• Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. साहित्य
  3. मेरा ब्लॉग
  4. webdunia blog

तालाब को सजा न सुनाएं

तालाब को सजा न सुनाएं - webdunia blog
अभी एक साल भी नहीं बीता उस बात को जब गणेशोत्सव के बाद प्रतिमा विसर्जन के लिए घर से करीब एक किलोमीटर के फासले पर स्थित इंदौर के पिपलियाहाना तालाब पर हम लोग गए थे। यद्यपि सार्वजनिक जल स्रोतों की स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से तालाबों आदि में मूर्ति विसर्जन पर प्रतिबन्ध का एक आदेश जरूर स्थानीय प्रशासन द्वारा जारी किया जाता है लेकिन सामान्यतः इस आदेश की धज्जियां उड़ते भी आम तौर पर वहीं दिखाई दे जाता है।


चूंकि नगर निगम ऐसे स्थानों पर एक पांडाल लगाकर मूर्तियों को एकत्र करके यथाविधि अन्यत्र विसर्जित कर देने का आश्वासन भी देता है अतः हम लोग वहां पांडाल में प्रतिमा सौंपकर तालाब की मुंडेर पर बैठकर बहुत देर तक खूबसूरत नज़ारे का आनंद लेते रहे। पोते को मैंने बहुत उत्साह से बताया कि आगे-पीछे यहां जरूर कोई ख़ूबसूरत पिकनिक स्पॉट विकसित हो जाएगा और हमलोग शाम को रोज यहां आया करेंगे। 
 
परन्तु यहां तालाब की जमीन पर अब नए न्यायालय भवन को बनाया जाना प्रस्तावित है। तालाब के बीच में रिटेनिंग वाल बनाई जा रही है। दिलचस्प यह है कि शुरुआती बरसात ने ही तालाब के जल भराव क्षेत्र को प्रमाण पत्र दे दिया है कि वास्तविक तालाब की सही सीमा क्या है। क्षेत्र के रहवासी और सामाजिक संगठनों द्वारा इसका विरोध भी जारी है और इस सम्बन्ध में वरिष्ठ अधिकारियों, जन प्रतिनिधियों और मुख्यमंत्री तक गुहार लगाई गयी है। वकीलों और कई अन्य संगठनों ने भी बड़े अभियान चला दिए हैं ताकि तालाब को बचाया जा सके।
 
विकास के इस दौर में शायद यह खबर अधिकांश लोगों के भीतर कोई ख़ास हलचल पैदा न कर सके लेकिन उन संवेदनशील लोगों को जरूर ठेस पहुंचाती है जो प्रकृति, पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों से प्रेम करते हैं। यह पहली खबर नहीं है जब विकास के लिए किसी तालाब के सीने पर कांक्रीट की मीनारें खडी करने की पहल की गई  हो। दुर्भाग्य से हमारे देश-प्रदेश के कई नगर और महानगर इसके जीवंत उदाहरण हैं जहां सैंकड़ों तालाबों और बावडियों, कुओं की कब्र पर कॉलोनियां और सड़कें बना दी गईं। 
 
किसे याद नहीं होगा कि इंदौर जैसे महानगर और देवास जैसे शहरों में कितनी दूर से (लगभग 150 कि.मी.) नर्मदा का पानी लोगों की प्यास बुझाने के लिए लाना पड़ा है। मुझे याद है आज से कोई तीस बरस पहले देवास में हम परिवार के लोग एक दिन छोड़कर स्नान किया करते थे क्योंकि उन दिनों इंदौर से पानी रेल गाडी से एक दिन छोड़कर देवास आता था। जबकि जो सड़क हमारे घर तक पहुंचती थी उसके नीचे एक ख़ूबसूरत बावडी दफन कर दी गई थी। पहले बावडी की भरपूर अनदेखी की गई फिर उसमें लगातार कूड़ा-करकट डाला जाता रहा। बावड़ी को पहले जहर देकर बीमार किया गया, फिर क्रमशः मरती हुई वह एक दिन हमारी नज़रों से ओझल हो गई। यह वही बावडी थी जिसमें उतरकर हम बचपन में रोज नहाया करते थे। 
इसी तरह नगर के एक मात्र टाउन हाल के सामने का ख़ूबसूरत तालाब तलैया में बदल गया और उसके जल भरण क्षेत्र में अट्टालिका खडी हो गई थी। विडम्बना है कि उसी इमारत की भूतल पर स्थित कॉफी हाउस में बुद्धिजीवी और पत्रकार जलसंकट को लेकर विमर्श करते रहे और आज भी करते हैं। ये कहानी केवल एक शहर या कस्बे की नहीं है। जल स्रोतों की दुर्दशा के ऐसे अनेक उदाहरण सहज रूप से हमारे आसपास बिखरे पड़े हैं। 
 
इंदौर के पिपलियाहाना तालाब के पानी से आसपास के सैंकड़ों ट्यूबवेल रिचार्ज होते हैं। मालवा सहित देश भर में दिनों-दिन गिरता भूजल स्तर किसी से छुपा नहीं है। दूसरी तरफ कांक्रीट के निर्माणों ने सडकों के बरसाती पानी को जमीन में जाने से रोकने का काम ही किया है। इसके अलावा गौर करने वाली बात यह भी है कि जिस स्थान पर यह तालाब ( वर्ड-कप चौराहा) अवस्थित है वह भविष्य के बहुत सुन्दर पिकनिक स्पॉट में रूपांतरित होने के लिए पूरी तरह उपयुक्त है। सामान्यतः तालाबों के आसपास का भूखंड मनोरम होता है और उसका विवेकपूर्ण उपयोग ही किया जाना चाहिए। कार्यालयों और संस्थानों के भवनों के लिए अन्य पथरीली, बंजर या अनुत्पादक भूमि को विकसित भी किया जा सकता है। 
 
अनेक उदाहरण हैं जब प्राकृतिक संसाधनों और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बगैर विकास किया गया है। न्यायालय परिसर के लिए तो कई स्थान मिल जाएंगे जहां अपराधियों को सजा सुनाई जा सकती है लेकिन विकास के नाम पर एक निरपराध तालाब को मौत या आजीवन कारावास की सजा दिया जाना कतई न्यायोचित नहीं कहा जा सकता। 

ये भी पढ़ें
कान में आवाज गूंजना, टिनिटस की निशानी ..!