देवबंद। प्रमुख मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद (महमूद मदनी समूह) के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने रविवार को कहा कि जो लोग मुसलमानों से देश छोड़ने की बात कहते हैं वे खुद देश छोड़कर चले जाएं। संगठन ने अधिवेशन के दूसरे दिन वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा की शाही ईदगाह तथा समान नागरिक संहिता पर प्रस्ताव पारित किए और एक घोषणापत्र जारी कर सभी मुसलमानों को डर, निराशा और भावुकता से दूर रहने तथा अपने भविष्य की बेहतरी के लिए काम करने की सलाह दी।
संगठन की ओर से जारी एक बयान के मुताबिक, मदनी ने समान नागरिक संहिता लागू करने की कुछ राज्यों की योजना पर आपत्ति जताते हुए कहा कि इससे समुदाय के लोगों को डरने की जरूरत नहीं है। उन्होंने मुस्लिम समुदाय से धर्म के प्रति आस्थावान बने रहने और दृढ़ता का परिचय देने की गुजारिश की।
राज्यसभा के पूर्व सदस्य जमीयत की प्रबंधन समिति के सालाना दो दिवसीय अधिवेशन के अंतिम दिन आयोजित सत्र को संबोधित कर रहे थे। मौलाना मदनी ने कहा कि हम नहीं जाएंगे, जिसे हमें भेजने का शौक है वो यहां से चला जाए।
उन्होंने यह भी कहा कि राष्ट्र निर्माण के लिए जो लोग हमख्याल हैं उनको साथ लेना है। समझदारी, हिम्मत और दीर्घकालिक रणनीति के तहत नफरत के सौदागरों को हराना है। संगठन के बयान के मुताबिक, जमीयत उलेमा-ए-हिंद की असम इकाई के अध्यक्ष और लोकसभा सदस्य मौलाना बदरुद्दीन अजमल ने सरकार के रवैये की आलोचना करते हुए कहा कि मुसलमानों की चुप्पी को कमजोरी नहीं समझा जाना चाहिए।
बयान में कहा गया कि ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा ईदगाह से संबंधित प्रस्ताव में संगठन ने कि प्राचीन इबादतगाहों पर बार-बार विवाद खड़ा करके देश में अमन व शांति को ख़राब करने वाली शक्तियों और उनको समर्थन देने वाले राजनीतिक दलों के रवैये पर गहरी नाराज़गी ज़ाहिर की है। पुराने विवादों को जीवित रखने और इतिहास की कथित ज़्यादतियों एवं गलतियों को सुधारने के नाम पर चलाए जाने वाले आंदोलनों से देश का कोई फ़ायदा नहीं होगा।
प्रस्ताव में कहा गया है कि बनारस की ज्ञानवापी मस्जिद,मथुरा की ऐतिहासिक ईदगाह और दीगर (अन्य) मस्जिदों के खिलाफ़ इस समय ऐसे अभियान जारी हैं, जिससे देश में अमन शांति और उसकी गरिमा एवं अखंडता को नुकसान पहुंचा है।
इसमें आरोप लगाया गया है कि अब इन विवादों को उठाकर सांप्रदायिक टकराव और बहुसंख्यक समुदाय के वर्चस्व की नकारात्मक राजनीति के लिए अवसर निकाले जा रहे हैं। इस प्रस्ताव में पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 और रामजन्म भूमि व बाबरी मस्जिद विवाद पर उच्चतम न्यायालय के फैसले का भी हवाला दिया गया है।
समान नागरिक संहिता से संबंधित प्रस्ताव में संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों से वंचित करने की कोशिश करने का आरोप लगाया गया है और इस पर चिंता व्यक्त की गई है। प्रस्ताव के मुताबिक, मुस्लिम पर्सनल कानून में शामिल शादी, तलाक़, ख़ुला (बीवी की मांग पर तलाक़), विरासत आदि के नियम इस्लाम धर्म के आदेशों का हिस्सा हैं जो कुरान और हदीस (पैंगबर मोहम्मद की शिक्षाओं) से लिए गए हैं।
इसमें कहा गया है कि उनमें किसी तरह का कोई बदलाव या किसी को उनका पालन करने से रोकना इस्लाम में स्पष्ट हस्तक्षेप और भारत के संविधान के अनुच्छेद 25 में दी गई गारंटी के खिलाफ़ है। प्रस्ताव में कहा गया है कि जमीयत उलेमा-ए-हिंद का यह सम्मेलन स्पष्ट कर देना चाहता है कि कोई मुसलमान इस्लामी क़ायदे क़ानून में किसी भी दख़ल अंदाज़ी को स्वीकार नहीं करता। इसमें यह भी कहा गया है कि अगर सरकार समान नागरिक संहिता को लागू करने की कोशिश करेगी तो संविधान के दायरे में रहकर इसे रोकने की कोशिश की जाएगी।
अधिवेशन में इस्लाम के अंतिम पैंगबर मोहम्मद के खिलाफ कथित अपमानजनक टिप्पणी के लिए भाजपा नेता नूपुर शर्मा की निंदा भी की गई है और मांग की गई कि सरकार जल्द से जल्द ऐसा कानून बनाए जिससे मौजूदा कानून-व्यवस्था की अराजकता खत्म हो, इस तरह के शर्मनाक अनैतिक कृत्यों पर अंकुश लगे और सभी धर्मों के महापुरुषों का सम्मान हो।'
अधिवेशन में 11 अलग-अलग प्रस्ताव पारित किए गए जिनमें इस्लामोफ़ोबिया देश के हालात, शिक्षा, इजराइल-फलस्तीन मुद्दा, ज्ञानवापी मस्जिद, शाही ईदगाह पर विवाद और समान नागरिक संहिता समेत अन्य शामिल हैं। संगठन के लगभग दो हजार सदस्यों और अन्य अतिथियों ने अधिवेशन में भाग लिया। जमीयत-उलेमा-ए-हिंद की स्थापना 1920 में हुई थी। इसने आजादी के आंदोलन में अहम भूमिका निभाई थी। संगठन ने 1947 में बंटवारे का विरोध किया था। जमीयत देश में मुसलमानों के कल्याण के लिए काम करने वाला सबसे बड़ा संगठन है। (भाषा)