शनिवार, 28 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. समाचार
  2. मुख्य ख़बरें
  3. राष्ट्रीय
  4. Exclusive conversation with IT and cyber law expert Pawan Duggal
Written By Author विकास सिंह
Last Updated : बुधवार, 6 जुलाई 2022 (13:30 IST)

सुप्रीम कोर्ट को टारगेट कर सोशल मीडिया ने पार की लक्ष्मण रेखा, वेबदुनिया से बोले पवन दुग्गल, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमा तय करें SC

सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सुप्रीम कोर्ट करें परिभाषित: पवन दुग्गल

सुप्रीम कोर्ट को टारगेट कर सोशल मीडिया ने पार की लक्ष्मण रेखा, वेबदुनिया से बोले पवन दुग्गल, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमा तय करें SC - Exclusive conversation with IT and cyber law expert Pawan Duggal
देश में सोशल मीडिया को लेकर बहस तेज हो गई है। पैंगबर मोहम्मद पर विवादित बयान देने वाली नुपूर शर्मा को फटकार लगाने वाले सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जेबी पारदीवाला ने सोशल मीडिया पर नियमन की बात कही है। जस्टिस पारदीवाला को यह बात तब कहनी पड़ी जब लोगों ने सोशल मीडिया पर नुपूर शर्मा मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट की गई टिप्पणी को लेकर उसके खिलाफ मोर्चा खोल दिया। ऐसे में नुपूर शर्मा मामले पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी और सोशल मीडिया पर छिड़ी बहस के बीच अब देश में सोशल मीडिया के नियमन के लिए सख्त कानून बनाने की मांग तेज हो गई है। 
 
आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने सोशल मीडिया को जवाबदेही बनाने की बात कही है। ऐसे में अब सरकार सोशल मीडिया पर नकेल कसने के लिए कड़े कानून को बनाने के पूरी तैयारी में है। चर्चा इस बात की भी है कि सरकार ने सोशल मीडिया पर मनमानी पोस्ट पर नकेल कसने के लिए कानून का मसौदा तैयार कर लिया है और जल्द ही इसे लागू कर सकती है। 
 
‘वेबदुनिया’ ने देश के जाने माने साइबर लॉ एक्सपर्ट और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील पवन दुग्गल से खास बातचीत कर इस बात को समझने की कोशिश कि आखिर सोशल मीडिया के नियमन कितना जरूरी है और सरकार को इसके लिए कैसे और क्या कदम उठाना चाहिए। 
 
सोशल मीडिया ने सुप्रीमकोर्ट को टारगेट कर पार की लक्ष्मण रेखा-
‘वेबदुनिया’ से बातचीत में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील पवन दुग्गल कहते हैं कि अब समय आ गया है कि साइबर स्पेस में खासकर सोशल मीडिया का नियंत्रण करना बहुत जरूरी हो गया है क्योंकि लोग अपनी लक्ष्मण रेखा पार कर रहे है। सोशल मीडिया अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तो देता है कि लेकिन यह लाइसेंस नहीं देता है कि आप अभिव्यक्ति की नाम पर किसी संस्था की गरिमा को ठेस पहुंचाए। 
 
अब तक सोशल मीडिया पर लोगों को टारगेट किया जाता था लेकिन आज पहली बार संविधान के संरक्षक सुप्रीम कोर्ट और उसके कार्य को सोशल मीडिया के जरिए टारेगट किया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट एक संवैधानिक संस्था है और संविधान का एक मजबूत स्तंभ है। ऐसे में अगर सोशल मीडिया पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय या टिप्पणी को लेकर न्यायधीशों पर व्यक्तिगत हमले होने लगेंगे तो सहीं नहीं होगा। 
सोशल मीडिया पर अभी जानबूझकर सुप्रीम कोर्ट के जजेस को टारगेट किया जा रहा है। ऐसे में जजेस को विवश होकर सोचना पड़ रहा है कि मैं निर्णय दूंगा तो उसका लोगों पर क्या असर पड़ेगा और लोग क्या कहेंगे और यह एक तरह का अनावश्यक प्रेशर सुप्रीम कोर्ट और जजेस पर बना रहा है। ऐसे में अब भारत को  सोशल मीडिया को प्रभावी तरह से रेगुलेट करना पड़ेगा।

सोशल मीडिया पर पॉलिसी वैक्यूम खतरनाक- 
आईटी लॉ एक्सपर्ट पवन दुग्गल कहते हैं कि सोशल मीडिया के क्षेत्र में आज भारत एक तरह के पॉलिसी वैक्यूम में कार्रवाई कर रहा है। भारत के पास आज न कोई साइबर सुरक्षा संबंधी कानून है, न फेक न्यूज संबंधी कानून है, न डेटा प्रोटेक्शन संबंधी कानून है और न ही निजता संबंधी कानून है। ऐसे में जब इतना ज्यादा पॉलिसी वैक्यूम है तो सर्विस प्रोवाइडर जानबूझकर पॉलिसी वैक्यूम का शोषण करते है।

ऐसे में अब सरकार का दायित्व बनता है कि वह ठोस और कड़े कानून लेकर आए जो सर्विस प्रोवाइडर को विवश करे कि वह खुद से कार्रवाई करें कि उनके प्लेटफॉर्म पर इस तरह के कंटेट नहीं आए। जैसे पिछले दिनों ट्वीट पर ‘सुप्रीम कोठा’ ट्रैंड करता रहा लेकिन ट्वीटर ने कोई कार्रवाई नहीं की वह केवल तमाशबीन बनकर रहा वहीं पुलिस ने भी कोई एफआईआर दर्ज नहीं की। ऐसे में आज कानून को संशोधन करना होगा और इसको प्रभावी तरीके से लागू करना होगा। 

सुप्रीम कोर्ट अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को करें परिभाषित- 
‘वेबदुनिया’ से बातचीत में पवन दुग्गल कहते हैं लोगों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार है लेकिन यह अधिकार यह नहीं कहता है कि आप किसी की मानहानि करेंगे।  आज सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर सब कुछ हो रहा है, लोगों को लगता है कि उनको लाइसेंस मिल गया है।  सोशल मीडिया के यूजर्स अपने मौलिक अधिकार तो जानते है लेकिन यह लोग संविधान के अनुच्छेद 19-1(2) को भूल रहे है जिसमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सीमित किया गया है।
 
पवन दुग्गल आगे कहते हैं कि आज वह समय आ गया है कि जब सोशल मीडिया का इतना दुरूपयोग हो रहा है कि तब सुप्रीम कोर्ट स्वयं अपने आप से जल्द से जल्द दिशा निर्देश दें कि यह चीजें हमारी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में आती है और यह चीजें नहीं आती है। जिससे सोशल मीडिया यूजर्स को एक गाइडलाइन मिल सके।

आज सोशल मीडिया के यूजर्स को लगता है कि वह जो कुछ लिखना चाहे वह लिख सकते है। ऐसे में सोशल मीडिया यूजर्स को बताया होगा कि अगर आप ने ऐसा कुछ किया जिसका नकारात्मक प्रभाव समाज के साथ साथ लोगों के अधिकार और किसी समुदाय पर पड़ता है तो आप पर कानून कार्रवाई की जा सकती है।
 
सोशल मीडिया प्रोवाइडर को मिला है संरक्षण!
‘वेबदुनिया’ से बातचीत में दुनिया के मशूहर साइबर लॉ एक्सपर्ट पवन दुग्गल कहते हैं कि भारत के मौजूदा आईटी एक्ट में सोशल मीडिया प्रोवाइडर तमाशबीन बनकर रह गए है। वह कानून का पालन ही नहीं करते है। उनके प्लेटफॉर्म पर आग लगी पड़ी है लेकिन वह अपनी नींद में मग्न रहते है। दरअसल इसका एक कानूनी कारण है।

सुप्रीम कोर्ट ने 2015 श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ में एक ऐतिहासिक निर्णय में यह दिशा निर्देश दिया है कि सोशल मीडिया सर्विस प्रोवाइडर आप सिर्फ सर्विस प्रोवाइडर है और आप जज नहीं बने। आपके के प्लेटफॉर्म पर कुछ भी रहा है तो आप कुछ भी नहीं कीजिए इंतजार कीजिए। अगर आपको सरकार की संस्था से या सुप्रीम कोर्ट से ऑर्डर आ जाए तब आप एक्शन लीजिए वरना कुछ नहीं कीजिए। ऐसे में सर्विस प्रोवइडर कोर्ट के आदेश का हवाला देकर कोई कार्रवाई नहीं करते है। 
 
(देश-दुनिया के जाने माने आईटी लॉ एक्सपर्ट पवन दुग्गल से ‘वेबदुनिया’ की खास बातचीत की अगली कड़ी में  जानें कि आखिर सरकार कैसे सोशल मीडिया पर फेक और हेट कंटेट को रोक सकती है)
ये भी पढ़ें
जानिए 2022 के Second Half में रिलीज होने वाले Top-5 Smartphones के बारे मे