यह हैं ग्रहण के वैज्ञानिक और धार्मिक आधार
31 जनवरी को अंग्रेजी नववर्ष का पहला चन्द्रग्रहण है। ग्रहण शब्द से आप सभी परिचित हैं लेकिन क्या आप ग्रहण के अर्थ को जानते हैं। आज हम ग्रहण से जुड़ी कुछ बद्धमूल धारणाओं की चर्चा करेंगे। ग्रहण से जुड़ी जो सबसे बड़ी धारणा है, वह है 'सूतक'।
ग्रहण के सूतक के नाम पर लोगों का घर से बाहर आना-जाना अवरुद्ध कर दिया जाता है। यहां तक कि सूतक के कारण मन्दिरों के भी पट बन्द कर दिए जाते हैं। ग्रहणकाल में भोजन पकाना एवं भोजन करना वर्जित माना गया है। ग्रहण के मोक्ष अर्थात् ग्रहणकाल के समाप्त होते ही स्नान करने की परम्परा है।
यहां हम स्पष्ट कर दें कि इन सभी परम्पराओं के पीछे मूल कारण तो वैज्ञानिक है, शेष उस कारण से होने वाले दुष्प्रभावों को रोकने के उद्देश्य से बनाए गए देश-काल-परिस्थित अनुसार लोक नियम। वैज्ञानिक कारण तो स्थिर होते हैं लेकिन देश-काल-परिस्थिति अनुसार बनाए गए नियमों को हमें वर्तमान काल के अनुसार अद्यतन (अपडेट) करना आवश्यक होता है, तभी वे जनसामान्य के द्वारा मान्य होते हैं और उनका अस्तित्व भी बना रह पाता है अन्यथा वे परिवर्तन की भेंट चढ़ ध्वस्त हो जाते हैं।
किसी भी नियम को स्थापित करने के पीछे मुख्य रूप से दो बातें प्रभावी होती हैं, पहली-भय और दूसरी-लोभ; लालच। इन दो बातों को विधिवत् प्रचारित कर आप किसी भी नियम को समाज में बड़ी सुगमता से स्थापित कर सकते हैं। धर्म में इन दोनों बातों का समावेश होता है। अत: हमारे समाज के तत्कालीन नीति-निर्धारकों ने वैज्ञानिक कारणों से होने वाले दुष्प्रभावों से जन-सामान्य को बचाने के उद्देश्य से अधिकतर धर्म का सहारा लिया।
जिससे यह दुष्प्रभाव आम जन को प्रभावित ना कर सकें किन्तु आज के सूचना और प्रौद्योगिकी वाले युग में जब हम विज्ञान से भलीभांति परिचित हैं तब इन बातों को समझाने हेतु धर्म का आधार लेकर आसानी से ग्राह्य ना हो सकने वाली बेतुकी दलीलें देना सर्वथा अनुचित सा प्रतीत होता है।
आज की युवा पीढ़ी रुढ़बद्ध नियमों को स्वीकार करने में झिझकती है। यही बात ग्रहण से सन्दर्भ में शत-प्रतिशत लागू होती है। आज की पीढ़ी को सूतक के स्थान पर सीधे-सीधे यह बताना अधिक कारगर है कि ग्रहण के दौरान चन्द्र व सूर्य से कुछ ऐसी किरणें उत्सर्जित होती हैं जिनके सम्पर्क में आ जाने से हमारे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और यदि ना चाहते हुए भी इन किरणों से सम्पर्क हो जाए तो स्नान करके इनके दुष्प्रभाव को समाप्त कर देना चाहिए। वर्तमान समय में ग्रहण का यही अर्थ अधिक स्वीकार व मान्य प्रतीत होता है।
-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया