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Last Updated :नई दिल्ली , बुधवार, 12 फ़रवरी 2025 (18:24 IST)

केंद्र सरकार, रिजर्व बैंक और वित्त आयोग मिलकर करें काम, राज्यों पर लगेगी लगाम

केंद्र सरकार, रिजर्व बैंक और वित्त आयोग मिलकर करें काम, राज्यों पर लगेगी लगाम - Central Government, Reserve Bank and Finance Commission should work together
fiscal discipline: केंद्र सरकार, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) और वित्त आयोग (Finance Commission) को राज्यों में राजकोषीय अनुशासन लाने के लिए मिलकर काम करना चाहिए। शोध संस्थान नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लॉयड इकोनॉमिक रिसर्च (NCAER) के एक शोधपत्र 'राज्यों की स्थिति: भारत में संघीय वित्त' में कहा गया कि भारी कर्ज में डूबे राज्यों को केंद्र सरकार की निगरानी स्वीकार करने के बदले में कर्ज के मामले में कुछ राहत दी जा सकती है।ALSO READ: ICICI बैंक का शुद्ध लाभ दिसंबर तिमाही में 15 प्रतिशत बढ़कर 11,792 करोड़ रुपए पर
 
शोधपत्र में कहा गया कि आरबीआई को भारी कर्ज में डूबे राज्यों के बॉण्ड पर सीमा को सीमित करने के लिए बाजारों में हस्तक्षेप करने की अपनी नीतियों की समीक्षा करनी चाहिए। इस तरह के हस्तक्षेप को सीमित करने से बाजार अनुशासन मजबूत होगा। इसमें कहा गया कि इस दिशा में आगे बढ़ने में अनिच्छा हो सकती है, क्योंकि अन्य शर्तों की तरह उधार लेने की लागत पर भी राज्यों के साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए। हालांकि शोधपत्र में इस बात पर जोर दिया गया कि बाजार अनुशासन के बिना राजकोषीय अनुशासन संभव नहीं है।
 
इसमें यह भी कहा गया कि वित्त आयोग द्वारा प्रत्येक 5 वर्ष में राज्यों के बीच करों का हस्तांतरण, राजकोषीय अनुशासन के लिए प्रोत्साहन प्रदान नहीं करता है। शोधपत्र में कहा गया कि विडंबना यह है कि वित्त आयोगों को अधिक राजस्व घाटे वाले राज्यों को अधिक संसाधन आवंटित करने का आदेश दिया गया है। इसमें नैतिक जोखिम स्पष्ट है और यह एक ऐसी व्यवस्था है जिसके जरिए ऐसे राज्यों को सब्सिडी दी जाती है, जो इसके हकदार नहीं हैं।
 
राजकोष में व्यापक स्तर पर गौर करने की गुंजाइश : पत्र में यह भी सुझाव दिया गया कि राजकोष में वहां व्यापक स्तर पर गौर करने की गुंजाइश है, जहां सबसे खराब संभावनाओं वाले भारी कर्ज में डूबे राज्यों को ऋण राहत का एक छोटा सा हिस्सा मिलता है (उनके ऋण का एक हिस्सा केंद्र सरकार के बहीखाते में स्थानांतरित कर दिया जाता है) बदले में उन्हें केंद्र सरकार की अतिरिक्त निगरानी और यहां तक ​​कि राजकोषीय स्वायत्तता की हानि भी सहनी पड़ती है।ALSO READ: PM मोदी और मैक्रों ने की गर्मजोशी से मुलाकात, व्यापार और निवेश संबंधों को बढ़ाने का किया आह्वान
 
इस पत्र में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले राज्यों में फोरेंसिक विश्लेषण का सुझाव दिया गया है ताकि यह पता लगाया जा सके कि प्रशासनिक सरलीकरण तथा कर आधार को व्यापक बनाने, संपत्ति कर बढ़ाने, नए करों को अपनाने और बुनियादी ढांचे तथा क्षमता निर्माण पर व्यय को पुन: केंद्रित करने जैसे अन्य उपायों के जरिए राज्यों द्वारा अतिरिक्त राजस्व जुटाने के अलावा क्या गलत हुआ।
 
राज्य सरकारें देनदारियों से उत्पन्न जोखिम को स्वीकारें : इसमें कहा गया कि राज्य सरकारों को आकस्मिक देनदारियों से उत्पन्न जोखिम को स्वीकार करना चाहिए तथा ऐसी देनदारियों के पूर्वानुमान के लिए संस्थागत सुधार अपनाकर तथा ऋण प्रबंधन रणनीति क्रियान्वित करके इसका समाधान करना चाहिए। इस शोधपत्र के अनुसार भारत के सार्वजनिक ऋण का एक तिहाई हिस्सा राज्यों का कर्ज है, जो अन्य देशों की अर्थव्यवस्थाओं के मानकों के हिसाब से यह बहुत बड़ा हिस्सा है।
 
ओडिशा, महाराष्ट्र और गुजरात में राज्य ऋण राज्य सकल घरेलू उत्पाद के 20 प्रतिशत से कम है, वहीं पंजाब में यह करीब 50 प्रतिशत तक है। पिछले 10 वर्षों में भारत के आधे बड़े राज्यों के ऋण-राज्य-जीडीपी अनुपात में 10 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है। गुजरात, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र को छोड़कर सभी राज्यों में 2012-13 से 2022-23 तक ऋण अनुपात में वृद्धि हुई है।(भाषा)
 
Edited by: Ravindra Gupta