लद्दाख में चीनी सैनिकों की घुसपैठ कभी नहीं रुकी, 1993 में पहली बार आई थी घुसपैठ और अत्याचार की खबरें
जम्मू। लद्दाख सेक्टर में चीनी सेना की घुसपैठ कभी रुक नहीं पाई है। यह 1962 के चीनी हमले के बाद से आज भी जारी है। इतना जरूर है कि चीनी सेना की घुसपैठ तथा भारतीय गडरियों व किसानों को धमकाने की खबरें पहली बार 1993 में उस समय बाहर आई थीं, जब लद्दाख में फेस्टिवल का आयोजन किया गया था और लोगों को चीन सीमा से सटे इलाकों तक जाने की अनुमति दी गई थी।
इससे पहले होने वाली घुसपैठ तथा अत्याचारों की घटनाओं को सिर्फ सरकारी रिकॉर्ड में ही दर्ज कर लिया जाता था। चीन सीमा पर होने वाली घुसपैठ व भारतीय सैनिकों व किसानों को धमकाने की खबरें कई-कई महीनों के बाद लेह मुख्यालय में मिला करती थीं।
यह भी सच है कि पहली बार लेह फेस्टिवल में शामिल पत्रकारों को पैंगांग झील समेत चीन सीमा से सटे इलाकों का दौरा करने की अनुमति दी गई तो उसके बाद ही भारतीय सेना ने भी चीन की सीमा पर गश्त बढ़ाने का फैसला किया था, वरना इन इलाकों में भारतीय सैनिक यदा-कदा ही नजर आते थे, पर चीनी सैनिक नियमित रूप से गश्त करते थे और आए दिन भारतीय इलाके पर अपना कब्जा दर्शाने की हरकतें किया करते थे।
लेह स्थित प्रशासनिक अधिकारी मानते हैं कि चीन अक्साई चिन से लगे इलाकों पर भी अपना कब्जा दर्शाते हुए वहां पर कब्जा जमाना चाहता है। इसी प्रकार लेह स्थित 14वीं कोर में तैनात कुछ सेनाधिकारियों के बकौल, चीन की बढ़ती हिम्मत का जवाब देने के लिए लद्दाख के मोर्चे पर फौज व तोपखानों की तैनाती में तेजी आई है लेकिन कोशिश यही है कि मामला राजनीतिक स्तर व बातचीत से सुलझ जाए।
हालांकि भारतीय सेनाध्यक्ष कहते थे कि भारतीय सेना चीन की हरकतों का जवाब देने में पूरी तरह से सक्षम है, पर मिलने वाली खबरें कहती हैं कि कारगिल युद्ध को 21 साल बीत जाने के बावजूद ऐसे इलाकों में हमले से निपटने को जरूरी सैनिक साजोसामान की सप्लाई अभी भी कछुआ चाल चल रही है। इतना जरूर था कि कारगिल युद्ध में विजेता रही बोफोर्स तोपों पर अब भारतीय जवानों को नाज जरूर है जिनकी अच्छी-खासी संख्या को चीन सीमा पर तैनात किया जा चुका है।
लद्दाख की जनता के मुताबिक केंद्र सरकार को चीन की हरकतों को गंभीरता से लेना चाहिए। मिलने वाली खबरें इसकी भी पुष्टि करती हैं कि चीन ने भारतीय इलाकों से सटे अपने इलाकों में अपने नागरिकों को भी बसा रखा है और वे भारतीय जमीन का भी इस्तेमाल खुलकर कर रहे हैं। हालांकि स्वतंत्र तौर पर इन खबरों की पुष्टि नहीं हो पाई थी। पर भारतीय सेना अपने नागरिकों को चीन सीमा के पास भी फटकने की इजाजत नहीं देती है जिस कारण उस पार से होने वाली नापाक हरकतों की खबरें बहुत देर से मिलती हैं।