नई दिल्ली, केंद्रीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी; राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) पृथ्वी विज्ञान; राज्य मंत्री पीएमओ, कार्मिक, लोक शिकायत, पेंशन, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष, डॉ जितेंद्र सिंह ने स्वतंत्रता पूर्व युग में भारतीय वैज्ञानिकों की भूमिका को याद किया।
आगामी 25 वर्षों के बाद जब भारत अपनी स्वतंत्रता के 100 वर्ष का उत्सव मना रहा होगा, तब तक देश को विश्व गुरू बनाने के लिए उन्होंने वैज्ञानिकों की वर्तमान पीढ़ी से जमीन तैयार करने का आह्वान किया।
"भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और विज्ञान की भूमिका" विषय पर आयोजित विज्ञान संचारकों और शिक्षकों के एक राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए, डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में, भारत ने पिछले सात वर्षों में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में बड़ी छलांग लगायी है। उन्होंने दोहराया कि भारत विकास पथ पर तेजी से आगे बढ़ रहा है, जिसमें विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी भविष्य के प्रमुख निर्धारक तत्व होंगे।”
डॉ जितेंद्र सिंह ने महात्मा गांधी को महानतम वैज्ञानिक रणनीतिकारों में से एक बताया, जिन्होंने अहिंसा के अपने हथियार के माध्यम से ब्रिटिश साम्राज्य की अधीनता और आक्रामकता के खिलाफ वैज्ञानिक तरीके से संघर्ष छेड़ा। उन्होंने आगे बताया कि बापू और उनके कई समकालीन लोगों ने भी अंग्रेजों के खिलाफ अनशन जैसे मनोवैज्ञानिक तरीकों को अपनाया।
डॉ जितेंद्र सिंह ने प्रख्यात जीव-विज्ञानी, भौतिक-विज्ञानी, वनस्पतिशास्त्री और विज्ञान कथा के आरंभिक लेखकों में शुमार किए जाने वाले सर जगदीश चंद्र बोस को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा, ब्रिटिशकालीन भारत में, वैज्ञानिकों द्वारा प्रदर्शित देशभक्ति के उत्साह ने इस आंदोलन में राष्ट्रवादी भावना को जोड़ा।
उन्होंने कहा, हमारे देश के स्वतंत्रता आंदोलन में हम राजनीतिक नेताओं के बलिदान और संघर्ष को याद करते हैं, लेकिन दूसरी तरफ हमारे वैज्ञानिकों ने भी ब्रिटिश शासन की भेदभावपूर्ण नीति के खिलाफ संघर्ष किया, और उसका विरोध किया।
डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा कि आजादी का अमृत महोत्सव देश की आजादी के 75वें वर्ष से सम्बद्ध है, जो हमारे अतीत के विज्ञान नायकों को याद करने का अवसर प्रदान करता है। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान वैज्ञानिकों, विज्ञान संचारकों और विज्ञान शिक्षकों की अदम्य भावना को सलाम करते हुए, केंद्रीय मंत्री ने कहा, हमें व्यक्तिगत, संस्थागत और आंदोलनों के रूप में उनके बेजोड़ योगदान को याद रखना चाहिए, जिन्होंने हमारे वर्तमान विज्ञान और प्रौद्योगिकी की नींव रखी।
डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा, औपनिवेशिक युग के दौरान "आत्मनिर्भरता" की दृष्टि ने भारतीय वैज्ञानिकों और देशभक्तों को अपने वैज्ञानिक संस्थान और उद्योग स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित किया। डॉ. महेंद्रलाल सरकार ने वर्ष 1876 में इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस की स्थापना की। आचार्य पी.सी. रे ने 1901 में द बंगाल केमिकल ऐंड फार्मास्युटिकल वर्क्स की स्थापना की, जो हमारे देश में स्वदेशी उद्योग की आधारशिला थी। डॉ सिंह ने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारतीय वैज्ञानिकों ने सामाजिक सद्भाव, समानता, तार्किक दृष्टिकोण, धर्मनिरपेक्षता और सार्वभौमिकता पर जोर दिया।
"भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और विज्ञान की भूमिका" केंद्रित इस सम्मेलन में, 'दमन के उपकरण के रूप में विज्ञान', 'मुक्ति के उपकरण के रूप में विज्ञान: वैज्ञानिकों की भूमिका', 'मुक्ति के उपकरण के रूप में विज्ञान: अकादमिक, औद्योगिक एवं अनुसंधान संस्थानों की भूमिका', 'मुक्ति के उपकरण के रूप में विज्ञानः आंदोलनों की भूमिका', मुक्ति के उपकरण के रूप में विज्ञानः नीतियों एवं योजनाओं की भूमिका', और मुक्ति के उपकरण के रूप में विज्ञानः वैज्ञानिकों का दृष्टिकोण' जैसे विषय शामिल थे।
कोविड-19 के खतरे को देखते हुए यह सम्मेलन हाइब्रिड (ऑनलाइन एवं ऑफलाइन) रूप में आयोजित किया गया। लगभग 3500 प्रतिभागी व्यक्तिगत और ऑनलाइन रूप से इस सम्मेलन में शामिल हुए।
यह सम्मेलन सीएसआईआर-राष्ट्रीय विज्ञान संचार एवं नीति अनुसंधान संस्थान (निस्पर), विज्ञान प्रसार और विज्ञान भारती द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया है।
(इंडिया साइंस वायर)