शनिवार, 20 अप्रैल 2024
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  4. public has stopped being afraid, the responsibility is now on Rahul
Written By Author श्रवण गर्ग

जनता ने डरना बंद कर दिया है, ज़िम्मेदारी अब राहुल पर है!

Rahul Gandhi
फ़िल्म ‘पठान’ की हज़ार करोड़ी कामयाबी ने पस्त पड़ते अरबों रुपए के कारोबार वाले मुंबई के फ़िल्म उद्योग में उम्मीदें जगा दीं हैं कि ‘भक्तों’ के बॉयकॉट कॉल के आह्वान के बावजूद दर्शक घरों से बाहर निकलकर सिनेमाघरों की ओर रुख़ करने साहस जुटा सकते है और वह अब थमने वाला भी नहीं है। राहुल गांधी की महत्वाकांक्षी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ को मिली देशव्यापी कामयाबी ने भी लगातार के छापों और गिरफ़्तारियों के कारण निराशा में डूब रहे विपक्ष में आत्मविश्वास भर दिया है कि जनता के मन से सरकार का ख़ौफ़ अब ख़त्म हो रहा है और 2024 के चुनावों में उसे सत्ता से बाहर किया जा सकता है। 
 
सवाल यह है कि राहुल की 4 हज़ार किमी की सड़क यात्रा मोदी सरकार की 2024 तक की 4 हज़ार दिनी सत्ता-यात्रा पर इतनी भारी पड़ सकेगी या नहीं कि विपक्षी दलों के लिए सत्ता में वापसी के रास्ते खुल जाएं? ऐसा नहीं हुआ तो उसके राजनीतिक परिणाम देश के लिए किस तरह के होंगे? क्या मोदी इतनी आसानी से सत्ता तश्तरी पर रखकर विपक्ष को सौंप देंगे और गुजरात लौट जाएंगे?
 
देश की 138 साल पुरानी ‘ग्रांड ओल्ड पार्टी’ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ‘भारत जोड़ो यात्रा’ से उत्पन्न हुए चमत्कार से महीने भर बाद भी इतनी अभिभूत नज़र आती है कि उसकी खुमारी से मुक्त होकर पार्टी की ज़मीनी हक़ीक़तों और विपक्षी दलों से रूबरू होने को तैयार नहीं हो पा रही है। उसे यह भी खबर है देश की वह जनता जो हज़ारों-लाखों की तादाद में राहुल की अगवानी के लिए सड़कों पर उमड़ी थी, एक नई कांग्रेस के प्रकटीकरण की उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रही है। दूसरी ओर, इससे पहले कि ‘यात्रा’ से उत्पन्न होने वाला कोई संगठित प्रताप भाजपा के ख़िलाफ़ प्रकट हो विपक्ष की दरारें सामने आने लगी हैं। 
 
ममता के भतीजे अभिषेक बनर्जी ने 4 दिन पहले कांग्रेस को अपना चुनावी दुश्मन घोषित कर दिया था। तीन दिन पहले राहुल गांधी ने शिलांग में तृणमूल कांग्रेस के घोटालों का इतिहास उजागर करते हुए कह दिया कि ममता की पार्टी भाजपा की मदद में लगी है। बंगाल से लोकसभा के लिए 42 सीटें हैं जिनमें कांग्रेस के पास सिर्फ़ दो हैं। बिहार में हो सकने वाले नुक़सान की आशंका के चलते भाजपा के लिए बंगाल काफ़ी महत्वपूर्ण हो गया है।
 
राहुल के आरोप का मतलब यह है कि लोक सभा चुनावों में ममता की भूमिका वैसी ही हो सकती है जैसी यूपी के विधानसभा चुनावों में मायावती की पार्टी की थी। बसपा का वोट शेयर विपक्ष में सर्वाधिक था पर एक को छोड़ उसकी सारी सीटें भाजपा के खाते में चली गईं थीं।
 
देश की नज़रें इस समय कांग्रेस के रायपुर अधिवेशन पर हैं। पवन खेड़ा के ख़िलाफ़ दिल्ली हवाई अड्डे पर हुई पुलिस कार्रवाई के बाद रायपुर से प्रकट होने वाले कांग्रेस के तेवरों का महत्व और बढ़ गया है। भय इस बात का है कि अधिवेशन का अधिकांश वक्त राहुल की यात्रा का गुणगान करने में ही नहीं गुज़र जाए। विपक्षी दलों का ध्यान भी रायपुर पर केंद्रित रहेगा क्योंकि 2023 का पूरा साल विधानसभा चुनावों के लिहाज़ से महत्वपूर्ण है और इसी के परिणाम अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों की बुनियाद बनेंगे।
 
कांग्रेस को जानकारी है कि छत्तीसगढ़ सहित जिन तीन राज्यों में 2018 में कांग्रेस की सरकारें बनीं थीं उनमें 2019 के लोकसभा चुनावों में उसे कुल 65 में से सिर्फ़ तीन सीटें मिलीं थीं। (छत्तीसगढ़ में दो, मध्य प्रदेश में एक और राजस्थान में शून्य)। पिछले लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने देश भर में 421 सीटों पर चुनाव लड़ा था पर जीत सिर्फ़ 52 पर मिली थी। 148 पर ज़मानतें चली गई थीं।
 
पिछले लोकसभा चुनावों (2019) के मुक़ाबले राजनीतिक परिस्थितियां इस वक्त निश्चित ही भाजपा के काफ़ी ख़िलाफ़ हैं। अदाणी प्रकरण ने सरकार को हिला कर रख दिया है। वह मामले की संसदीय जाँच से दूर भाग रही है। जनता की नज़रों में है कि बोलने की आज़ादी पर किस तरह से शिकंजा कसा जा रहा है। बीबीसी पर हमला इसका ताज़ा उदाहरण है। न्यायपालिका पर दबाव बनाया जा रहा है। संसद में विपक्ष की आवाज़ को कुचला जा रहा है। भाजपा को इस समय सारा डर कांग्रेस के बढ़ते हुए प्रभाव से है। केवल कांग्रेस के पास ही उन राज्यों में समर्थन की ज़मीन है, जिस पर भाजपा सत्ता की फसलें उगा रही है।
 
जिस तरह की स्थितियां देश में बन रही हैं, दुनिया के लोग चिंता के साथ भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं और संस्थानों की पुनर्स्थापना की उम्मीदें तलाश रहे हैं। माना जा सकता है कि सत्तारूढ़ दल में भी एक बड़ा तबका ऐसा हो जो राहुल गांधी और कांग्रेस के अगले कदमों में अपने लिए राहत की सांसें ढूँढ़ रहा हो! आश्वासन मिलना चाहिए कि कांग्रेस के रायपुर अधिवेशन की घोषणा 31 दिसंबर 1929 को रावी नदी के किनारे से जवाहरलाल नेहरू द्वारा किए गए आह्वान जैसी ही प्रभावशाली साबित होगी। एक लंबे अरसे के बाद जानता ने तालियाँ और थालियाँ बजाना बंद करके बोलना शुरू किया है। लोगों की ज़ुबानें फिर से बंद न हों यह सुनिश्चित करना राहुल की ज़िम्मेदारी है!
 
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