नई दिल्ली। साल 2018 का पहला पूर्ण चंद्र ग्रहण आज रात पूरे भारत में आकर्षण का केंद्र रहा। हालांकि, भारत में इसे आंशिक तौर पर देखा जा सका। ग्रहण के वक्त चांद का रंग लाल तांबे जैसा हो गया था। वहीं, खगोल-विज्ञान में दिलचस्पी रखने वाले लोग देश के अलग-अलग हिस्सों में बने तारामंडलों से चांद का दीदार कर रहे थे।
मुंबई के नेहरू तारामंडल के निदेशक अरविंद परांजपे ने बताया कि ऐसा दूसरा चंद्र ग्रहण 28 जुलाई को होगा और वह भारत में पूरा दिखाई देगा। चांद आज तीन रूपों - ‘सुपर मून’, ‘ब्लू मून’ और ‘ब्लड मून’ में दिखा। चांद का दीदार करने वालों ने दशकों बाद ‘सुपर मून’ देखा।
‘सुपर मून’ में चांद ज्यादा बड़ा और चमकीला दिखाई देता है क्योंकि यह धरती के करीब होता है। ‘ब्लू मून’ किसी कैलेंडर महीने में दूसरा पूर्ण चंद्र होता है और ‘ब्लड मून’ शब्द का इस्तेमाल ग्रहण के लाल रंग के लिए किया जाता है। आज के चंद्र ग्रहण को दुनिया के कई हिस्सों में देखा गया।
दिल्ली के इंडिया गेट इलाके में सैकड़ों छात्र चांद का दीदार करने के लिए इकट्ठा हुए। शुरू में उन्हें मायूस होना पड़ा, क्योंकि चांद बादलों से घिरा हुआ था। लेकिन जब चांद बादलों से उभरकर सामने आया तो लोग लाल चांद को नंगी आंखों से देख पा रहे थे।
परांजपे ने कहा कि मुंबई के नेहरू तारामंडल में करीब 2,500-3,000 लोग इस चंद्र ग्रहण को देखने के मकसद से आए। उन्होंने कहा, ‘मुझे खुशी है कि चंद्र ग्रहणों को लेकर कई तरह के अंधविश्वास होने के बाद भी इतनी बड़ी तादाद में लोग इसे देखने आए।’ साल 2018 में पांच ग्रहण होंगे, जिनमें से तीन आंशिक सूर्य ग्रहण होंगे, लेकिन भारत में इन्हें नहीं देखा जा सकेगा। ये 15 फरवरी, 13 जुलाई और 11 अगस्त को होंगे।
चंद्र ग्रहण के दौरान धरती की छाया चांद पर पड़ती दिखाई देती है। पूर्ण चंद्र ग्रहण के तीन चरण उपच्छाया (पेनंब्रा), प्रतिछाया (अंब्रा) और संपूर्णता (टोटेलिटी) होते हैं। धरती से चांद की दूरी करीब 3.84 लाख किलोमीटर है। इस दूरी पर धरती की छाया में प्रतिछाया और उपच्छाया दोनों होती है।
परांजपे ने बताया, ‘पूर्ण चंद्र ग्रहण के दौरान चांद पहले धरती की उपच्छाया में प्रवेश करता है। यह छाया काफी हल्की होती है और गंभीरता से नहीं देखने वाले लोग अक्सर ग्रहण के इस चरण की शुरुआत नहीं देख पाते।’ प्रतिछाया के चरण की प्रगति उस वक्त स्पष्ट हो जाती है जब आधा से ज्यादा चांद इससे ढका होता है।
उन्होंने कहा, ‘चांद पर धरती की उपच्छाया बहुत अलग है और इसकी प्रगति पर आसानी से गौर किया जा सकता है। चांद जब पूरी तरह प्रतिछाया के घेरे में होता है तो यह पूर्ण चंद्र ग्रहण होता है। इसके बाद चांद उल्टे क्रम में धरती की छाया से बाहर आता है।’ परांजपे ने कहा कि किसी चंद्र ग्रहण के सभी चरणों के दौरान चांद लाल रंग का दिखाई देता है। (भाषा)