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Written By वेबदुनिया न्यूज डेस्क
Last Updated : गुरुवार, 27 फ़रवरी 2020 (13:30 IST)

Delhi Violence : बेकसूरों की मौत का गुनहगार कौन? पुलिस, प्रशासन या राजनेता...

Delhi Violence : बेकसूरों की मौत का गुनहगार कौन? पुलिस, प्रशासन या राजनेता... - Delhi Violence
नई दिल्ली। दिल्ली में हिंसा में अब तक 34 लोगों की मौत हो गई है। 300 से ज्यादा लोग घायल अस्पताल में अपना उपचार करवा रहे हैं। हिंसा की इस आग ने कई परिवारों के चिराग बुझा दिए और लोगों की रोजी-रोटी छीन ली। हिंसा में आम नागरिकों और अपनी ड्‍यूटी निभाते हुए पुलिसकर्मी और सुरक्षा विभाग के एक कर्मी की भी मौत हुई।
कांस्टेबल रतनलाल और सुरक्षा अधिकारी अंकित शर्मा की जान उन्माद से भरी भीड़ ने ले ली लेकिन क्या कोई ऐसी भी खबर आई है कि इसी उन्मादी भीड़ ने किसी नेता या राजनीतिक दल के नुमांइदों को चोट पहुंचाई? वोटों के लिए बड़े-बड़े वादे करने वाले किसी भी नेता को क्या लोगों को बचाते हुए देखा गया? भीड़ को भड़काने वाले, भाषण देने वाले एक भी नेता को किसी ने छुआ तक नहीं... सवाल यही है कि इन बेकसूर लोगों की मौत का गुनहगार आखिर कौन है? प्रशासन, दिल्ली की सरकार, पुलिस या उच्च पदों पर आसीन जिम्मेदार...?
 
भारत को दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का रुतबा हासिल है जिसकी मिसालें दी जाती हैं। ऐसा क्या हुआ कि जब दुनिया का सबसे ताकतवर शख्स डोनाल्ड ट्रंप के रूप में भारत आया था, तभी दिल्ली से ऐसी तस्वीरें आईं जिसने दुनिया में भारत की नकारात्मक छवि को पेश किया। ऐसा लगता है कि यह सब सोची-समझी साजिश के तहत हुआ है, क्योंकि ट्रंप के भारत आने से कुछ ही घंटे पहले दिल्ली में हिंसा भड़क गई थी।
 
दिल्ली जल रही थी... बेकसूर लोग मारे जा रहे थे, लोगों की दुकानें और वाहन आग की भेंट चढ़ रहे थे... सबसे बड़ा सवाल यही जेहन में घूम रहा है कि दिल्ली पुलिस ने सबकुछ जानते हुए भी दंगाइयों के सामने अतिसुरक्षात्मक रवैया क्यों अपनाया? हिंसा की जो तस्वीरें सामने आ रही हैं, उसने कई सवालों को जन्म दे दिया है।
 
तस्वीरों में साफ नजर आ रहा है कि उन्मादी एक प्रदर्शनकारी जब हाथ में पिस्तौल लहराता हुआ आता है तो दिल्ली पुलिसकर्मी हाथ में डंडा लिए उसे रोकने की कोशिश करता है। पिस्तौल के सामने डंडे की क्या औकात? साफ लग रहा है कि पुलिस बेबस थी...
पिस्तौल तानने वाला वीडियो सामने आया तो पुलिसकर्मी की पत्नी ने तुरंत फोन लगाया और सवाल किया कि डंडे के साथ आप पिस्तौल के सामने कैसे खड़े हो गए? तब जो जवाब पुलिसकर्मी ने दिया वह गर्व करने लायक था। उसने कहा कि अगर मौत से डरता तो पुलिस में क्यों आता?
 
दरअसल, सवाल पुलिसकर्मी नहीं बल्कि विभाग के उन उच्च अधिकारियों के लिए था जिन्होंने डंडा लिए अपने मातहतों को उत्पातियों का सामना करने भेज दिया। याद कीजिए दिल्ली का वकील-पुलिस विवाद वाला मामला, जब दिल्ली पुलिस के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो गई थी और पुलिसकर्मियों को वकीलों के खिलाफ धरने पर बैठना पड़ा था।
 
देश का हर नागरिक प्रश्न पूछ रहा है कि आखिर दंगों में आम आदमी, आम पुलिस वाला ही क्यों मौत के मुंह में जाता है? राजनेता शांति की अपील एसी कमरों में बैठकर करते हैं, पुलिस के आला अफसर कमरों में बैठकर सिर्फ फरमान जारी करते हैं... खुद क्यों नहीं घटनास्थल पर जाकर अमन की पहल करते? ऐसा कब तक होता रहेगा? कब तक देश ऐसे बेकसूर लोगों की मौत का तमाशा देखता रहेगा?