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Written By Author सुरेश एस डुग्गर
Last Updated : सोमवार, 18 जनवरी 2021 (19:02 IST)

क्या वाकई कश्मीरी पंडितों की वापसी के लिए अनुकूल है माहौल..?

क्या वाकई कश्मीरी पंडितों की वापसी के लिए अनुकूल है माहौल..? - Jammu Kashmir Kashmiri Pandits
जम्मू। 31 सालों से अपने ही देश में निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे लाखों कश्मीरी विस्थापितों का यह दुर्भाग्य है कि उनकी कश्मीर वापसी प्रत्येक सरकार की प्राथमिकता तो रही है, लेकिन कोई भी सरकार फिलहाल उनकी वापसी के लिए माहौल तैयार नहीं कर पाई है। वर्तमान सरकार के साथ भी ऐसा ही है जिसका कहना है कि कश्मीर में सुरक्षा हालात फिलहाल ऐसे नहीं हैं कि कश्मीरी विस्थापितों को वापस लौटाया जा सके।
 
1989 के शुरू में आतंकी हिंसा में तेजी ने कश्मीरी पंडितों को कश्मीर घाटी का त्याग करने पर मजबूर कर दिया। सरकारी आंकड़ों के बकौल, पिछले 31 सालों में हजारों परिवारों के तकरीबन 3.5 लाख सदस्यों ने कश्मीर को छोड़ दिया। हालांकि अभी तक सभी सरकारें यही कहती आई थीं कि कश्मीरी पंडितों ने आतंकियों द्वारा खदेड़े जाने पर कश्मीर को छोड़ा था तो मुफ्ती मुहम्मद सईद की सरकार ऐसा नहीं मानती थी जिसके साझा न्यूनतम कार्यक्रम में कश्मीरी विस्थापितों की वापसी प्राथमिकता पर तो थी। लेकिन इस सरकार ने कई सालों के अरसे के बाद नया शगूफा छोड़ा था कि कश्मीरी पंडित अपनी मर्जी से कश्मीर से गए थे और किसी ने उन्हें नहीं निकाला था।
 
31 साल पहले कश्मीरी पंडितों ने कश्मीर का त्याग आप किया या फिर आतंकियों ने उन्हें खदेड़ा था, यह बहस का विषय है लेकिन वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सबसे अहम प्रश्न यह है कि दावों के बावजूद कश्मीरी पंडितों की वापसी का माहौल क्यों नहीं बन पा रहा है। वर्तमान केंद्र सरकार के दावों पर जाएं तो कश्मीर का माहौल बदला है। फिजां में बारूदी गंध की जगह केसर क्यारियों की खुशबू ने ली है। पर बावजूद इसके कश्मीर की कश्मीरियत का अहम हिस्सा समझे जाने वाले कश्मीरी पंडितों की वापसी के लिए माहौल नहीं है। ऐसा प्रदेश और केंद्र सरकारों के दस्तावेज भी कहते हैं।
 
ऐसा माहौल 31 सालों के बाद भी क्यों नहीं बन पाया है कहीं से कोई जवाब नहीं मिलता। प्रशासन के मुताबिक सबसे बड़ा मुद्दा सुरक्षा का है तो प्रशासन कहता है कि कश्मीरी विस्थापितों की वापसी तभी संभव हो पाएगी जब उनके जल और टूट-फूट चुके घरों की मरम्मत होगी। प्रशासन को इसके लिए कई सौ करोड़ रूपयों की जरूरत है। यह रुपया कहां से आएगा कोई नहीं जानता। यूं तो केंद्र सरकार भी कश्मीरी पंडितों की वापसी के लिए हरसंभव सहायता प्रदान करने को तैयार रहने का दावा करता रहा है पर रुपयों की बात आती थी तो केंद्र की प्रत्येक सरकार ने हमेशा ही चुप्पी साधी है, इन बरसों में।
 
वर्तमान प्रशासन के कई अधिकारी भी इसे स्वीकारते हैं कि कश्मीरी विस्थापितों की वापसी के लिए पहले जमीनी वास्तविकताओं का सामना करना होगा, जिनमें उनके वापस लौटने पर उनके रहने और फिर उनकी सुरक्षा का प्रबंध करना भी कठिन कार्य है। वैसे भी ये मुद्दे कितने उलझे हुए हैं यह इसी से स्पष्ट है कि विस्थापितों की वापसी को आसान समझने वाले अपने सुरक्षा प्रबंध पुख्ता नहीं कर पा रहे हैं तो साढ़े तीन लाख लोगों को क्या सुरक्षा दे पाएंगे वे कोई उत्तर नहीं देते।
 
कश्मीरी विस्थापित अपने खंडहर बन चुके घरों में लौटेंगे या नहीं, अगर लौटेंगे तो कब तक लौट पाएंगे इन प्रश्नों के उत्तर तो समय ही दे सकेगा मगर इस समय इन विस्थापितों के समक्ष सबसे बड़ा प्रश्न वापसी और सम्मानजनक वापसी का है। ऐसा भी नहीं है कि वे कश्मीर में वापस लौटने के इच्छुक न हों मगर उन्हें सम्मानजनक वापसी, अस्तित्व की रक्षा और पुनः अपनी मातृभूमि से पलायन करने की नौबत नहीं आएगी जैसे मामलों पर गारंटी और आश्वासन कौन देगा। अगर वे लौटेंगें तो रहेंगे कहां जैसे प्रश्नों से वे 31 सालों से जूझ रहे हैं।
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