जम्मू सीमा के गांवों से। युद्ध की आशंका के साथ साथ जम्मू कश्मीर पलायन से भी जूझ रहा है। पिछले 15 दिनों के भीतर 50 हजार से अधिक लोग पलायन की त्रासदी का शिकार हो चुके हैं। सबसे अधिक पलायन करने वालों की संख्या जम्मू-कश्मीर सीमा पर है जहां से 40-50 हजार लोग सुरक्षित स्थानों पर चले गए हैं।
जम्मू सीमा के लोगों को पलायन के लिए मजबूर इसलिए होना पड़ा है क्योंकि पाक सेना ने गोलाबारी जारी रखने के साथ ही सीमा पार अपनी गतिविधियों को तेज करने के साथ ही हजारों की संख्यां में जवानों व टैंकों के अतिरिक्त तोपखानों को तैनात कर युद्ध की आशंका को बल दिया है।
कठुआ जिले की पहाड़पुर सीमा चौकी से लेकर अखनूर सैक्टर में भूरे चक तक के अंतरराष्ट्रीय सीमा के क्षेत्रों, राजौरी पुंछ की एलओसी तथा कश्मीर सीमा के क्षेत्रों में सीमा से सटे गांवों में आज शायद ही कोई ऐसा गांव होगा जो पाकिस्तानी गोलाबारी व गोलीबारी से त्रस्त न होगा। पाक सेना सैनिक ठिकानों के साथ-साथ नागरिक ठिकानों को भी निशाना बना रही है।
चानना, चपरायल, चन्नी, पल्लांवाला, नौशहरा, झंगर, आदि कुछ ऐसे नाम हो गए हैं, अब जम्मू कश्मीर की सीमा पर जहां से पलायन करने वालों का सिलसिला जारी है। सीमा क्षेत्रों में सामान उठा सुरक्षित स्थानों की ओर जाते हुए लोगों के काफिलों को देखा जा सकता है।
हालांकि कई गांवों को भारतीय सुरक्षबलों ने खाली करवाया है। इंटरनेशनल बॉर्डर तथा एलओसी पर भारतीय सेना ने उन कुछ गांवों को अवश्य खाली करवाया है, जो पाक सेना के सीधे निशाने बन रहे थे। अधिकारी कहते हैं कि इन गांवों को खाली करवाने के अतिरिक्त उनके पास कोई चारा इसलिए नहीं था क्योंकि अगर वे ऐसा न करते तो नागरिकों के हताहत होने की आशंका बनी रहती।
एलओसी के गांवों से पलायन करने वाले अधिकतर लोग जिला मुख्यालयों में आ गए हैं। तो इंटरनेशनल बॉर्डर से पलायन करने वाले रक्षा खाई के पीछे के गांवों में। हालांकि युद्ध की घोषणा नहीं हुई है, लेकिन अपना कीमती सामान उठा लोगों का इधर-उधर जाना तेजी से चल रहा है। लेकिन पिछले दो युद्धों के पलायन तथा इस बार के पलायन में खास अंतर यह है कि लोग अपना सब कुछ उठाकर जा रहे हैं।
हालांकि 1965 तथा 1971 के भारत-पाक युद्ध में लोग मात्र कीमती सामान ही उठाकर ले गए थे। इस बार वे कहते हैं कि उनकी हरेक चीज कीमती है और वे ऐसी अवस्था में नहीं हैं कि किसी भी वस्तु को पाक गोलियों के निशाने बनने के लिए छोड़ दें।
पलायन करने वाले चाहते हैं कि उनके जान-माल की सुरक्षा की गारंटी मिले तो वे पलायन नहीं करेंगे मगर उन्हें ऐसी गारंटी देने को कोई तैयार नहीं। असल में लोग युद्ध की संभावना को बहुत ही करीब से देख रहे हैं और यह आशंका प्रकट कर रहे हैं कि इस बार युद्ध होकर ही रहेगा। इसलिए वे समय रहते अपनी तथा अपने परिवार की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम कर लेना चाहते हैं।
पल्लांवाला से पलायन कर अखनूर में डेरा डालने वाले थोड़ूराम का मानना है कि मौत उन्हें कहीं भी घेर सकती है। मगर वे बाद में इसका अफसोस नहीं करना चाहते कि उन्होंने जान बचाने की खातिर कोई पहल नहीं की। थोड़ूराम और उसके गांववाले दो बार पहले भी युद्ध की विभीषिका का शिकार हो चुके हैं।
रक्षाधिकारियों ने हालांकि इस पलायन पर टिप्पणी करने से इंकार तो किया है मगर वे इसके पक्ष में हैं। उनका कहना है कि पाकिस्तान किसी भी समय अप्रत्याशित हमला करने की पहल कर सकता है और ऐसे में नागरिकों को सुरक्षित स्थानों तक पहुंचाना कठिन होता है और जो लोग कर रहे हैं वह उचित है।