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Last Updated : मंगलवार, 4 जुलाई 2017 (09:11 IST)

मौत का दूसरा नाम है मोसाद

मौत का दूसरा नाम है मोसाद - Mossad, Israeli intelligence agency,
मध्यपूर्व में चारों तरफ से इस्लामिक देशों से घिरे छोटे से राष्ट्र इसराइल के लिए अपना अस्तित्व बनाए रखने की चुनौती हर समय बनी रहती है। इस देश की आबादी काफी कम करीब अस्सी लाख है और इसलिए उनके लिए अपने हर नागरिक के जीवन की कीमत भी काफी अधिक है।





 
 
इसराइल अपने नागरिकों पर आने वाले किसी भी संकट का मुंहतोड़ जवाब देता है और ऑपरेशन एंटेबे या ऑपरेशन थंडरबॉल्ट ऐसे ही करारे जवाब थे। ऑपरेशन एंटेबे के दौरान इसराइली कमांडो और सेना ने एक दूसरे देश, युगांडा, के हवाई अड्डे में बिना अनुमति के घुसकर अपहृत किए गए अपने 54 नागरिकों को छुड़वा लिया था। आज भी दुनिया के सबसे बड़े नागरिक सुरक्षा अभियानों में ऑपरेशन एंटेबे का नाम सबसे ऊपर आता है।  
 
 
उल्लेखनीय है कि इसराइल की जिस खुफिया एजेंसी ने ऐसे कई कारनामों को अंजाम दिया है, उसे दुनिया भर में मोसाद के नाम से जाना जाता है। मोसाद को इस कारण से भी सारी दुनिया में जाना जाता है कि यह अपने दुश्मनों का क्रूरता से सफाया करती है। राजनेताओं की हत्या करना हो, दूसरे देश में अराजकता फैलानी हो या सत्ता परिवर्तन कराना हो, यह सभी मोसाद के ऑपरेशनों में शामिल होते हैं। इस एजेंसी के बारे में यह खास बात और है कि इसके एजेंटों की घुसपैठ दुनिया के दूसरे देशों की एजेंसियों में भी है। मोसाद एजेंट सीआईए, एमआई 5, एमआई 6 के साथ मिलकर काम करते हैं वरन यह कहना गलत न होगा कि मोसाद के ज्यादातर एजेंट इसराइली सैन्य बलों से आते हैं। इस एजेंसी में काम करने के लिए बड़े-बड़े अधिकारी होड़ करते नजर आते हैं और हरेक अधिकारी का सपना होता है कि वह मोसाद का सर्वेसर्वा बने। 
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(Photo Courtesy: YouTube)

इसराइली सेना के एक बहुत तेजतर्रार अधिकारी रूवेन शिलोह को इसे स्थापित करने का श्रेय जाता है। बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि दुनिया में जो सीक्रेट डिप्लोमेसी होती है, मोसाद उसका जनक है। आप किसी एजेंसी से उम्मीद नहीं कर सकते हैं कि यह रहस्यों को उजागर करे, लेकिन मोसाद ऐसी एजेंसी है जो एक देश के रहस्य दूसरे देशों तक पहुंचाने का काम भी करती है। इतना ही नहीं, इसके एजेंटों ने पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की मोनिका लेविंस्की के साथ बातचीत को रिकॉर्ड कर लिया था और इनके सहारे बिल क्लिंटन तक को ब्लैकमेल किया था। यह सब तब हुआ था जबकि किसी ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि एक अमेरिकी राष्ट्रपति के उसकी व्हाइट हाउस इंटर्न से सेक्स संबंध भी हो सकते हैं।
मोसाद एक ऐसी खुफिया एजेंसी है जिसमें मनोवैज्ञानिक युद्ध (साइकोलॉजिकल वारफेयर) का पूरा एक विभाग है जो यह तय करता है कि ऑपरेशन के कौन से खुफिया हिस्से को मीडिया में लीक करना है ताकि दुश्मनों के दिलो-दिमाग में भय और बदहवासी पैदा की जा सके।
मोसाद का पूरा एक विभाग जैविक और रासायनिक जहरों की खोज में लगा रहता है और इनके वैज्ञानिक हथियार भी बनाते हैं। ऐसा माना जाता है कि फिलीस्तीन नेता यासर अराफात को मोसाद ने ऐसा जहर देकर मारा था कि उसकी पहचान तक नहीं की जा सकी। मोसाद के पास दुनिया के प्रत्येक नेताओं, प्रमुख व्यक्तियों और ऐसे लोगों की गोपनीय फाइलें बना रखी हैं जिनके पास किसी तरह की कोई सामरिक महत्व की जानकारी होती है। 
 
इन फाइलों ने दुनिया भर के नेताओं, प्रसिद्ध लोगों की सारी जन्म कुंडली होती है जिससे उन्हें पता लगता है कि फलां राष्ट्रपति से जानकारी हासिल करने के लिए पैसे की जरूरत होगी या फिर उसके लिए हनीट्रैप ही ठीक रहेगा। इसराइल के नेता नेतन्याहू ने पोलैंड को पेशकश की थी कि अगर वह चाहे तो उन्हें लेविंस्की टेप्स उपलब्ध कराए जा सकते हैं।


उदाहरण के लिए, एक बार मोसाद एजेंटों ने आतंकवादी की पत्नी को फूल भेजे थे और इसके मिनटों बाद ही उस उग्रवादी की हत्या कर दी गई थी। मोसाद एजेंटों ने अरब मूल के परमाणु वैज्ञानिकों की हत्याएं करने का भी काम किया है ताकि अरब देशों की परमाणु बम बनाने की महत्वाकांक्षाओं को रोका जा सके।
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उल्लेखनीय है कि मोसाद में महिलाएं भी काम करती हैं लेकिन महिला एजेंटों के लिए तय होता है कि उन्हें क्या काम करना है और क्या नहीं करना है। उनसे अपने टारगेटों के साथ सोने के लिए कभी नहीं कहा जाता है। वर्ष 1960 के दशक में मोसाद ने ईरान के शाह के शाह के शासन काल में खुफिया एजेंसी सावाक के साथ करीबी रिश्ते बना लिए थे। इन एजेंटों ने इराक में कुर्द विद्रोहियों की मदद की थी। भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ और मोसाद के रिश्ते सार्वजनिक हैं। नरेन्द्र मोदी के केन्द्र में सत्तारूढ़ होने के बाद से नई दिल्ली में मोसाद का ठिकाना बन गया है। रॉ और मोसाद मिलकर कोवर्ट ऑपरेशन्स चलाते हैं और इनमें से ज्यादातर का शिकार पाकिस्तान होता है।
 
हालांकि भारत के फिलीस्तीनी नेताओं से अच्छे संबंध रहे हैं, लेकिन वर्षों तक मुस्लिम संगठनों ने आरोप लगाते रहे हैं कि रॉ, मोसाद के हाथों की कठपुतली बन गई है। खुफिया एजेंसियों के ऐसे बहुत से ऑपरेशनों की मीडिया तक को जानकारी नहीं होती है लेकिन 1980 के दशक के आखिरी वर्षों में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने एक खुफिया ऑपरेशन चलाया था जिसे दिल्ली हाईकोर्ट में उजागर किया गया था। मोसाद प्रमुख तामीर पार्दो ने एक इसराइल प्रकाशन से कहा था कि एजेंसी में महिला और पुरुषों, दोनों को समानता से काम करने की स्वतंत्रता है लेकिन सीक्रेट वारफेयर में महिलाएं ज्यादा असरदार साबित होती हैं क्योंकि उनमें बहुत से काम एक साथ करने की क्षमता (मल्टीटास्किंग) होती है।
 
अरब देशों के संदेह को दूर रखने के लिए इसराइल झूठे झंडों (फ्लैग्स) का भी इस्तेमाल करता है। मोसाद के इसराइली सैन्य खुफिया एजेंसी, शिन बेथ, विदेश मंत्रालय के रिसर्च एंड पॉलिटिकल प्लानिंग सेंटर और पुलिस के स्पेशल टास्क डिवीजनों से अच्छे संबंध होते हैं। एंटेबे ऑपरेशन की सफलता से समझा जा सकता है कि इन एजेंसियों की प्लानिंग और एक्जीक्यूशन किस हद तक तालमेल से भरा होता है। मोसाद का निदेशक सिविल सेवा का क्लास 1 ऑफिसर होता है।
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मोसाद का प्रमुख रूप से काम विदेशी खुफिया जानकारियां जुटाना और इसराइल के बाहर कोवर्ट ऑपरेशनों को अंजाम देना है। मोसाद में 1500 से लेकर 2000 तक कर्मचारी हैं जिनमें से करीब 500 अधिकारी स्तर के हैं। एजेंसी ने नए कर्मचारी और पुराने स्टाफ मेंबर के बीच बेसिक सैलरी में बहुत कम अंतर होता है। लेकिन मोसाद और सिन बेथ (सेना की खुफिया शाखा) में कर्मचारियों का चयन बहुत ही लंबे परीक्षणों के बाद होता है और उनकी सुरक्षा संबंधी कड़ी जांच होती है। मोसाद और सिन बेथ में करीब एक हजार अधिकारी हैं जिनकी ईमानदारी, सच्चाई, पृष्ठभूमि को कड़ाई से परखने के बाद ही भर्ती किया जाता है।
 
इसराइल की स्थापना के तुरंत बाद वहां के तत्कालीन प्रथम प्रधानमंत्री डेविड बेन गुरियन के समय में मोसाद की नींव रखी गई थी जिसे इसराइल की आजादी के लिए ब्रिटिश फिलिस्तीन में संघर्ष कर रहे चार प्रमुख यहूदी उग्रवादी संगठनों को एक कर बनाया गया था। जिन चार संगठनों को मिलाकर मोसाद का गठन किया गया वे थे : हगानाह, इरगुन, लेही, पालमच। इन्हीं संगठनों में से जो समर्थ सैनिक थे उन्हीं को लेकर मोसाद की स्थापना की गई थी। मोसाद का गठन कर इसका पहला निदेशक एक खूंखार यहूदी सैनिक रूवेन शिलोह को बनाया गया, जिसने अपने कार्यों से पहले भी यहूदियों में काफी नाम कमाया था। मोसाद का जिस काम के लिए गठन हुआ था, मोसाद ने उसे अपने काम से साबित भी कर दिखाया। यह मोसाद एजेंट्स की लगातार कठिन परिश्रम का ही परिणाम है जो आज मोसाद को ख़ुफिया एजेंसियों की दुनिया का एक्सपर्ट माना जाता है। 
 
मोसाद की ताकत और उसके नेटवर्क का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आज दुनिया के बड़े-बड़े देश खुफिया सेवाओं के लिए मोसाद की सहायता लेते हैं। यहां तक कि कई देशों के ख़ुफिया एजेंट्स को भी मोसाद से ट्रेनिंग लेने के लिए इसराइल भेजा जाता है। मोसाद को जिस सबसे बड़ी खूबी के कारण जाना जाता है वो हैं ‘फाल्स फ्लैग ऑपरेशन’(कोवर्ट ऑपरेशन्स)। इस कार्य में मोसाद को महारत हासिल है। वैसे तो इसराइल का हर व्यक्ति सैनिक है जिसे सैन्य ट्रेनिंग अनिवार्य होती है लेकिन मोसाद में शामिल होने वाले जवानों को अलग से स्पेशल बेहद कड़ी ट्रेनिंग से गुजरना पड़ता है और वह जब ट्रेनिंग का हर पड़ाव पार कर लेता है तभी उसे मैदान में उतारा जाता है। दुश्मन को चकमा देने की कला हो या मारकर गायब हो जाने वाली 'किल एंड फ्ली' तकनीक हो, मोसाद एजेंट्स सबमें एक्सपर्ट होते हैं। 
 
एक मोसाद एजेंट्स कई सैनिकों के बराबर होता है जो ना ही मात्र अकेले खुफिया ऑपरेशन अंजाम दे सकता है बल्कि अपने दुश्मन के बड़े से बड़े ठिकाने को तबाह करने में भी सक्षम होता है, जिसके लिए बकायदा उसे इसराइल में ट्रेंड किया गया होता है। मोसाद को लेकर बहुत सारी किताबें लिखी गई हैं और इनमें से कई-कई किताबें इसके एक-एक ऑपरेशन पर हैं। पर मोसाद ने कुछेक कारनामे ऐसे कर दिखाए हैं जिन्हें अकल्पनीय माना जा सकता है। साठ के दशक में देश के परमाणु कार्यक्रम को चलाने के लिए मोसाद एजेंटों ने अमेरिका की परमाणु कंपनी न्यमेक, अपोलो पेंसिलवानिया से 90 किलोग्राम यूरेनियम गायब कर दिया था। इसके बाद ही, अमेरिकियों को पता लगा कि यह यूरेनियम इसराइल में काम में लाया जा रहा है।
 
ईरान की क्रांति के बाद ईरान, इसराइल का सबसे बड़ा शत्रु बन गया लेकिन इससे पहले शाह रजा पहलवी के शासन काल में इसराइल, ईरान को हथियार बेचा करता था।  तकनीकी रूप से दोनों देश दुश्मन हैं लेकिन दोनों के बीच हथियारों और तेल की बिक्री होती रही थी। मोसाद के एजेंटों ने पीएलओ (फिलीस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन) के हथियारों को निकारागुआ में कोंट्रा विद्रोहियों को बेच दिया था और बिक्री से मिले पैसों से अमेरिका की मदद भी कर दी थी। मोसाद के क्रियाकलापों और कारनामों की लिस्ट इतनी लम्बी, अविश्वसनीय और अकल्पनीय है कि इसके कारनामों पर दुनिया भर में दर्जनों किताबें लिखी जा चुकी हैं। लेकिन फिर भी हमें लगता है कि हम इसके बारे में जितना पढ़ते हैं, लगता है कि वह भी बहुत कम है। ऐसा लगता है कि मोसाद ईश्वर की तरह सर्वशक्तिमान है और यह कुछ भी करने में समर्थ है।
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