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Last Updated :नई दिल्ली , रविवार, 28 मई 2017 (18:33 IST)

लड़कों से बात करें महीने के 'उन मुश्किल दिनों की’

लड़कों से बात करें महीने के 'उन मुश्किल दिनों की’ - Menstruation
नई दिल्ली। गुडगांव के एक स्कूल की शिक्षिका मनीषा गुप्ता रोज की तरह स्कूल में पढ़ाने आईं, लेकिन अचानक उनका ध्यान स्कूल के उन छात्रों की ओर गया, जो एक-दूसरे को इशारे कर रहे थे और कोहनी मारकर कानाफूसी कर रहे थे। 
 
स्कूल की घंटी बजते ही लड़कों ने जोर से कहा कि 'पीरियड' और दबी हुई मुस्कान के साथ एक-दूसरे को शरारतभरी निगाहों से देखा। बस, उसी समय मनीषा ने सोच लिया कि वह अपनी कक्षा में छात्रों से मासिक धर्म पर खुलकर बात करेंगी।
 
मनीषा ने कहा कि जब मैंने किशोरवय में आने के विषय पर बात करनी शुरू की तो लड़के इस विषय को लेकर उत्साहित एवं दिलचस्पी लेते प्रतीत हो रहे थे। जब मैंने किशोरवय में प्रवेश कर रहे लड़कों में होने वाले शारीरिक बदलाव की महत्ता पर चर्चा करना आरंभ किया तो मैं उनके अजीब से भावों को देख सकती थी। मनीषा जानती हैं कि 11 वर्षीय स्कूल छात्रा की स्कर्ट पर जब खून का धब्बा लग जाता है तो वह किस प्रकार अपनी कक्षा के लड़कों के मजाक का पात्र बन जाती है।
 
उन्होंने कहा कि मैंने उन्हें बताया कि जिस लड़की को मासिक धर्म होता है, वही एक स्वस्थ पत्नी बन सकती है। पूरी दुनिया रविवार को जब चौथा 'मासिक धर्म स्वच्छता दिवस' मना रही है और इस विषय से जुड़ी मानसिकता को बदलने और मासिक धर्म स्वच्छता के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए देशभर में मुहिम चलाई जा रही है तो ऐसे में कार्यकर्ताओं का कहना है कि लड़कों एवं पुरुषों की समान भागीदारी के बिना यह मुहिम अधूरी है। 
 
स्त्री रोग विशेषज्ञ कार्यकर्ता सुरभि सिंह ने कहा कि पुरुष स्कूल, घर या किसी भी अन्य स्थान पर लड़कियों एवं महिलाओं के आसपास रहते हैं और समाज का अभिन्न अंग हैं। इस प्राकृतिक प्रक्रिया को लेकर वे भी समान रूप से अज्ञानी एवं जिज्ञासु हैं। मासिक धर्म की बात करने को लेकर असंवेदनशीलता या जागरूकता की कमी के कारण लड़कियां और यहां तक कि अधिक उम्र की महिलाएं भी घबरा जाती हैं और उनके मासिक चक्रों को लेकर शर्मिंदा होती हैं।
 
सिंह एवं मनीषा ने कहा कि लड़कों के लिए यौन शिक्षा कार्यशालाएं शीघ्र शुरू करके उन्हें संवेदनशील बनाना चाहिए जिससे मासिक चक्र के बारे में उनकी गलत धारणाएं दूर हो सकती हैं। इससे लड़कियों में भी आत्मविश्वास पैदा करने में मदद मिलेगी।
 
उन्होंने कहा कि अब भी मासिक धर्म का विषय स्कूल पाठ्यक्रम में पहली बार 10वीं में शुरू किया जाता है जबकि कई लड़कियों को मासिक धर्म 11 वर्ष की आयु में ही शुरू हो जाता है। सिंह ने कहा कि घरों में भी लड़कों को इस विषय पर बातचीत से अलग नहीं रखना चाहिए। अब समय आ गया है कि लड़के भी मुंह दबाकर हंसे बिना 'पीरियड' शब्द कहें। इसके लिए लड़कों, पुरुषों, लड़कियों, महिलाओं सभी को योगदान देना होगा। (भाषा)