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भारत रंग महोत्सव में रंगमंच का कितना चला जादू ?

भारत रंग महोत्सव में रंगमंच का कितना चला जादू ? - DRAMA FESTIVAL
- शकील अख़्तर
 
दिल्ली में 1 से 21 फरवरी तक आयोजित 18वें भारत रंग महोत्सव की इस बार थीम थी- ‘रंगमंच के जादू की फिर से खोज।' सवाल है क्या सचमुच दर्शकों पर नाटकों का जादू चला? क्या वाकई रंगमंच के जादू की खोज हुई? इस समागम के साक्षी बने ज़्यादातर दर्शकों ने तो इस महोत्सव को सफल बताया लेकिन खुद रंगमंच की दुनिया से सरोकार रखने वालों की राय इसके विपरीत रही। उन्हें लगा, ये आयोजन अपने मूल अर्थ को खो रहा है। क्या उनका ये सोचना सही है ? 
रीजनल और ग्लोबल थिएटर  
एनएसडी के निदेशक वामन केंद्रें ने कहा कि ‘हमारी कोशिश रही है कि यह आयोजन अपने मूल मकसद से ना भटके। इसकी एक वैश्विक पहचान बने, ग्लोबल थिएटर से परिचित होने का मौका मिले लेकिन इसके साथ ही इस वार्षिक उत्सव में देश के हर राज्य या क्षेत्रीय रंग समूहों की भागीदारी हो। एम्बिएंस परफॉरमेंस के ज़रिए इसे हमने और भी विस्तार देने की कोशिश की। उन्होंने इस बात से साफ़ इनकार किया कि नाटकों के चयन में पारदर्शिता नहीं बरती गई। कुछ नाम, पदों, अपनों को नाटक शामिल करा लेने की छूट मिली। 
 
वामन केंद्रे ने कहा कि नाटकों का चयन 32 विशेषज्ञों की एक समिति करती है। चयन समिति के सदस्य देश-विदेश के नाटकों की सीडीज़ देखते हैं। उनके बारे में जानकारी हासिल करते हैं। उनमें परफॉरमेंस आदि के आधार पर अच्छे नाटकों को चुना जाता है। केंद्रे ने इस आरोप को भी निराधार बताया कि अंतिम समय में कुछ नाटकों को व्यक्तिगत आग्रह या दुराग्रह की वजह से लिस्ट से हटा दिया गया। 
 
उन्होंने कहा कि आमंत्रित नाटकों को छोड़कर, शेष नाटकों का चयन समिति के सुझावों के अनुरूप ही किया गया। वामन ने उत्सव में दिल्ली रंग जगत की उपेक्षा किए जाने की बात से भी असहमति जताई। उन्होंने कहा, हमने खुले दिल से सभी की हिस्सेदारी शामिल की है। संवादहीनता की स्थिति नहीं है। दिल्ली एनसीआर 49 कॉलेज के स्ट्रीट प्लेज़ इसी का प्रमाण है। 
क्या था नाटक में अश्लीलता का विवाद?
पोलैंड के विवाद में आए नाटक, सोनका के एक दृश्य पर उठे सवाल पर उन्होंने कहा कि जिस परिपेक्ष्य में था, वो विवादित नहीं था। फिर भी इतने वृहद आयोजन में ऐसे प्रसंग भी आते हैं। समकालीन रंगमंच के राजेश झा के मुताबिक, पोलैंड का नाटक सोनका का पहला प्रदर्शन भुवनेश्वर के सामानांतर उत्सव में हुआ था। वहां कुछ दर्शकों ने इस नाटक के एक दृश्य पर न्यूडिटी का आरोप लगाया था। 
 
इसे एक अंग्रेजी अखबार ने प्रकाशित किया था। हालांकि वो आरोप सही नहीं था, वो हिटलर के दौर में महिलाओं पर हो रहे अत्याचार को दिखाता एक बर्बर दृश्य था। इसमें किसी भी तरह की अश्लीलता को देखना अनुचित था। इस विवाद से क्षुब्ध पोलैंड के थिएटर ग्रुप में अपनी दिल्ली की प्रस्तुति में इस सीन को हटा दिया था, इसके बारे में मंच पर अपनी तरफ से सफाई भी दी थी।  
80 नाटक, 300 प्रदर्शन
गौरतलब है कि इस बार महोत्सव में देश-विदेश के 80 नाटकों का मंचन हुआ। खुले में लोक कलाकारों और संगीत की रोज़ाना एम्बिएंस प्रस्तुतियां हुईं जिनकी संख्या 300 के करीब बताई गई है। वामन केंद्रे के मुताबिक, ‘कोशिश थी कि एक ही जगह पर हर तरीके, हर शैली का काम देखने को मिले। विविधता का सम्मिलन हो।'
 
एनएसडी के एके बरूआ के मुताबिक, ‘अच्छी बात ए रही कि इस बार महोत्सव में बड़ी संख्यां में दर्शक पहुंचे। पिछले साल 15 लाख रुपए के मुकाबले इस बार टिकट बिक्री का नया रिकॉर्ड बना, 22 लाख के टिकट बिक गए।' 
 
नाटकों के साथ ही एलाइड गतिविधियां हुईं। एनएसडी के परिसर में नाट्य कलाओं का बाज़ार सजा। मास्टर क्लासेस लगीं। फोटो प्रदर्शनी आयोजित हुई। लिविंग लीजेंड पहुंचे। सेमिनार और फोरम में विचार साझा किए गए। इतना ही नहीं, दिल्ली के साथ-साथ जम्मू, गुवाहाटी, त्रिवेंद्रम और जम्मू में सामानातंर नाट्य समारोह आयोजित किए गए। पूरे माहौल को जयंत देशमुख की कला सज्जा ने और आकर्षक बनाया। इस रंग-मेले में देश-विदेश के सैकड़ों कलाकार तो जुटे ही, युवाओं की बड़ी संख्यां में भागीदारी रही।  
अगले पन्ने पर, इन नाटकों को मिली सराहना
 
 

कई नाटकों को मिली सराहना
इस समारोह में प्रस्तुत कम से कम 15 नाटकों को दर्शकों ने एक्सपेरिमेंट, प्रस्तुति और थीम के नज़रिए से पसंद किया गया। मैकबेथ, कबीर, एंटीगनी, विद्योतमा, न्यायप्रिय, कामिया, कोश्चन मार्क, आज़ाद मौलाना को स्वाभाविक सराहना मिली। विदेशी मंचीय प्रयोगों में न्यूयॉर्क, ऑस्ट्रिया, श्रीलंका, फ्रांस के नाटक सराहे गए। पाकिस्तान के नाटक ‘अंखियां’ की संगीतमयी प्रस्तुति ने दर्शकों की खासी तारीफ़ हासिल की। 
 
दिखा दिल्ली का युवा जोश
समारोह में दिल्ली-एनसीआर के 49 कॉलेज के युवा समूहों में नुक्कड़ नाटक खेले। उनका फोकस सामाजिक मुद्दों पर रहा। महिला सशक्तिकरण, भेदभाव, मीडिया पर संवादों के तीर चले। यूथ ब्रिगेड के परफॉरमेंस में जबरदस्त जोश और ऊर्जा नज़र आई। समापन समारोह में संस्कृति मंत्री डॉ. महेश शर्मा ने इस बात पर खुशी जताई कि एनएसडी और इसके आयोजन से युवा बड़ी संख्या में जुड़ रहे हैं।  
रीजनल थिएटर ने भी दम दिखाया
प. बंगाल के हुगली से आए नाटक ‘इति ब्रायो कथा’ ने पूछा, अल्ट्रा मॉर्डन होकर भी क्या हम वाकई मॉर्डन हो गए? कोलकाता से आए प्रयोग, ‘नाटककार नाम की’ में दुर्गोत्सव के दिन गैंगरेप का शिकार बनी पीड़िता की ज़िदंगी का सवाल उठा। अविष्कार मुंबई की प्रस्तुति में पति से अलग बेटे के साथ रह रही तीस पार स्त्री की व्यथा दिखी। हुरनबा अशिन्गबा में मणिपुर में ड्रग एडिक्शन की बात भी सामने आई। 
 
नए प्रयोगों पर रहा ज़ोर 
समारोह में एक्सपेरिमेंटल प्लेज़ पर ज़्यादा ज़ोर रहा। समारोह में कई नाटकों को देखने वाले कला समीक्षक देवान सिंह बगेली ने मार्के की बात कही, इस बार पॉलिटिकल सटायर से जुड़े प्लेज़ कम हुए, क्लासिक थिएटर या थिएटर का परंपरागत रूप भी कम दिखा। मैकबेथ, एंटीगनी, बाक़ी इतिहास, कबीर जैसे प्लेज़ नज़र आए। पर फिजिकल और तैयार तकनीकी प्रयोगों का असर ज़्यादा दिखा। देवान सिंह की बात से इस बात का अंदाजा भी हुआ कि एनएसडी को अब बेहतर स्क्रिप्ट के लिए वर्कशॉप्स की गंभीर शुरूआत की भी तुरंत ज़रूरत है। ताकि नए नाटककार लेखकों का सिलसिला आगे बढ़े। 
सेलिब्रिटीज़ का डबल धमाका 
महोत्सव की आभा तब और बिखरी जब नाटक के सेलिब्रिटी कलाकार इस उत्सव में अपनी प्रस्तुतियां लेकर पहुंचे। पकंज कपूर अभिनीत नाटक ‘दोपहरी’अपनी प्रयोगधर्मिता, थीम और प्रस्तुति की वजह से चर्चा में आया। कुछ ने इसकी सराहना की। कई लखनऊ की एक हवेली में रहने वाली अम्मी बी की ज़िदंगी को लेकर चिट्टी पढ़ने वाली इस प्रस्तुति पर गुस्सा जताते नज़र आए लेकिन इसका एक और शो आयोजित भी हुआ। 
 
इसी तरह राकेश बेदी के नाटक ‘मेरा वो मतलब नहीं था’ में अनुपम खेर और नीना गुप्ता के अभिनय ने समारोह को नई चमक दी। परेश रावल पहली बार एनएसडी में अभिनय करने आए। दिनकर जानी के नाटक ‘डिअर फादर’ में उन्होंने प्रमुख भूमिका निभाई। उनके ही लफ्ज़ों में रिश्तों की पड़ताल करते इस इमोशनल थ्रिलर को भारंगम के दर्शकों के बीच पेश करते हुए उन्हें अच्छा लगा। सौरभ शुक्ला के नाटक ‘बर्फ़’ को भी दो बार खेला गया और सराहा गया। बाक़ी इतिहास, विद्योत्तमा के भी डबल शोज़ हुए। 
 
जादू और भी चलाना है 
इसमें शक नहीं कि भारत रंग महोत्सव साल दर साल आगे बढ़ रहा है। संस्कृति सचिव एसके सिन्हा के शब्दों में, ‘रंग महोत्सव भारतीय रंग परंपरा को दुनिया के नक्शे पर ले जाने के अहम काम में जुटा है।' मगर इस काम में उनका भी खयाल रखा जाना भी ज़रूरी दिखता है, जो इस आयोजन को और बेहतर बनाने को उत्सुक हैं। इसमें देश के साथ स्थानीय स्तर पर प्रयास और संवाद की ज़रूरत है। तब शायद भारत रंग महोत्सव की स्वीकार्यरता और सार्थकता और आगे बढ़ सकेगी। तब ही नाटकों के जादू की खोज पूरी मानी जा सकेगी।  
(रंगकर्म से जुड़े रहे लेखक इंडिया टीवी के वरिष्ठ संपादक हैं)
 

किसने क्या कहा-  
मुझे इस बात की खुशी है कि एनएसडी और इसके नाट्य महोत्सव से युवा बड़ी संख्या में जुड़ रहे हैं। इसे राष्ट्रीय महत्व के केंद्र का दर्जा दिलाने का प्रयास है।- डॉ. महेश शर्मा, पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री
रिडस्कवर दि मैजिक ऑफ़ थिएटर इस बार की थीम रही। कोशिश थी कि एक जगह हर तरीके, हर शैली का काम देखने को मिले। विविधता का सम्मिलन हो। - प्रो. वामन केंद्र, निदेशक, एनएसडी, दिल्ली
 
भारत रंग महोत्सव के ज़रिये, नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा भारतीय रंग परंपरा को विश्व के नक्शे पर ले जाने का महत्वपूर्ण काम कर रहा है। - एनके सिन्हा, सचिव, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार
 
नाटकों का चयन गुणवत्ता के आधार पर हुआ। इसके लिये पूरे देश के विशेषज्ञों और पेशेवरों ने अपना योगदान दिया। - सुरेश भारद्वाज, एनएसडी 
ये एक अच्छा आयोजन है, यहां आकर अच्छा लगा, ऐसे आयोजन होना चाहिए। -परेश रावल
 
इस बार महोत्सव में बड़ी संख्यां में दर्शक पहुंचे, ये इस शो की सबसे अच्छी बात रही। - एके बरूआ,एनएसडी