मंगलवार, 19 नवंबर 2024
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  4. Why does not India speak with one voice on the China issue?

चीन मसले पर भारत से एक मत से आवाज क्‍यों नहीं निकलती?

indore china conflict
चीनी सैनिकों द्वारा अरुणाचल प्रदेश में वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी एलएसी पर भारतीय सैनिकों के साथ आमने-सामने के संघर्ष में एक बार फिर भारत चीन सीमा तनाव को सतह पर ला दिया है। हालांकि इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है। हम चीन की हरकतें अरुणाचल प्रदेश को लेकर पुरानी है। वह संपूर्ण अरुणाचल पर अपना दावा करता है। इसलिए तवांग सेक्टर में 9 दिसंबर को चीनी सैनिकों द्वारा सीमा पार करने की कोशिश उसकी उसी दुर्नीति का अंग है।

वे सीमा पार नहीं कर सके तो यह हमारे सैनिकों की बहादुरी है। इसमें हमारे जवान भी घायल हुए और उन्हें गुवाहाटी के 151 बेस अस्पताल में एअरलिफ्ट करना पड़ा तो जाहिर है झड़प सामान्य नहीं थी। हालांकि चीन के घायल सैनिकों की संख्या ज्यादा बताई जा रही है। भारतीय सेना की ओर से जो बयान जारी किया गया है, उसके अनुसार 9 दिसंबर को पीएलए के सैनिकों ने तवांग सेक्टर में एलओसी की सीमा को छुआ। इस पर भारतीय सैनिकों ने पूरी ताकत और दृढ़ता से मुकाबला किया। इस आमने-सामने की झड़प में दोनों पक्षों के कुछ सैनिकों को मामूली चोटें आई।

वैसे भारतीय सेना ने घायल जवानों की संख्या नहीं बतलाई है। इसके कुछ रणनीतिक कारण होंगे। चीन से हम यह उम्मीद कर भी नहीं सकते कि वहां इन मामलों में पारदर्शिता होगी। पूर्वी लद्दाख में गलवन घाटी में 15 जून, 2020 को एलएसी पर हुए खूनी संघर्ष के बाद भारत और चीन के सैनिकों के बीच सीधे टकराव का यह दूसरा अवसर है। ध्यान रखने की बात है कि कल उस संघर्ष में 20 भारतीय सैनिकों का बलिदान हुआ था।

इन 20 बलिदानी सैनिकों ने ही चीनी सेना की योजनाओं को ध्वस्त कर दिया था। इसमें ज्यादा संख्या में चीनी सैनिक भी मारे गए थे, जिनके बारे में पहले उसने इनकार किया, लेकिन बाद में उसे स्वीकार करना पड़ा। यह बात अलग है कि केवल 5 सैनिकों के मारे जाने की बात को ही स्वीकार किया है। हालांकि उस टकराव के बीच ही सितंबर 2020 में पैंगौंग झील के इलाके में एलएसी पर चीनी सैनिकों ने गोलीबारी की थी जिसका भारत की ओर से करारा जवाब दिया गया था।

यह 45 वर्ष से दोनों देशों की सीमा पर गोलीबारी नहीं होने के समझौते का सरेआम उल्लंघन था। अक्टूबर 2021 में भी यांगसे इलाके में चीनी सैनिकों ने भारतीय क्षेत्र में अतिक्रमण की कोशिश की थी, लेकिन भारतीय सैनिकों ने उन्हें अपने कब्जे में ले लिया और कुछ घंटों बाद दोनों देशों के बीच स्थापित तंत्र के बीच संवाद के बाद छोड़ा गया।

जाहिर है, चीन अपनी कुटिल रणनीति के तहत सैन्य गतिविधियों को इस तरह अंजाम देता है। वर्तमान झड़प के बारे में जितनी खबरें आई हैं उनके अनुसार चीनी सैनिकों की संख्या लगभग 300 थी। तवांग सेक्टर में 9 दिसंबर को करीब 17 हजार फीट की ऊंचाई पर झड़प हुई थी। चीनी सैनिक अगर मन बनाकर आए थे तो उनकी पूरी तैयारी थी। आमने-सामने की भिड़ंत हुई जिनमें भारतीय सैनिकों ने उनको करारा उत्तर दिया और खदेड़ डाला। तवांग सेक्टर में एलओसी पर दोनों पक्ष अपने दावे की सीमा तक क्षेत्र में गश्त करते हैं और 2006 से चल रहा है।

भारतीय सेना कभी इससे परे जाकर हरकत नहीं करती। किंतु चीनी सैनिक समय-समय पर ऐसा करते रहते हैं। चीन जिस ढंग के खुराफात करता है, उससे हमारे रिश्ते लंबे समय से तनावपूर्ण बने हुए हैं। पिछले 7 दिसंबर को विदेश मंत्री एस जयशंकर ने संसद में कहा था कि चीन के साथ अभी भारत के रिश्ते सामान्य नहीं कहे जा सकते। उन्होंने कहा था कि कूटनीतिक तौर पर चीन को यह स्पष्ट किया जा चुका है कि वह एलएसी को मनमाने तरीके से नहीं बदल सकता और इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। जब तक वे ऐसा करते हैं या शक्ति का प्रयोग करते हैं जो हमारी सीमा के लिए गंभीर चिंता पैदा करते हैं तब तक हमारे रिश्ते सुधर नहीं सकते। हाल में चीन में बढ़ती महंगाई के कारण लोगों ने जिस ढंग से प्रतिक्रियाएं व्यक्त की हैथ तथा जीरो कोविड नीति के विरुद्ध सड़कों पर उतरे हैं उनसे राष्ट्रपति शी जिनपिंग और उनके सलाहकारों के पेशानी पर बल पड़े हुए हैं।

सभी कोशिशों के बावजूद कहीं न कहीं लोग सड़कों पर उतर कर विरोध में नारे लगाते हैं और शी जिनपिंग वापस जाओ की बात करते हैं। संभव है इनसे ध्यान बंटाने के लिए भारत के साथ तनाव पैदा करने की कोशिश कर रहा हो। उसके पास दो ही क्षेत्र है जहां वह सैन्य कार्रवाई करके राष्ट्रवाद की भावना पैदा कर सकता है। एक है ताइवान, लेकिन वहां हस्तक्षेप से अभी वह बचना चाहेगा, क्योंकि अमेरिकी विमान दक्षिण चीन सागर में पहुंच चुके हैं। तो भारत बचता है।

तवांग के बारे में वह कहता है कि यह हमारा ही हिस्सा था। 1962 के युद्ध के समय चीनी सैनिकों का सबसे बड़ा समूह तवांग के रास्ते असम तक घुसपैठ किया था। कुछ समय के लिए तवांग उसके कब्जे में भी रहा था। अक्टूबर 2021 में चीन के 200 सैनिकों का एक दल तवांग स्थित भारत चीन भूटान सीमा के पास भारतीय गांव में घुस आया था जिसे बाद में भारतीय सैनिकों ने खदेड़ दिया था।

2020 में पूर्वी लद्दाख में चीनी घुसपैठ के बाद दोनों देशों के बीच होने वाली वार्ता में भी तवांग की स्थिति पर चर्चा हुई थी। गलवन घाटी में खूनी संघर्ष के बाद तनाव के बीच उसी वर्ष अगस्त में चीन के 100 सैनिक तवांग के एक क्षेत्र में करीब 5 किलोमीटर तक भारतीय सीमा में घुसे थे। इससे पहले वर्ष 2016 में करीब 200-250 चीनी सैनिकों ने तवांग स्थित एक दूसरे पॉइंट से भारतीय सीमा में प्रवेश किया था। हर बार भारतीय सैनिक उन्हें खदेड़ते हैं।

चीन की तरफ से बार-बार तवांग में घुसपैठ यूं ही नहीं है। तवांग का रणनीतिक महत्व है। इस जिले की सीमा भारत और तिब्बत के साथ ही भूटान से जुड़ी हुई है। यहां से वह समूचे पूर्वोत्तर भारत की निगरानी कर सकता है। इसका एक दूसरा पहलू भी है। तवांग का तिब्बत में प्रचलित बौद्ध धर्म से काफी गहरा नाता है और चीन इस आधार पर ही क्षेत्र पर अपना दावा पेश करता है। तवांग छठे दलाई लामा की जन्मस्थली है।

इस कारण बौद्ध धर्मावलंबियों के बीच पूरे दुनिया में इसका महत्व है। चीन कहता है कि चूंकि तवांग का मठ दलाई लामा द्वारा बनाया गया इसलिए वह हमारा भाग है। वर्तमान दलाई लामा जब तिब्बत में विद्रोह के बीच अपने सहयोगियों के साथ भारत भागे थे उस समय तवांग तिब्बत विद्रोह का एक बड़ा केंद्र था। इस कारण भी चीन की नजर वहां पड़ती है। दलाई लामा जब भी उस क्षेत्र की यात्रा करते हैं, चीन की तीखी प्रतिक्रिया सामने आती है। चीन के दावे को स्वीकार नहीं किया जा सकता। तिब्बत कभी चीन का भाग रहा नहीं है। उसने क्रूरता से तिब्बत को हड़पा है।

इस आधार पर विचार करें तो भारत के बौद्ध भिक्षुओं ने दुनिया में जहां-जहां बौद्ध मठ बनाए उसे हम भारत का भाग घोषित कर सकते हैं। कैलाश मानसरोवर आज चीन का भाग है। वह हमारा धर्म क्षेत्र है और मान्यता भी है कि वह भारत का ही अंग था। क्या चीन के व्यवहार के प्रत्युत्तर में भारत भी कैलाश मानसरोवर की मुक्ति के लिए कार्रवाई करे? लेकिन चीन को ऐसे तार्किक बातों से कोई लेना-देना नहीं। दक्षिण चीन सागर पर उसके दावे के विरुद्ध अंतरराष्ट्रीय न्यायालय तक ने फैसला दे दिया कि कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है, जिससे वह कभी आपका भूभाग बताया जा सके। बावजूद वहां पूरे सैन्य ताकत के साथ जमा हुआ है और किसी की नहीं सुनता। ऐसा देश हमारा पड़ोसी है तो हमें उसकी ऐसी हरकतों से निपटने के लिए हर क्षण तैयार रहना चाहिए। भारत ने चीन के इरादे को देखते हुए समूचे अरुणाचल प्रदेश में ढांचागत विकास को काफी तेज किया।

अरुणाचल से लगे लगे इलाकों में कुल 63 सड़क परियोजनाएं चल रही है। इससे चीन की सीमा तक भारतीय सैनिकों की पहुंच भी हो गई है। 1962 के युद्ध के समय सड़क मार्ग नहीं होने के कारण भारतीय सैनिकों को जबरदस्त नुकसान उठाना पड़ा था। तवांग और अरुणाचल के दूसरे इलाकों में भारत ने अपने सैनिकों की संख्या बढ़ाई है। चीन ने भी इस इलाके में सड़कों, पुलों सैन्य अड्डों का निर्माण किया है लेकिन उसे भारत के निर्माण पर आपत्ति है।

चीन जिस वृहत्तर राष्ट्र की नीति पर चल रहा है तथा विश्व का एकमात्र महाशक्ति बनने का इरादा रखता है उसमें भारत के सामने उसके समानांतर अपनी सैन्य शक्ति खड़ी करते हुए हर क्षण सतर्क रहने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। हां, इसके लिए देश में एकता चाहिए। राजनीतिक रूप से एक दल दूसरे का विरोध करें किंतु चीन के मामले पर भारत से एक आवाज निकलनी चाहिए। दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो रहा है।
Edited: By Navin Rangiyal

नोट :  आलेख में व्‍यक्‍त विचार लेखक के निजी अनुभव हैं, वेबदुनिया का आलेख में व्‍यक्‍त विचारों से सरोकार नहीं है।
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