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Written By Author डॉ. रमेश रावत
Last Updated : शनिवार, 4 जुलाई 2020 (18:40 IST)

आखिर क्यों रहता है चीन, पाकिस्तान, नेपाल से लगती सीमा पर तनाव?

आखिर क्यों रहता है चीन, पाकिस्तान, नेपाल से लगती सीमा पर तनाव? - border disputes of India with china, Pakistan and Nepal
आजादी से पहले भारत के पड़ोसी देशों की सीमाओं से जुड़े विवादों को लेकर बैठकों के माध्यम से चर्चा होती रही है। आज के दौर में भी डिस्प्यूट मैकेनिज्म मीटिंग के माध्यम से सरकार चीजों को सही करने का प्रयास करती रहती है, लेकिन बावजूद इसके सीमा पर तनाव एवं छुटपुट झड़पें होती रहती हैं। हाल ही में लद्दाख में चीन के साथ हुई हिंसक सैन्य झड़प इसी का एक उदाहरण है।
 
'गिलगिट-बलटिस्तान' सहित कई पुस्तकों के लेखक, इंडिया फाउंडेशन के निदेशक, 'साउथ एशिया, मेरीटाइम विषय, इंडिया डाइसपोरा एवं डिफेंस स्टडीज' के विशेषज्ञ एवं मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण संस्थान के सदस्य कैप्टन आलोक बंसल ने चीन, पाकिस्तान, नेपाल एवं तिब्बत की सीमाओं जुड़े विवादों और उनके कारणों पर वेबदुनिया से खास बातचीत की। 
 
क्या है भारत चीन विवाद : आलोक बंसल ने कहा कि जहां तक भारत का चीन विवाद का मामला है तो वह ज्यादा जटिल है। चीन के साथ और लद्दाख एवं तिब्बत के बीच में जो सीमाएं थीं वे 17वीं शताब्दी में निर्धारित हुई थीं। इसके बाद लद्दाख महाराजा गुलाबसिंह के आधिपत्य में आया। तत्पश्चात यह महाराजा रणवीरसिंह की सीमा का हिस्सा रहा। सीमाओं का निर्धारण तो हुआ, लेकिन दुर्भाग्य से एक दूसरे की सीमाओं के नक्शे का पूरी तरह से एक-दूसरे को आदान-प्रदान नहीं हुआ था।
आजादी से पूर्व अंग्रेजों ने विभिन्न सीमाएं एवं रेखाएं बना डालीं और एक मानचित्र पर अंकित की। एक जॉनसन लॉइन थी जो कि सर्वे के दौरान वहां पर बनाई गई थी। उसके अनुसार आज जो शाहदुल्ला हिस्सा है, वह भी हमारा था। इसके बाद अंग्रेजों को लगा कि जॉनसन लाइन ठीक नहीं है तो उन्होंने इसमें भी बदलाव कर दिया और अर्घ-जॉनसन लाइन (Ardagh–Johnson Line) बनाई। इसके तहत ही आज भारत की सीमाएं निर्धारित हैं। इसके बाद मेकडोनाल्ड-मेकार्टनी लाइन भी बनाई गई। लेकिन, अन्ततः अर्घ-जॉनसन लाइन के आधार पर ही भारत की सीमा का रेखांकन किया गया। आजादी के बाद से ही हम इसे अपना इलाका मानते आए हैं। 
 
अक्साई चीन : बंसल कहते है कि अक्साई चीन का इलाका बड़ा ही दुर्गम है एवं ऊंचा भी है। यहां पर कोई रहता भी नहीं था एवं उस जमाने में किसी के नहीं रहने के कारण वहां पर कोई सेना भी नहीं थी। यहां चीन ने एक सड़क बना ली। इससे विवाद शुरू हुआ, जिसकी परिणति 1962 के युद्ध के रूप में हुई। यह आज चीन के आधिपत्य में है एवं इसे पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर भी कहा जाता है, जो कि लद्दाख का इलाका है। थोड़ा-सा अक्साई चीन का हिस्सा लद्दाख एवं तिब्बत का भी है। लेकिन, अक्साई चीन के अधिकांश हिस्से को चीनी जिजियांग का हिस्सा मानते हैं। 
 
बंसल बताते हैं कि इसके अलावा सक्षगाम घाटी है जो कि पाकिस्तान ने 1963 में चीन को दे दी। इसके अलावा और  भी हिस्से हैं। रस्कम घाटी पर भी भारत का कुछ हद तक हक कहा जा सकता है। जम्मू-कश्मीर राज्य की एक रियासत थी हुंजा उस पर अंग्रेजों का आधिपत्य था। अंग्रेजों ने इसकी मांग 1937 से नहीं की, इसलिए इसे भारत के मानचित्र में नहीं दिखाया गया है।
 
वे कहते हैं कि तिब्बत के भीतर भी भारत का एक एनक्लेव होता था, जो कि लद्दाख का एनक्लेव था। यह लगभग 600 से 700 सालों तक लद्दाख का हिस्सा माना जाता रहा था। वह भारत के साथ में रहा। भारत की स्वतंत्रता के बाद 1950 तक भारत के अधिकारी वहां गए एवं वहां उन्होंने लगान भी वसूला। इसके अलावा हमारा चीन के साथ में विवाद हिमाचल, उत्तराखंड, थोड़ा-बहुत सिक्किम में भी है। इसके साथ ही एक बहुत ही बड़ा हिस्सा अरुणाचल प्रदेश का है, जो करीब 38000 वर्ग किलोमीटर का है, इसे भी चीन अपना बताता है। 
आलोक कहते हैं कि अक्साई चीन का इलाका करीब 37000 वर्ग किलोमीटर का है। उसकी उंचाई लगभग 4300 मीटर कम से कम एवं अधिकतम 7000 मीटर है। यहां बारिश कम होती है। यहां सोड़ा वाटर एवं साल्ट वाटर है। कई नदियां यहां से निकलती हैं। यहां बाराहेती एवं हर्षिल के इलाके पर चीन से विवाद है।

लाइन ऑफ एक्चुएल कंट्रोल को लेकर चीन एवं भारत का अलग-अलग परसेप्शन है। यहां दोनों देश अपने-अपने हिसाब से पेट्रोलिंग करते हैं। समस्या तब होती है जब चीन के सैनिक यहां आकर रुक जाते हैं। अक्साई चीन से करकस नदी निकलती है जो कि उत्तर में जाती है यह बहुत ही बड़ी नदी है। एक दूसरी नदी गलवान नदी है, जिस पर विवाद चल रहा है एवं गलवान घाटी का नाम हम सुन ही रहे हैं, जो विवाद के लिए लिया जा रहा है। इसके अलावा और भी कई नदियां हैं। 
 
एलओसी एवं लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LoC और LAC) : बंसल ने बताया कि लाइन ऑफ कंट्रोल वह है जो कि पाकिस्तान के साथ में है। वहीं एनजे 9842 है वह पाकिस्तान के साथ में लाइन ऑफ कंट्रोल है। यह ग्रिड मैप है। इस पाइंट तक यहां है। इसके बाद दुर्गम इलाका है एवं ग्लेशियर है, जहां तक किसी आदमी के जाने की संभावना कम ही है। इसके साथ ही एलएसी है जो कि चीन के साथ में है। यह न तो नक्शे पर है और न ही जमीन पर है। इस संबंध में दोनों देशों की अवधारणा अलग-अलग है। भारत एवं चीन दोनों ही लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल के बारे में अपना अलग-अलग दावा करते हैं। 
 
हाईएस्ट क्रॉस रोड ऑफ द वर्ल्ड : आलोक बंसल ने के मुताबिक कि लेह पहले दुनिया का सबसे ऊंचा व्यापारिक क्रॉस रोड़ कहलाता था, जिसे 'हाईएस्ट क्रॉस रोड ऑफ द वर्ल्ड' भी कहते हैं। यहां उत्तर की ओर से मध्य एशिया के लिए जाते थे। एक शाहदुल्ला एवं एक नुब्रा घाटी होकर जाता था। एक शक्सगाम होकर जाता था, जबकि दो रास्ते तिब्बत की ओर जाते थे। एक दमचॉक होकर के जाता था, वहीं एक अक्साई चीन की ओर से जाता था। एक रास्ता कच्छ की ओर से जाता था। एक रास्ता ओर है जो कि हिमाचल से होते हुए, पंजाब के रास्ते से अफगानिस्तान होकर ईरान होकर जाता था। इस प्रकार से यह 6 रास्ते जाते थे। जहां से बहुत बड़ा व्यापार होता था। लेकिन आजादी के बाद से यह सारे रास्ते बंद हो गए। एक ट्रेडिंग के नाम से आईसोलेटेड कॉर्नर बन गया।
 
बाउंड्री कमीशन : आलोक बंसल ने बताया कि जब अंग्रेजों का समय था तो उन्होंने इसे कई बार डिमिनिएट करने की बात कही। मैकमोहन लाइन तिब्बत और भारत के बीच सीमा रेखा है। 1914 में एक एग्रीमेंट हुआ था। इसमें चीन एवं तिब्बत के प्रतिनिधि आए थे। उसमें चीन के प्रतिनिधि ने साइन करने से मना कर दिया था। उसकी समस्या यह थी कि बाहरी तिब्बत एवं आंतरिक तिब्बत के बीच में उनका परसेप्शन कुछ अलग था। इस कारण समस्या थी। उस पर काफी सवाल खड़े हुए थे। उसी के कारण से काफी सारी चीजें समस्याग्रस्त थीं। 
 
विवादित हिस्से : आलोक बंसल कहते है कि काराकोरम दर्रा विवादित हिस्सा नहीं है एवं चीन भी मानता है कि यह भारत का हिस्सा है। तग्दुंबश पामीर को हम हमारा हिस्सा मानते ही नहीं हैं क्योंकि वह अब चीन के नक्शे में दिखाया जाता है। रसकम घाटी को भी हम अधिकारिक रूप से हमारा हिस्सा नहीं मानते हैं। सिर्फ शक्सगाम को हम भारत का हिस्सा मानते हैं। बंसल कहते हैं अब भारत के डिस्प्यूट के मैकेनिज्म की मीटिंग होती रहती है, इसमें इन सब सीमाओं को लेकर डिस्कशन होते रहते हैं। 
 
पाकिस्तान से विवाद : बंसल ने बताया कि पाकिस्तान से हमारा विवाद है। 1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच एक लड़ाई हुई थी। इसके बाद में इसे अंतरराष्ट्रीय आर्बिट्रेशन के जरिए सुलझाया गया। हालांकि रण एवं कच्छ का विवाद तो सुलझ गया, लेकिन आगे जो सरक्रीक है, उसका विवाद आज भी जारी है। इसके अलावा हमारा जो विवादित मामला है इसमें जम्मू-कश्मीर जो कि पूर्ववर्ती राज्य था एवं आज जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख नाम के दो संघीय ढांचों में विभाजित है। इसके संदर्भ में हमारा विवाद है।
 
पाकिस्तान का दावा है कि पूरा जम्मू-कश्मीर उसका है, जबकि हकीकत में जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। क्योंकि उस समय जम्मू-कश्मीर रियासत के राजा हरिसिंह थे। उन्होंने भारत के साथ विलय का डाक्यूमेंट साइन किया था। यदि आज हम सरक्रीक को छोड़ दें तो हमारा विवाद पाकिस्तान के साथ जम्मू कश्मीर को लेकर है। लेकिन 1971 की लड़ाई के बाद हमने एक लाइन ऑफ कंट्रोल अर्थात नियंत्रण रेखा है, वह अंकित की। यह नक्शे पर भी अंकित हुई है। इसके साथ यह जमीन पर भी चिन्हित है।
 
अंतरराष्ट्रीय सीमा को लेकर के एक बिन्दु है, जिसे एनजे 9842 कहते हैं। सियाचिन का अधिकांश हिस्सा भारत के पास है। पाकिस्तान ने जिन इलाकों पर कब्जा कर रखा है, उसे उसने दो भागों में बांट रखा है। गिलगित-बलूचिस्तान एवं एक वह है, जिसे आजाद कश्मीर कहा जाता है। हालांकि वहां पर आजादी नाम की कोई चीज नहीं है। यह आजादी का स्वांग है। आज की तारीख में हम इसे मीरपुर, मुजफ्फराबाद एवं गिलगित-बाल्टिस्तान या पाकिस्तानी कब्जे वाला कश्मीर कहते हैं। पाक अधिकृत लद्दाख कहते हैं। यह दो अलग-अलग क्षेत्र हैं, जो कि आपस में विभाजित हैं। 
 
नेपाल विवाद : नेपाल से जो विवाद है उसके तहत सुगोली की संधि के बाद से नेपाल और भारत की सीमाएं रेखांकित हुई थीं। जिसमें एक नदी को भारत एवं नेपाल के बीच की सीमा का एक भाग माना गया था। या यह कहें कि सीमा के रूप में रेखांकित किया गया था। यदि हम देखें तो नदी के कई स्रोत होते हैं। इसलिए यह नदी कहां से आरंभ होती है, इसको लेकर मतभेद हैं। लेकिन जो इलाका आज हमारे पास था वह आरंभ से ही हमारे पास था। यहां तक कि 1954 में जब चीन के साथ हमारा जो समझौता हुआ था तो उन पांच जगहों से व्यापार की अनुमति दी गई थी।
व्यापार की अनुमति के बाद तक नेपाल ने 1947 से 1990 तक कुछ नहीं कहा। अब जो समस्या हो रही है, वह  राजनीतिक उद्देश्य के कारण हो रही है। नेपाल के प्रधानमंत्री केपी ओली की सरकार की डांवाडोल स्थिति के कारण उनको लगा कि अपने विरोधियों पर दबाव डालने का इससे बेहतर ओर कोई तरीका नहीं है। क्योंकि उनकी पार्टी के नेता उनके खिलाफ जाने वाले थे और ऐसे वक्त पर उन्होंने यह काम कर दिया कि अब अगर वो कुछ करेंगे तो उन्हें देश विरोधी माना जाएगा। इस तरीके की चीजें हमेशा से होती आ रही हैं।