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Last Modified: बुधवार, 8 जून 2022 (12:25 IST)

दुनियाभर के 180 देशों की पर्यावरण रैंकिंग में भारत सबसे निचले स्थान पर, जानिए क्या है वजह?

दुनियाभर के 180 देशों की पर्यावरण रैंकिंग में भारत सबसे निचले स्थान पर, जानिए क्या है वजह? india gets last rank among 180 countries in world environment index 2022 - india gets last rank among 180 countries in world environment index 2022
नई दिल्ली। दुनियाभर के देशों के पर्यावरण प्रदर्शन का आंकलन करने वाले सूचकांक 'वर्ल्ड एनवायरनमेंट इंडेक्स (ईपीआई) 2022' में भारत ने 180 देशों की सूची में सबसे निचला स्थान पाया है। इसके अंतर्गत ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन, वायु की गुणवत्ता, जलवायु परिवर्तन जैसे 40 मापदंडों के तहत सभी देशों का विश्लेषण किया जाता है।
 
हाल ही में प्रकाशित ईपीआई 2022 की सूची में डेनमार्क ने पहला स्थान पाया है। ब्रिटैन और फिनलैंड दूसरे और तीसरे पायदान पर रहे। अन्य देशों की तुलना में पर्यावरण के लिए हानिकारक गैसों का कम उत्सर्जन करने के लिए ये देश टॉप-3 में रहे। 
 
ये आंकलन कोलंबिया यूनिवर्सिटी के ‘सेंटर फॉर इंटरनेशनल अर्थ साइंस इंफॉर्मेशन नेटवर्क' और ‘येल सेंटर फॉर एनवायर्नमेंटल लॉ एंड पॉलिसी’ किया जाता है। भारत के लिए ईपीआई का कहना है कि वायु के लगातार गिरते स्तर और तेजी से बढ़ते ग्रीनहाउस गैस (मुख्यतः कार्बन-डाईऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड) उत्सर्जन के चलते भारत को सबसे निचले स्थान पर है।
 
ये रिपोर्ट पर्यावरण की स्थिति से संबंधित 11 अहम श्रेणियों जैसे जलवायु परिवर्तन, पर्यावरणीय स्वास्थ, जैव विविधता आदि में 40 परफॉरमेंस इंडिकेटर्स के आधार पर रैंकिंग करती है। रिपोर्ट के अनुसार अंतिम रैंकिंग का मतलब है कि भारत ने पर्यावरण को अनुकूल बनाए रखने के लिए जरूरी नीतियां ठीक से लागू नहीं की। पहला स्थान प्राप्त करने वाले डेनमार्क को ईपीआई ने 81.60 अंक दिए हैं, वहीं भारत का स्कोर इस वर्ष 18.9 ही रहा।
 
भारत में क्यों हुआ हीटवेव का प्रकोप : रिपोर्ट का कहना है कि भारत में बड़े पैमाने पर वृक्षों की कटाई के कारण ऑक्सीजन के स्तर में गिरावट आई है, यही वजह है कि गर्मियों में इस वर्ष भारत के कई राज्यों पर 'हीटवेव' का भयंकर प्रकोप देखने को मिला। 
 
पर्यावरणीय स्वास्थ में भारत को मिले 12.5 अंकों का मुख्य कारण खराब वायु गुणवत्ता और बड़े पैमाने पर पीने के पानी में औद्योगिक अपशिष्टों का समाहित होना है। इसके अलावा समुद्री प्लास्टिक को रिसाइकल करने के मामले में भी हमारा प्रबंधन खराब रहा है। 
 
आर्थिक विकास को प्राथमिकता : ईपीआई टीम ने अपने विश्लेषण के आधार पर कहा है कि पिछले कुछ वर्षों में भारत ने पर्यावरण स्थिरता से ज्यादा आर्थिक विकास को प्राथमिकता दी है। देखा जाए तो सबसे कम अंक उन देशों को दिए जाते हैं जिनके नागरिक अशांति या आर्थिक संकट का सामना कर रहें हैं। इसके अलावा बांग्लादेश, पाकिस्तान, वियतनाम और भारत जैसे देश जो आर्थिक विकास पर पर्यावरणीय स्थिरता से ज्यादा ध्यान देते हैं। 
 
पहले कैसा रहा है भारत का प्रदर्शन : ईपीआई की रिपोर्ट 2 वर्षों में एक बार प्रकाशित की जाती है। इसके पहले भी ईपीआई में भारत का प्रदर्शन कुछ अच्छा नहीं रहा। भारत 2020 में 168वे, 2018 में 177वे स्थान पर था। लेकिन, इस बार अंतिम स्थान पर आना इस बात की ओर संकेत करता है कि भारत के नागरिकों और सरकार को पर्यावरण स्थिरता के विषय में विचार करना होगा।  
रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि आमतौर पर शहरीकरण और औद्योगीकरण पर्यावरण को दूषित करने के मुख्य कारक होते हैं। दुनियाभर के नीति निर्माताओं के लिए यह एक चुनौती है कि उनका उद्देश्य शहरों के लिए ऐसी योजनाओं का विकास करना है, जिससे उनके नागरिकों के आस-पास का वातावरण रहने योग्य बना रहे। 
 
संयोग की बात तो ये है कि ईपीआई की रैंकिंग के 2 दिन पूर्व ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'लाइफस्टाइल फॉर द एनवायरनमेंट' (LiFE) नामक वैश्विक आंदोलन की शुरुआत की थी, जिसके तहत उन्होंने सभी देशों के ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण पर केंद्रित जीवन शैली का पालन करते हुए जलवायु संकट को दूर करने के आंदोलन में शामिल होने का आह्वान किया था। 
 
इसके बाद भी ईपीआई में भारत का स्कोर केंद्र द्वारा की गई घोषणाओं के विपरीत प्रतीत होता है। उदाहरण के तौर पर, पीएम मोदी ने पर्यावरण दिवस पर कहा कि भारत ने इस वर्ष पेट्रोल में 10% इथेनॉल मिश्रण का लक्ष्य हासिल कर लिया है। इसके चलते 27 लाख टन कार्बन उत्सर्जन में कमी आई है और इथेनॉल सम्मिश्रण की वजह से 41 हजार करोड़ की विदेशी मुद्रा की भी बचत हुई है। 
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