नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने निर्भया सामूहिक बलात्कार और हत्याकांड के 4 दोषियों द्वारा उन्हें फांसी पर लटकाए जाने की प्रक्रिया को टालने के लिए अपनाई गई 'रणनीति' पर अप्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि तंत्र का दुरुपयोग हो रहा है।
न्यायमूर्ति मनमोहन और न्यायमूर्ति संगीता ढींगरा की पीठ ने दोषी मुकेश कुमार के अधिवक्ता से सवाल किया कि उच्चतम न्यायालय द्वारा दोषी करार दिए जाने को चुनौती देने वाली याचिका खारिज किए जाने और सत्र अदालत द्वारा सुनाई गई मौत की सजा बरकरार रखने के बावजूद वह ढाई साल तक इंतजार क्यों कर रहा था? उसने सुधारात्मक और दया याचिकाएं दायर क्यों नहीं की?
अदालत ने 7 जनवरी को सत्र अदालत की ओर से जारी मौत के वॉरंट के आदेश में हस्तक्षेप करने से इंकार करते हुए कहा कि निचली अदालत के फैसले में कोई गड़बड़ी नहीं है, क्योंकि आदेश की तारीख तक किसी दोषी ने सुधारात्मक या दया याचिका दायर नहीं की थी।
दोषी मुकेश ने अपनी याचिका में अनुरोध किया था कि मौत के वॉरंट को पालन के लिए अयोग्य करार दिया जाए, क्योंकि उसकी दया याचिका राष्ट्रपति के पास लंबित है। पीठ ने कहा कि यह दोषियों की तिकड़म है कि वे उच्चतम न्यायालय द्वारा सभी अपील खारिज होने के बावजूद चुप करके बैठे रहे।
पीठ ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने 5 मई, 2017 को आपकी विशेष अनुमति याचिका खारिज कर दी थी और मौत की सजा पर मुहर लगा दी थी। फिर आपको सुधारात्मक याचिका दायर करने से किसने रोका? आप चुप बैठ कर ढाई साल से इंतजार कर रहे थे?
उसने कहा कि ऐसा सिर्फ चालाक कैदी करते हैं। वे मौत का वॉरंट जारी होने तक इंतजार करते रहते हैं और जैसे ही वॉरंट जारी होता है उसे चुनौती दे देते हैं। याकूब अब्दुल रज्जाक मेमन मामले के फैसले में यह स्पष्ट किया गया है कि दोषी को तर्कपूर्ण समयसीमा में सुधारात्मक याचिका दायर करनी चाहिए।
पीठ ने कहा कि सुधारात्मक याचिका दायर करने की आपकी तर्कपूर्ण समय की सीमा 5 मई, 2017 को उच्चतम न्यायालय द्वारा सभी याचिकाएं खारिज किए जाने के साथ शुरू हो गई थी, न कि 18 दिसंबर, 2019 से जब तिहाड़ जेल प्रशासन ने चारों दोषियों को दया याचिका दायर करने का नोटिस भेजा। पीठ ने कहा कि जुलाई 2019 में ही शीर्ष अदालत ने मुकेश की समीक्षा याचिका खारिज कर दी थी, लेकिन आगे के कानूनी विकल्पों का इस्तेमाल अब किया जा रहा है।
जेल अधिकारियों की खिंचाई करने के अलावा अदालत ने मुकेश द्वारा देर से सुधारात्मक और दया याचिका दायर किए जाने पर अप्रसन्नता जताई। उसने कहा कि मई 2017 में ही सभी याचिकाएं खारिज हो चुकी हैं, ऐसे में देरी क्यों?
पीठ ने दोषियों को दया याचिका के विकल्प के संबंध में देर से सूचित करने को लेकर जेल अधिकारियों की खिंचाई की। जेल अधिकारियों ने दोषियों को 29 अक्टूबर और 18 दिसंबर को नोटिस जारी कर सूचित किया था कि अब वे दया याचिका दायर कर सकते हैं। अदालत ने कहा कि अपने घर को दुरुस्त करें।
पीठ ने कहा कि आपके घर की हालत ठीक नहीं है। दिक्कत यह है कि लोगों का तंत्र से भरोसा उठ जाएगा। चीजें सही दिशा में नहीं जा रही हैं। तंत्र का दुरुपयोग किया जा सकता है और हम व्यवस्था का दुरुपयोग करने का तिकड़म देख रहे हैं जिसे इसकी खबर ही नहीं है।
इस पर दिल्ली सरकार के स्थायी अधिवक्ता राहुल मेहरा ने पीठ को बताया कि चूंकि दोषियों में से एक अक्षय ने 2019 तक अपनी समीक्षा याचिका दायर नहीं की थी और उस पर 18 दिसंबर को फैसला हुआ इसलिए देरी हुई। अन्य 3 दोषियों की समीक्षा याचिकाएं जुलाई 2018 में ही खारिज हो चुकी थीं।
अदालती सुनवाई पूरी होने के बाद मुकेश की वकील रेबेका जॉन्सन ने कहा कि मैं कोई खेल नहीं खेल रही। मैं किसी मंच का चुनाव नहीं कर रही हूं। मैं अन्य 3 दोषियों के बारे में कुछ नहीं कह सकती।