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Last Updated : शुक्रवार, 17 अगस्त 2018 (19:28 IST)

वाजपेयी मूल रूप से लोकतंत्रवादी थे

Atal Bihari Vajpayee
एचके दुआ
 
भाजपा के सभी नेताओं में वे सिर्फ अटल बिहारी वाजपेयी ही थे, जो भारत का इसके विविध रूपों में प्रतिनिधित्व करते थे। यही कारण है कि वाजपेयी का निधन भारत के सभी लोगों के लिए एक क्षति है, भले ही वे किसी भी धर्म, जाति, क्षेत्र और भाषा के क्यों न हों। वाजपेयी को एक राष्ट्रीय और देश का एक चहेता नेता बनने में आधी सदी से अधिक का समय लगा।
 
 
उनके प्रधानमंत्री रहने का कार्यकाल पाकिस्तान के साथ संबंध बेहतर करने और कश्मीर समस्या का हल करने की बड़ी कोशिशों को लेकर भी जाना जाता है। प्रधानमंत्री के तौर पर उनके ये दो मुख्य लक्ष्य रहे थे। अखंड भारत में यकीन रखने वाली आरएसएस की विचारधारा में भाजपा की गहरी जड़ें जमी हुई हैं।
 
हालांकि भाजपा से जुड़े रहने के बावजूद वे बस से लाहौर गए और सभी स्थानों की यात्रा की। मीनार-ए-पाकिस्तान में उन्होंने यह घोषणा की कि पाकिस्तान की पहचान को भारत मान्यता देता है। यहां तक कि पाकिस्तान की तीनों सेनाओं के प्रमुखों ने लाहौर की वाजपेयी की यात्रा का बहिष्कार किया और तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ ने कारगिल युद्ध छेड़ दिया। इसके बावजूद उन्होंने पाकिस्तान की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया।
 
मैं प्रधानमंत्री के मीडिया सलाहकार के तौर पर वाजपेयी के साथ श्रीनगर में था, जब उन्होंने यह बयान दिया था कि वे इंसानियत के दायरे में हुर्रियत और समाज के अन्य तबकों से बात करना पसंद करेंगे। वाजपेयी सन् 2000 में कश्मीर की यात्रा पर गए थे। पहलगाम में आतंकवादियों ने 25 लोगों की हत्या कर दी थी। वाजपेयी ने पहलगाम जाने का फैसला किया और श्रीनगर हवाई अड्डे पर लौटने पर उन्होंने पाया कि हेलीकॉप्टर के पास ही संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करना है।
 
संवाददाता सम्मेलन में शायद तीसरा या चौथा सवाल यह था कि प्रधानमंत्री साहब, कश्मीर के मुद्दे पर वार्ता संविधान के दायरे में होगी या उसके बाहर? वाजपेयी ने कहा था कि वार्ता इंसानियत के दायरे में होगी। अपने इस बयान के लिए वे घाटी में अब भी याद किए जाते हैं।
 
मैं करीब 2 साल तक उनका मीडिया सलाहकार रहा था। उन्होंने (तत्कालीन प्रधानमंत्री ने) कभी मीडिया को टालने या मीडिया के असहज सवालों को टालने की कोशिश नहीं की। मेरे 2 साल तक मीडिया सलाहकार के दौरान ऐसा कभी नहीं हुआ कि उन्होंने यह सुझाव दिया हो कि मैं किसी संपादक या अखबार के मालिक को फोन कर किसी आलेख पर आपत्ति जाहिर करूं। वे प्रेस की स्वतंत्रता में यकीन रखते थे। ऐसा इसलिए था कि वाजपेयी मूल रूप से लोकतंत्रवादी थे।