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Last Updated : बुधवार, 5 फ़रवरी 2020 (21:32 IST)

नजरिया : शाहीनबाग का दांव खुद भाजपा पर भारी ?

नजरिया : शाहीनबाग का दांव खुद भाजपा पर भारी ? - Opinion : BJP vs AAP Over Shaheen Bagh in Delhi Vidhansabha Election
- विष्णु राजगढ़िया
दिल्ली में आठ फरवरी को मतदान है। केजरीवाल अपने काम के नाम पर चुनाव लड़ रहे हैं। भाजपा के लिए इस चुनाव का मुद्दा शाहीनबाग है। यह पूरी दुनिया का पहला और अनोखा मामला है, जब कोई चुनाव एक सड़क-जाम के नाम पर लड़ा जा रहा हो। दिल्ली में कानून व्यवस्था का दायित्व गृहमंत्री पर है। इस नाते शाहीनबाग के साथ अमित शाह का क्या रिश्ता है, यह देखना दिलचस्प है।
 
कई महीनों पहले से ही केजरीवाल ने यह स्पष्ट कर दिया था कि वह अपने काम के आधार पर चुनाव लड़ेंगे। लेकिन भाजपा अंतिम मौके तक न तो अपना कोई नेता खोज सकी, न ही कोई मुद्दा तय कर पाई। तमाम सर्वेक्षण आम आदमी पार्टी की एकतरफा जीत का संकेत दे रहे थे।
 
इस बीच नागरिकता कानून को लेकर दिल्ली के शाहीनबाग इलाके में सड़क जाम प्रारंभ हुआ। इससे स्थानीय नागरिकों की परेशानी के बावजूद दिल्ली पुलिस और गृहमंत्री ने इस सड़क जाम को खोलने का कोई प्रयास नहीं किया। उल्टे, हर चुनावी सभा में अमित शाह ने एक ही बात कहना शुरू किया- "ईवीएम की बटन गुस्से से दबाना, जोर से दबाना, इसका करेंट शाहीनबाग तक पहुंचे।"
 
आखिर अमित शाह को इतना भरोसा क्यों था कि आठ फरवरी को चुनाव के दिन तक शाहीनबाग का जाम जारी रहेगा? क्या खुद बीजेपी की यह कोशिश थी कि शाहीनबाग को चुनाव तक लटकाए रखें?
ध्यान रहे, अगर चुनाव के पहले शाहीनबाग का जाम खुल जाए, तो यह मामला ही खत्म हो जाएगा। ऐसे में आखिरी मौके पर बीजेपी के पास कोई मुद्दा ही नहीं रह जाएगा। यह बात पहले से ही स्पष्ट होने के बावजूद अगर एक महीने पहले से ही अमित शाह ने शाहीनबाग तक करेंट भेजने को अपना प्रमुख भाषण बनाया, तो इसके मायने निकाले जा सकते हैं।
 
शरजील इमाम ने अपने विवादित वीडियो में एक बड़ा खुलासा किया था, जिस पर ध्यान नहीं दिया गया। उसने शाहीनबाग धरना प्रारंभ होने के घटनाक्रम का उल्लेख करते हुए बताया कि पहली जनवरी की रात दिल्ली पुलिस के एक अधिकारी ने कहा कि आपलोग जब तक चाहें, धरना जारी रख सकते हैं। शरजील के अनुसार, इससे यह लगा कि केंद्र सरकार इस धरना को चुनाव तक जारी रखना चाहती है।
 
इस बीच शाहीनबाग में गोली चलाने वाले कपिल गुज्जर के संबंध में दिल्ली पुलिस के एक अधिकारी ने अनावश्यक तौर पर राजनीतिक बयान देते हुए आम आदमी पार्टी का नाम लिया, उसे भी चुनाव आचार संहिता और खुद पुलिस की जांच प्रकिया के मानदंडों के प्रतिकूल माना जा रहा है।

बहरहाल, जिस तरह अमित शाह ने शाहीनबाग का गतिरोध तोड़ने के बदले इसे दिल्ली चुनाव तक लटकाए रखने में दिलचस्पी ली, इसे भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक काले अध्याय के तौर पर याद किया जाएगा।
 
एक और दिलचस्प बात यह है कि बीजेपी को भ्रम है कि शाहीनबाग से उसे लाभ होगा। जबकि भाजपा के लिए यह गलत दांव ही साबित होता दिख रहा है। कपिल गुज्जर के पिता ने कहा कि उनलोगों का AAP से नहीं, बीजेपी से रिश्ता है।
 
दूसरी ओर, शाहीनबाग में गुंजा कपूर नामक भाजपा समर्थक युवती का बुर्के में पकड़ा जाना भी किसी साजिश का संकेत है। उसे ट्वीटर में मोदी फॉलो करते हैं। जाहिर है कि इन चीजों के कारण शाहीनबाग की कोई बदनामी आम आदमी पार्टी के ऊपर नहीं आती बल्कि हर तरह से भाजपा और खासकर गृहमंत्री ही कठघरे में खड़े नजर आते हैं।
 
अब तो आठ फरवरी को चुनाव के बाद ही पता चलेगा कि केजरीवाल के विकास के मुद्दों और भाजपा के शाहीनबाग जैसे अजीबोगरीब मुद्दे के बीच किसका पलड़ा भारी होगा।
 
(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण वेबदुनिया के नहीं हैं और वेबदुनिया इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है)