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Last Updated : सोमवार, 23 सितम्बर 2019 (13:25 IST)

हरियाणा में विपक्ष का बिखराव, भाजपा के 75 पार के टारगेट को बना रहा आसान ?

हरियाणा में विपक्ष का बिखराव, भाजपा के 75 पार के टारगेट को बना रहा आसान ? - Haryana Assembly election political equations
हरियाणा विधानसभा चुनाव की तारीखों के एलान के बाद अब अगले एक महीने तक सियासी शह और मात का खेल चलेगा। लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे के सहारे भाजपा ने सूबे की सभी 10 सीटों पर अपना कब्जा जमाया था।

ऐसे में लोकसभा चुनाव होने के चार महीने के कम अंतराल के बाद एक बार चुनावी बिसात बिछ गई है तब भाजपा अपने विरोधियों पर काफी भारी पड़ती दिख रही है। भाजपा जिसने 2014 के विधानसभा चुनाव में 47 सीटों पर अपना कब्जा जमाया था उसने इस बार 75 पार का नारा दिया है। ऐस में सवाल यहीं है कि देश की सियासत के बदले माहौल और हरियाणा में विपक्ष के बिखराव से क्या भाजपा अपना यह नारा भी लोकसभा चुनाव की तर्ज पर पूरा कर लेगी।  
 
हरियाणा में चुनाव के वक्त विपक्ष पूरी तरह बिखरा नजर आ रहा है। सूबे में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस में आपसी खींचतान इस कदम मचा हुआ है कि तारीखों के एलान से पहले पार्टी हाईकमान को कुमारी शैलजा को प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपनी पड़ी। वहीं ठीक चुनाव से पहले पार्टी बगावती तेवर दिखाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के सामने सरेंडर करती थी।

जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने पर मोदी सरकार का समर्थन करने वाले हुड्डा अब पार्टी की उस समिति के मुखिया जो पार्टी के उम्मीदवारों के टिकट फाइनल करेगी। हरियाणा की राजनीति के जानकार बताते हैं कि हुड्डा को चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाए जाने से पार्टी के गहरा अंसतोष है। 
 
चुनाव से ठीक पहले अपने समर्थकों के साथ शक्ति प्रदर्शन करने वाले हुड्डा पर अपने समर्थकों को टिकट दिलाने में तरजीह देने के आरोप टिकट बंटवारे से पहले ही लगने शुरु हो गए है। ऐसे में कांग्रेस जो अंदरुनी खींचतान और उठापटक से जूझ रही है वह कितना चुनौती दे पाएगी यह देखना होगा। 
 
साख बचाने में जुटा चौटाला परिवार - हरियाणा में सात बार मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने वाले परिवार चौटाला परिवार विधानसभा चुनाव में बिखरा हुआ नजर आ रहा है। हरियाणा के पांच बार मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला के जेल में होने और पार्टी के साथ ही परिवार में दो फाड़ होने से चौटाला परिवार के समाने साख का संकट आ खड़ा हुआ है। सूबे में आमतौर पर चुनावी मुकाबला त्रिकोणीय होता आया है।

सूबे के सबसे मजूबत क्षेत्रीय दल ओम प्रकाश चौटाला के पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल चुनावी बिसात पर अच्छी पकड़ रखती आई है, लेकिन इस बार चुनाव में वह कहीं भी लड़ाई में नजर नहीं आ रही है। लोकसभा चुनाव में पार्टी के उम्मीदवारों की बुरी तरह हारने से और इनेलो में दो फाड़ होना इसकी बड़ी वजह है। 
 
ओम प्रकाश चौटाला के पौत्र दुष्यंत चौटाला के अलग होकर जननायक जनशक्ति पार्टी बनाने से पार्टी की धार कुंद हो गई है। 2014 के विधानसभा चुनाव में इडियन नेशनल लोकदल भाजपा के बाद दूसरी नबंर की सबसे बड़ी पार्टी के रुप में 19 सीटों पर अपना कब्जा जमाया था, लेकिन मौजूदा समय में पार्टी के पास सिर्फ दो ही विधायक बचे है। 
 
लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी में ऐसी भगदड़ मची की पार्टी के एक दर्जन विधायकों ने चौटाला परिवार का साथ छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया। वहीं चार विधायक परिवार के ही दूसरी पार्टी जजपा में चले गए।

विधानसभा चुनाव में अपनी साख की लड़ाई लड़ रहा चौटाला परिवार को इस समय अपने अपने मुखिया ओम प्रकाश चौटाला की कमी बेहद खल रही है जो जेबीटी घोटाले के मामले में जेल की सलाखों के पीछे है। 
ऐसे में अब सूबे की सबसे शक्तिशाली क्षेत्रीय पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल भाजपा से लड़ने की बजाय उसके  परिवार में ही चाचा-भतीजे की लड़ाई होती दिख रही है।
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