यूक्रेन से लौटे MBBS स्टूडेंट्स का खतरे में भविष्य, भारत के मेडिकल कॉलेजों में नहीं मिलेगा एडमिशन, PM मोदी से गुहार
रूस यूक्रेन युद्ध के चलते अपनी पढ़ाई बीच में छोड़कर हजारों की संख्या में भारत लौटे मेडिकल छात्रों का भविष्य अब खतरे में पड़ गया है। यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई कर रहे इन स्टूडेंट्स को भारत के मेडिकल कॉलेजों में समायोजित करने से सरकार ने अपने हाथ खड़े कर दिए है। जिससे यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई अधूरी छोड़कर लौटने को मजबूर हुए छात्रों का भविष्य अब अंधकार में आ गया है।
भारत के मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन नहीं-दरअसल केंद्र सरकार की ओर से शुक्रवार को लोकसभा को बताया गया कि राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) ने विदेश में मेडिकल की पढ़ाई करने वाले छात्रों को भारतीय मेडिकल संस्थानों में स्थानांतरित या समायोजित करने की अनुमति नहीं दी गई है। केंद्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री भारती प्रवीण पवार ने एक सवाल के जवाब में सदन को जानकारी देते हुए कहा कि भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम, 1956 और राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग अधिनियम, 2019 के साथ ही साथ किसी भी विदेशी चिकित्सा संस्थानों से मेडिकल छात्रों को भारत के मेडिकल कालेजों में समायोजित या स्थानांतरित करने के नियमों में ऐसा कोई प्रवधान नहीं है।
खतरे में MBBS स्टूडेंट्स का भविष्य?- दरअसल रूस यूक्रेन युद्ध के चलते मेडिकल की पढ़ाई करने वाले लगभग 20 हजार भारतीय छात्रों को अपनी पढ़ाई बीच में छोडकर भारत वापस आना पड़ा था। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल की रहने वाली शिवानी सिंह भी उन मेडिकल स्टूडेंट्स में से एक है जिनको अपनी मेडिकल की पढ़ाई बीच में छोड़कर भारत लौटने पर मजबूर होना पड़ा।
वेबदुनिया से बातचीत में शिवानी बताती है कि वह एमबीबीएस 5th ईयर की स्टूडेंट्स है और युद्ध के चलते उनको अपनी पढ़ाई बीच में छोड़कर भारत वापस आना पड़ा है। भारत लौटने के बाद अब उनको अपने करियर की चिंता सताने लगी है। शिवानी बताती है कि पिछले पांच महीने से पढाई पूरी तरह ठप्प है, अगर ऑनलाइन पढ़ाई शुरु भी हो गई तो प्रैक्टिक्ल तो हो नहीं है पाएगा। शिवानी बताते है कि उनके जैसे हजारों मेडिकल स्टूडेंट जो यूक्रेन से भारत लौटे है उनकी पूरी आस अब राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) पर टिकी है कि एनएमसी क्या निर्णय लेता है?
शिवानी कहती हैं कि ऐसे में जब उनकी एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी होने में केवल आखिरी साल बचा है ऐसे में वह मोदी सरकार और राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) से मांग करती है कि मेडिकल छात्रों को ट्रांसफर की अनुमति दे दी जाए। शिवानी कहती हैं कि अगर भारत में नहीं तो किसी अन्य देश में ट्रांसफर की अनुमति दी जाए जिससे वह अपने एमबीबीएस कोर्स पूरा कर सके और उनका करियर खराब होने से बच सके।
पीएम मोदी से लगाई गुहार- भोपाल के रहने वाले हर्षित शर्मा जो यूक्रेन में वीन्नित्स्या नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी के एमबीबीएस 4th ईयर के स्टूडेंट है, युद्ध के चलते भारत वापस लौटने पर मजबूर हुए। वेबदुनिया से बातचीत में हर्षित लोकसभा में राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) के हवाले सरकार के दिए जवाब पर सवाल उठाते हुए कहते हैं कि एनएमसी उनके जैसे हजारों छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ कर रहा है।
वह कहते है कि आज यूक्रेन किसी भी तरह सुरक्षित नहीं है वहां पर अभी भी वॉर चल रहा है, ऐसे में उन लोगों का वापस यूक्रेन जाकर अपनी पढ़ाई पूरी करना संभव नहीं है। वहीं एनएमकी का ही नियम है कि 6 महीने से ज्यादा मेडिकल की पढ़ाई ऑनलाइन नहीं की जा सकती है। ऐसे में जब उनके जैसे हजारों स्टूडेंट्स को वापस आए 5 महीने से ज्यादा का समय हो चुका है तब वह अब आगे क्या करेंगे यह सबसे बड़ा सवाल हो गया है?
हर्षित कहते हैं कि जब वह लोग मेडिकल की पढ़ाई करने बाहर गए तो बकायदा एनएमसी के नियमों के पालन किया था और उसकी हीं अनुमति से मेडिकल की पढ़ाई की थी। ऐसे में अब एनएमसी अपने जिम्मेदारी से पलड़ा झाड़ रहा है। हर्षित कहते हैं कि अगर एनएमसी की तरफ से इंफास्ट्रक्चर (सीटें और संसाधन) नहीं होने की बात की जाती है तो यह पूरी तरह गलत है।
हर्षित कहते हैं कि उनके हजारों स्टूडेंट्स की उम्मीद अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से है कि वह इस पूरे मामले में सीधा दखल देकर एनएमसी को निर्देशित करे कि वह यूक्रेन से लौटे मेडिकल स्टूडेंट् को भारत के मेडिकल कॉलेज में एडमिशन लेने की अनुमति दें।
हर्षित कहते हैं कि भारतीय छात्रों के विदेश जाने का प्रमुख कारण भारत में मेडिकल की पढ़ाई का अत्यधिक महंगाई होना है। भारत में एमबीबीएस की एक साल की फीस तीस लाख है जो किसी सामान्य परिवार के लिए संभव नहीं है।