पिछले दो महीने से वैसे तो कश्मीर घाटी में कोई इलाका ऐसा नहीं है, जहां तनाव न पसरा हो या नौजवानों और सुरक्षाबलों के बीच टकराव की आशंका न रहती हो, मगर श्रीनगर के डाउनटाउन इलाके की बात ही कुछ और है। कुछ स्थानीय लोगों का दावा है कि पिछले 30 साल में इस इलाके के करीब 10 हजार लोग सुरक्षाबलों के हाथों मारे जा चुके हैं।
हालांकि यह आंकड़ा आधिकारिक नहीं है और न ही इस दावे की किसी तरह पुष्टि की जा सकती है। जो भी हो, यह इलाका है बेहद तनावपूर्ण। इसीलिए यहां प्रशासन ने भारी मात्रा सुरक्षाबलों को तैनात कर रखा है। सुरक्षाबलों यह तैनाती भी यहां तनाव की एक बड़ी वजह है, क्योंकि इस इलाके के लोग सुरक्षाबलों को अपना दुश्मन मानते हैं और उन्हें देखते ही भड़क उठते हैं।
यह श्रीनगर का सबसे पुराना इलाका है। बिलकुल पुरानी दिल्ली या किसी भी पुराने शहर जैसा। करीबन 3 वर्ग किलोमीटर में फैले इस इलाके में ज्यादातर मकान पुराने हैं। तीन दशक पहले कश्मीरी पंडित भी इस इलाके में बड़ी तादाद में रहते थे। पंडितों के इक्का-दुक्का परिवार इस इलाके के गली-मोहल्लों में अभी भी रहते हैं। जो परिवार घाटी छोड़कर जा चुके हैं, उनमें से ज्यादातर ने अपने मकान बेच दिए हैं। जिन्होंने अपने मकान नहीं बेचे हैं, उनके मकान खाली पड़े-पड़े खंडहर की शक्ल लेते जा रहे हैं। ऐतिहासिक महत्व की कई मस्जिदें और दरगाहें भी इसी इलाके में हैं।
यह इलाका कश्मीर में हर तरह के आंदोलनों का केंद्र रहा है, चाहे वह अलगाववादी आंदोलन हो या फिर कोई राजनीतिक-सामाजिक आंदोलन। तीन दशक पहले यही इलाका उस समय के केंद्रीय गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबैया सईद के अपहरण और फिर उसकी रिहाई के लिए आतंकवादियों को छोडे जाने के बहुचर्चित वाकये का भी गवाह रहा है।
उसी दौर में इस इलाके में मीरवायज मौलवी फारूक की हत्या और फिर उन्हें दफनाकर लौट रही भारी-भरकम भीड़ पर सुरक्षा बलों के गोली चालन से 50 से ज्यादा लोगों के मारे जाने की घटना यहां अधेड़ावस्था पार कर चुकी पीढ़ी के लोगों के जेहन में आज भी ताजा है। डाउनटाउन में ही एक इलाका है नौहट्टा। मुफ्ती मोहम्मद सईद की अपह्त बेटी को को छुड़ाने के लिए सरकार ने जिन 5 आतंकवादियों को छोड़ा था उनमें से एक मुश्ताक जरगर इसी नौहट्टा का रहने वाला था।
इसी इलाके के नौहट्टा रोड पर स्थित जामा मस्जिद कश्मीर घाटी की मस्जिदों में न सिर्फ सबसे बड़ी है बल्कि इसका ऐतिहासिक महत्व भी है। तकरीबन 500 साल पुरानी इस मस्जिद का निर्माण सुल्तान सिकंदर ने करवाया था। पांच अगस्त के बाद आक्रोश के भड़कने की आशंका के चलते प्रशासन ने लोगों को अभी तक इस मस्जिद मे नमाज पढ़ने की इजाजत नहीं दी है, लिहाजा आज भी मस्जिद बंद है और उसके चारों तरफ सुरक्षा बलों के जवान तैनात हैं।
इस साल यह पहला मौका था जब इस मस्जिद में ईद की नमाज भी नहीं हो सकी। शिया मुसलमानों की आबादी भी इस इलाके में खासी है। प्रशासन ने उन्हें भी मोहर्रम के मौके पर निकलने वाले पारंपरिक जुलूस या दूसरे धार्मिक आयोजनों की इजाजत नहीं दी।
मस्जिद वाले मार्ग पर मकानों और दुकानों की दीवारों पर सरकार और भारत विरोधी नारे लिखे हुए हैं, जिनमें से कुछ को सुरक्षाबलों के जवानों ने या तो मिटा दिया है या फिर उन्हें थोड़ा बदल दिया है, जिससे उनका अर्थ बदल जाता है। मसलन अंग्रेजी में लिखे गो इंडिया को गुड इंडिया कर दिया गया है। वैसे इस तरह के नारे डाउनटाउन ही नहीं बल्कि श्रीनगर तथा कश्मीर घाटी के अन्य शहरों और कस्बों में भी लिखे हुए देखे जा सकते हैं।
डाउनटाउन इलाके में वीडियो शूट करना या फिर कैमरे से तस्वीरें लेना भी बेहद जोखिम भरा काम है। ऐसा करने पर सुरक्षा बल के जवान एतराज जताने के साथ ही गिरफ्तारी भी कर सकते है। या फिर ऐसा करने वाला शख्स पहले से ही मीडिया से नाराज जनता के रोष का शिकार बन सकता है। इसी इलाके में सरकार के उस दावे की पोल भी खुल जाती है कि अब कश्मीर में कहीं पत्थरबाजी की घटनाएं नहीं हो रही हैं।
स्थानीय पत्रकार बताते हैं कि यहां किसी भी वक्त पत्थरबाजी हो जाती है और इन दिनों भी रात के वक्त तो अक्सर होती ही रहती है। इस इलाके में मीडियाकर्मियों का घूमना या सड़क पर किसी बात करना भी बेहद जोखिम भरा है। यह जोखिम दोतरफा है। स्थानीय नौजवान आपको कश्मीर में बाहर से आया पत्रकार या किसी सरकारी एजेंसी का आदमी समझकर आप पर पत्थर चला सकते हैं या फिर सुरक्षा बल के जवान पत्थरबाज समझकर आपको गिरफ्तार कर सकते हैं, आपकी पिटाई कर सकते हैं या आपको पैलेट गन का निशाना बना सकते हैं।
जिस समय हम लोग दो स्थानीय पत्रकार मित्रों के साथ इस इलाके में घूमते हुए वहां तैनात सीआरपीएफ के जवानों से बात कर रहे थे, तभी कुछ दूरी से पत्थरबाजी शुरू हो गई थी। शायद सुरक्षाबलों के जवानों से हमारा बात करना वहां मौजूद युवकों को रास नहीं आया और उन्होंने पत्थर चला दिए। दस-बारह पत्थर हम लोगों की ओर फेंके गए। हालांकि हम लोगों में से किसी को पत्थर नहीं लगा।
पत्थर चलने के साथ ही सुरक्षा बलों जवान भी सक्रिय हो गए और उन्होंने वज्र वाहन से पेट्रोलिंग शुरू कर दी। हम लोग भी दौड़कर एक गली में चले गए थे और सुरक्षा बलों के सक्रिय होते ही पत्थरबाज नौजवान भी गायब हो गए थे। बाद में हमारे साथ मौजूद स्थानीय पत्रकार मित्रों ने हमें हिदायत दी कि हम सुरक्षा बल के किसी भी जवान से उसके करीब जाकर बात न करें और उससे हाथ मिलाने की गलती तो कतई न करें।
हमें बताया गया जिस तरफ से हमारी ओर पत्थर आए थे उसी गली से तकरीबन 25 युवकों को हिरासत में लिया गया है और उनका अभी तक कोई पता नहीं चल सका है, जिसकी वजह से इलाके के दूसरे नौजवानों में गुस्सा है। यह पत्थरबाजी भी उसी गुस्से का ही नतीजा है। (इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)