पीएम मोदी ने अफगानिस्तान में शांति बहाली की प्रक्रिया की आवश्यकता जताई
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को अफगानिस्तान में शांति की बहाली के लिए एक ऐसी प्रक्रिया की आवश्यकता जताई जिसका नेतृत्व अफगानिस्तान स्वयं करे और जो उसके स्वामित्व और नियंत्रण में हो। साथ ही उन्होंने पिछले 2 दशकों की उपलब्धियों को सुरक्षित रखने की जरूरत पर जोर दिया।
भारत-उज्बेकिस्तान डिजिटल शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपति शौकत मीरजियोएव से चर्चा की शुरुआत करते हुए अपनी प्रारंभिक टिप्पणी में ये बातें कही। इस अवसर पर उन्होंने यह भी कहा कि भारत और उज्बेकिस्तान आतंकवाद के खिलाफ दृढ़ता से एकसाथ खड़े हैं और उग्रवाद, कट्टरवाद तथा अलगाववाद के बारे में दोनों देशों की चिंताएं भी एक जैसी हैं।
उन्होंने कहा कि उग्रवाद, कट्टरवाद तथा अलगाववाद के बारे में हमारी एक जैसी चिंताएं हैं। हम दोनों ही आतंकवाद के खिलाफ दृढ़ता से एकसाथ खड़े हैं। क्षेत्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर भी हमारा एक जैसा नजरिया है। प्रधानमंत्री ने इसके साथ ही कहा कि अफगानिस्तान में शांति की बहाली के लिए एक ऐसी प्रक्रिया की आवश्यकता है, जो स्वयं अफगानिस्तान के नेतृत्व, स्वामित्व और नियंत्रण में हो। पिछले 2 दशकों की उपलब्धियों को सुरक्षित रखना भी आवश्यक है।
अफगानिस्तान के बारे में प्रधानमंत्री मोदी का बयान ऐसे समय आया है, जब अफगान शांति प्रक्रिया गति पकड़ रही है। ज्ञात हो कि कुछ महीने पहले ही अफगानिस्तान के शीर्ष शांति वार्ताकार अब्दुल्ला अब्दुल्ला ने एक प्रतिनिधिमंडल के साथ राजधानी दिल्ली में प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात की थी और उन्हें अफगान सरकार तथा तालिबान के बीच दोहा में चल रही शांति वार्ता के बारे में अवगत कराया था।
अब्दुल्ला की यह यात्रा दोहा में अफगानिस्तान सरकार और तालिबान के बीच शांति वार्ता के बीच हुई थी। अब्दुल्ला का भारत दौरा एक क्षेत्रीय आम सहमति बनाने और अफगान शांति प्रक्रिया के समर्थन के प्रयासों का हिस्सा था। गौरतलब है कि तालिबान और अफगान सरकार 19 साल के युद्ध को समाप्त करने के लिए पहली बार सीधी बातचीत कर रहे हैं। अफगानिस्तान की शांति प्रक्रिया में भारत एक महत्वपूर्ण पक्षकार है। भारत ने अफगानिस्तान में पुनर्निर्माण गतिविधियों में करीब 2 अरब डॉलर का निवेश किया है।
फरवरी में अमेरिका और तालिबान के बीच शांति समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद भारत उभरती राजनीतिक स्थिति पर करीबी नजर बनाए हुए है। इस समझौते के तहत अमेरिका, अफगानिस्तान से अपने सैनिक हटा लेगा।वर्ष 2001 के बाद से अफगानिस्तान में अमेरिका के करीब 2,400 सैनिक मारे गए हैं। बहरहाल, मोदी ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में भारत और उज्बेकिस्तान के बीच आर्थिक साझेदारी भी मजबूत हुई है और भारत दोनों देशों के बीच विकास की भागीदारी को भी और घनिष्ठ बनाना चाहता है।
उन्होंने इस बात पर प्रसन्नता जताई कि भारतीय 'लाइन ऑफ क्रेडिट' के अंतर्गत कई परियोजनाओं पर विचार किया जा रहा है। उज्बेकिस्तान की विकास प्राथमिकताओं के अनुसार हम भारत की विशेषज्ञता और अनुभव साझा करने के लिए तैयार हैं। अवसंरचना, सूचना और प्रौद्योगिकी, शिक्षा, स्वास्थ्य, प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण जैसे क्षेत्रों में भारत में काफी काबिलियत है, जो उज्बेकिस्तान के काम आ सकती है।
भारत और उज्बेकिस्तान के बीच कृषि संबंधी संयुक्त कार्यकारी समूह की स्थापना को प्रधानमंत्री ने एक महत्वपूर्ण और सकारात्मक कदम बताया और कहा कि इससे दोनों देश अपने कृषि व्यापार बढ़ाने के अवसर खोज सकते हैं जिससे दोनों देशों के किसानों को मदद मिलेगी। मोदी ने कहा कि मीरजियोएव के नेतृत्व में उज्बेकिस्तान में महत्वपूर्ण बदलाव आ रहे हैं और भारत भी सुधार के मार्ग पर अग्रसर है।
उन्होंने उम्मीद जताई कि कोविड-19 के बाद की दुनिया में दोनों देशों के बीच सहयोग की संभावनाएं और बढ़ेंगी। उन्होंने दोनों देशों के बीच सुरक्षा साझेदारी को द्विपक्षीय संबंधों का एक मजबूत स्तंभ बताया और पिछले वर्ष हुए सशस्त्र बलों के पहले संयुक्त सैन्य अभ्यास का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि अंतरिक्ष और परमाणु ऊर्जा के क्षेत्रों में भी हमारे सयुंक्त प्रयास बढ़ रहे हैं। प्रधानमंत्री ने कोविड-19 महामारी के इस समय में दोनों देशों द्वारा एक-दूसरे को किए गए भरपूर सहयोग पर संतोष जताया।
प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत और उज्बेकिस्तान 2 समृद्ध सभ्यताएं हैं और प्राचीन समय से ही दोनों के बीच निरंतर आपसी संपर्क रहा है तथा दोनों देशों के प्रदेशों के बीच भी सहयोग बढ़ रहा है। उन्होंने गुजरात और अन्दिजों की सफल भागीदारी के मॉडल को इसका उदाहरण बताया। उन्होंने कहा कि इसी तर्ज पर अब हरियाणा और फरगाना के बीच सहयोग की रूपरेखा बन रही है। (भाषा)