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Written By Author डॉ. राम अवतार यादव
Last Updated : बुधवार, 27 अप्रैल 2022 (19:49 IST)

सांप्रदायिक सद्भाव के लिए भोपाल से प्रेरणा लेने की आवश्यकता

सांप्रदायिक सद्भाव के लिए भोपाल से प्रेरणा लेने की आवश्यकता - Need to take inspiration from Bhopal for communal harmony
इंसान के तौर पर हम सब शांति एवं सद्भावना के साथ जीवन व्यतीत करना चाहते हैं। हम सब जानते हैं की सांप्रदायिक तनाव या हिंसा से कहीं न कहीं एक समाज के तौर पर हम सबका नुकसान होता है। पिछले दिनों रामनवमी एवं हनुमान जयंती के दौरान हमने देखा की देश के अलग-अलग हिस्सों से छोटे-मोटे सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएँ सामने आई। 
 
जब ऐसे सांप्रदायिक दंगो की घटनाएँ हम तक मीडिया के माध्यम से पहुँचती हैं तो एक आम नागरिक के तौर पर हमारे लिए यह तय कर पाना मुश्किल होता है की ऐसी घटनाओं के पीछे की पूरी सच्चाई क्या है। इसका मुख्य कारण यह है की हम स्वयं उस जगह पर नहीं होते जहां से ऐसी घटनाएँ सुनने को मिलती है। हमारी सूचना का मुख्य स्रोत मीडिया होती है जिनकी खबरों के आधार पर हम अपनी समझ और राय विकसित करते हैं। इस संदर्भ में हमने मीडिया के माध्यम से यह देखा की रामनवमी पर्व के दौरान कहीं श्री राम की शोभा यात्रा पर पत्थरबाजी की गयी तो कहीं मस्जिद से झंडे हटाकर वहाँ दूसरे झंडे लहराने की कोशिश की गयी। 

भारत में हर धर्म एवं संप्रदाए के लोग रहते हैं तथा पूरी दुनिया में हमारी पहचान ‘अनेकता में एकता’ वाले राष्ट्र के तौर पर होती है। सांप्रदायिक सौहार्द हमारी जीवनशैली के मूल में निहित है जिसकी मिसाल हम सदियों से देखते आ रहे हैं। हमारा इतिहास सांप्रदायिक सद्भावना की कहानियों से भरा है। इसका मतलब यह नहीं है की हमारे देश ने सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएँ नहीं देखि है। हालिया कुछ दशकों की बात करे तो हमने कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार के साथ-साथ मुंबई, गुजरात एवं मजफ्फरनगर जैसे सांप्रदायिक दंगे देखे हैं जो भारतीयता के मूल भावना के बिलकुल विपरीत है। परंतु ऐसी हर घटना के बाद हमने भारत में शांति और समरसता बहाल होते हुए देखा है, और इन्हे भूलकर मिलजुलकर एक दूसरे के साथ कदम से कदम मिलकर एक समाज के तौर पर आगे बढ्न सीखा है। 

भारतीयता की भावना श्री राम, भगवान बुद्ध, कबीर और गांधी जैसे महापुरुषों के मूल्यों पर टिकी है जो अपने समय में शांति और सद्भावना स्थापित करने में आदर्श रहे हैं। वर्तमान में सांप्रदायिक हिंसा की छोटी-मोटी घटनाओं की बढ़ती आवृत्ती थोड़ा चिंतित करती है। इस बार रामनवमी के अवसर पर देश के विभिन्न हिस्सों से जितनी सांप्रदायिक तनाव की खबरें सुनने को मिली उतनी शायद हमने पहले कभी नहीं सुनी थी। 

जब हम ऐसी घटनाओं की आवृत्ती में बढ़ोतरी के कारणों की पड़ताल करने की कोशिश करते हैं तो किसी एक बिन्दु को चिन्हित करना मुश्किल होता है। आज के दौर में जहां एक ओर हम मीडिया में साफ तौर पर एक ध्रुवीकरण देख रहे हैं वहीं सांप्रदायिक रूप से उन्मादी कंटैंट को समाज के आम लोगों में फैलाने में इंटरनेट एवं सोश्ल मीडिया का इस्तेमाल भी बड़े पैमाने पर हो रहा है। मीडिया संस्थानों में दिखने वाला ध्रुवीकरण, एवं टीआरपी की होड़ में उनमे सांप्रदायिक मुद्दों से जुड़े खबरों को वरीयता देने की प्रवृति आमलोगों के दिलों में सांप्रदायिक रूप से नकारात्मक भावनाओं को जन्म देती है जिसके आधार पर वह दूसरे संप्रदाए के लोगों को अपने दुश्मन के तौर पर देखने लगते हैं। रामनवमी एवं हनुमान जयंती पर दर्ज़ की गयी सांप्रदायिक घटनाएँ शायद इसी तरीके के सूचना सम्प्रेषण प्रक्रियाओं का नतीजा है जिसके फलस्वरूप हम समाज में भी एक तरह का ध्रुवीकरण होते हुए देख रहे हैं। 

बहरहाल, इन सांप्रदायिक रूप से तनावपूर्ण घटनाओं के बीच हनुमान जयंती के रोज़ भोपाल से एक ऐसी घटना सामने आई जो सांप्रदायिक सौहार्द एवं भाईचारे की मिसाल पेश करती है। मध्य प्रदेश में ही जहां खरगोन में घटी सांप्रदायिक घटनाओं ने पूरे देश का ध्यान खींचा वहीं हनुमान जयंती के दौरान भक्तों द्वारा निकाले गए शोभा यात्राओं पर भोपाल शहर के कुछ इलाकों में मुस्लिम समाज के लोगों ने फूल बरसाकर उनका स्वागत किया। अपनी गंगा-जामुनी संस्कृति के लिए प्रसिद्ध भोपाल शहर ने देश के लिए सामाजिक सद्भाव एवं सौहार्द का एक और अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया है। प्रदेश के कुछ अन्य शहर जैसे इंदौर, उज्जैन आदि से पिछले 2-3 सालों में सांप्रदायिक हिंसा की छिटपुट घटनाओं की खबरें आती रही हैं। वहीं भोपाल अपनी सांप्रदायिक समरसता की भावनाओं को सालों से समय-समय पर दर्शाती रही है। ज़रूरत इस बात की है की सांप्रदायिक सद्भाव को मजबूत करने वाली ऐसी गतिविधियों को न्यूज़ मीडिया में ज़्यादा से ज़्यादा स्थान दिया जाए ताकि भाईचारे की ऐसी भावनाओं को समाज में बढ़ावा मिल सके। 
(लेखक जागरण लेकसिटी विश्वविद्यालय, भोपाल के स्कूल ऑफ जर्नलिज़्म में सहायक प्राध्यापक हैं) 
   
(इस लेख में व्यक्त विचार/ विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/ विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई जिम्मेदारी नहीं लेती है।)
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