जरूरत है। 
 
राष्ट्रपति ने कहा कि मैं सभी देशवासियों, विशेषकर युवाओं से अपील करता हूं कि वे अंबेडकर के बताए शांति, सौहार्द और भाईचारे के रास्ते पर चलें और एकजुट होकर उनके सपनों का भारत बनाने का संकल्प लें। कोविंद ने कहा कि अंबेडकर ने संविधान सभा में दिए अपने अंतिम भाषण में कहा था कि अब हमारे पास विरोध व्यक्त करने के संवैधानिक तरीके मौजूद हैं इसलिए हमें अराजकता से बचना चाहिए। 
 
उन्होंने कहा कि हमारा देश लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के आधार पर चलता है। आज जरूरत है कि लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं से गुजरते हुए हम अपनी सक्रिय भूमिका निभाएं और भले एवं बुरे की पहचान के प्रति हमेशा जागरूक रहें।  कोविंद ने देश के प्रति अंबेडकर के महती योगदान को याद करते हुए कहा कि उन्होंने अनुसूचित जाति-जनजातियों, पिछड़ों, वंचितों, श्रमिकों और महिलाओं के हितों के लिए हमेशा अहिंसक संघर्ष किया। वे संवाद के जरिए विभिन्न विषयों पर सहमति बनाते थे।
 
राष्ट्रपति ने 'जय भीम, जय हिन्द' का नारा लगाते हुए कहा कि 'जय भीम' का मतलब है- डॉ. अंबेडकर की जय... उनकी विरासत, आदर्शों और उनके द्वारा देश को दिए गए संविधान की जय।  राष्ट्रपति ने जोर देकर कहा कि अंबेडकर के निर्मित संविधान से मिले अलग-अलग अधिकारों के कारण देश के सभी समुदायों के नागरिक गरिमापूर्ण जीवन जी सकते हैं। उन्होंने इस बात को रेखांकित किया कि अंबेडकर ने रिजर्व बैंक की स्थापना और कुछ बड़ी सिंचाई तथा बिजली परियोजनाओं की शुरुआत में अहम भूमिका निभाते हुए आधुनिक भारत की नींव रखी।
 
मध्यप्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने अंबेडकर जयंती समारोह की अध्यक्षता की। इस सालाना कार्यक्रम में प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान और केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावरचंद गेहलोत बतौर विशिष्ट अतिथि शामिल हुए। (भाषा)