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हिंदुत्व समर्थकों के खिलाफ कार्रवाई कर अपना ही पक्ष कमजोर किया अतिवादी तत्‍वों ने

हिंदुत्व समर्थकों के खिलाफ कार्रवाई कर अपना ही पक्ष कमजोर किया अतिवादी तत्‍वों ने - Jantar-mantar, delhi, riots, delhi riots, hindutva,
राजधानी दिल्ली के जंतर मंतर पर इससे पहले धरना में भाषण देने वाले कब गिरफ्तार हुए इसके लिए पूरा इतिहास खंगालना होगा। इस तरह यह एक विरल मामला हो गया है।

आरोप है कि समान नागरिक संहिता, जनसंख्या नियंत्रण कानून, देश में एक कानून आदि की मांग के लिए आयोजित धरने में कुछ लोगों ने आपत्तिजनक भाषण दिए। निस्संदेह, कुछ भाषण अस्वीकार्य थे। किसी मजहब को आप पसंद नहीं करते हैं यह आपका विषय हो सकता है।

किंतु उसके बारे में हिंसक और सांप्रदायिक वक्तव्य को भारतीय कानून मान्यता नहीं देता और दुनिया के किसी सभ्य समाज में इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। इस आधार पर देखें तो धरना में शामिल चिन्हित लोगों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई उचित लगती है। ऐसा नहीं हुआ तो दूसरे लोग भी इस तरह का भाषण देकर के और आग भड़का सकते हैं।

जो कुछ भी हुआ या हो रहा है उसे अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण कहना होगा। यह बात सही है कि सरकारों द्वारा अल्पसंख्यक तुष्टीकरण एवं इससे जुड़े वोट बैंक की राजनीति के विरुद्ध देश में गैर मुस्लिम धर्मावलंबियों के बीच आक्रोश है।

हिंदुओं के अंदर पिछले कुछ वर्षों में जागरण हुआ है। हिंदुत्व को लेकर आक्रामकता भी बढ़ी है। इस कारण ही देश की अनेक राजनीतिक पार्टियों को अपना वोट बचाने के लिए स्वयं को हिंदू धर्म के प्रति निष्ठावान साबित करने की श्रृंखला चल पड़ी है। हिंदुत्व समर्थकों के लिए यह उत्साह का विषय होना चाहिए।

किंतु हिंदुत्व जैसे व्यापक और सर्व समावेशी विचार को स्थाई स्वीकृति दिलाने के लिए धैर्य, संयमित बयान संतुलन आदि की गहरी आवश्यकता है। हिंदुत्व समर्थकों में एक बड़ा वर्ग निश्चित रूप से इन मानकों पर खरा उतरता है। किंतु दूसरी और यह भी सच है कि बड़ी संख्या में अतिवादी और उग्र विचार रखने वाले भी इस समय हिंदुत्व के पुरोधा बन गए हैं और ये अपना ही पक्ष कमजोर करते हैं।

लोकतंत्र में आपको अपनी मांग के लिए धरना प्रदर्शन करने का पूरा अधिकार है। समान नागरिक संहिता के पक्ष में तो उच्चतम न्यायालय और देश की कई उच्च न्यायालय अनेक बार टिप्पणियां कर चुका है। राजनीतिक दल मुस्लिम वोटों के बिखर जाने के भय से इस दिशा में कभी आगे नहीं आए। देश की स्थिति ऐसी हो गई है कि राष्ट्रीय स्तर पर इसके बारे में सर्वसम्मति कायम करना कठिन है। मांग नाजायज नहीं है।

इसी तरह जनसंख्या नियंत्रण कानून के पक्ष में भी व्यापक वर्ग है। हालांकी इसे लेकर थोड़ा सतर्क होने की बात करने वाले भी हैं। यह भी सही है कि जनसंख्या नियंत्रण के लिए जिन देशों में कानून लगाओ लागू हुआ वह पूरी तरह सफल नहीं रहा। भारत में राजनीतिक पार्टियों के बीच इस पर सहमति नहीं हो सकती, क्योंकि सबके सामने मुस्लिम वोट का सवाल है। हालांकि भाजपा शासित कुछ राज्यों ने इस दिशा में साधारण कदम बढ़ाए हैं।

राष्ट्रीय स्तर पर भारत की विविधताओं को देखते हुए इस तरह का कानून बनाना और उसे लागू करना अत्यंत कठिन है। फिर इसके खतरे भी हैं। जिन देशों ने जनसंख्या का नियंत्रण किया वे बूढ़ों के देश हो चुके हैं या हो रहे है। आज पश्चिम के ही अनेक देश ज्यादा बच्चा पैदा करने के लिए लोगों को प्रेरित कर रहे हैं। चीन ने ही ,जिसने एक समय एक बच्चे की नीति को लागू करने की कोशिश की अब तीन बच्चे की अनुमति दे दी है है।

जो भी स्थिति हो मुसलमानों के खिलाफ हिंसक और सांप्रदायिक बयान देना खतरनाक है, मूर्खता भी है और ऐसे लोगों से सावधान और सतर्क रहने की जरूरत है। हिंदुत्व इस तरह की बात नहीं करता। हिंदुत्व सर्वधर्म समभाव में विश्वास करता है। विरोधियों के प्रति भी उनका मानस परिवर्तन करने की अनुशंसा हिंदुत्व में है। इस्लाम की कुछ बातों से अगर आपकी असहमति है तो उसे प्रकट करने का तरीका भी संयमित संतुलित होना चाहिए।

दुर्भाग्य से पूरे भारत में बड़ी संख्या में लोग इसे नहीं समझते कि भारत जैसे देश में आप किसी एक मजहब को निशाने पर रखकर हिंसा सांप्रदायिकता की कोशिश करेंगे तो उससे देश को क्षति होगी। इससे हिंदुत्व का पक्ष कमजोर होगा। ऐसे लोग उन लोगों के विचारों को, उनके पक्ष को सही ठहराते हैं जो आरोप लगाते हैं कि हिंदुत्व एक फासीवादी विचारधारा है और अगर हिंदुत्व स्वीकृत हुआ तो भारत में किसी मजहब के लिए कोई स्थान नहीं बचेगा। यह बिल्कुल गलत है। हिंदुत्व में सभी धर्मों को अपनी उपासना पद्धति के अनुसार जीने और काम करने का की पूरी स्वतंत्रता है। यहां पर पुलिस कार्रवाई सही लगती है।

लेकिन इसका दूसरा पक्ष भी है। किसी धरना में ऐसे अनेक लोग शामिल होते हैं जिनको आयोजक तक नहीं जानते। जिन्हें वहां भाषण देने के लिए बुलाया जाता है वह भी वहां ज्यादातर लोगों को नहीं जानते। इसलिए किसी धरना में अगर कुछ अतिवादी लोगों ने आपत्तिजनक भाषण दिए तो वीडियो के अनुसार केवल उन पर कार्रवाई होनी चाहिए। ऐसा नहीं होना चाहिए कि जो लोग वहां भाषण देने गए उनको आप दोषियों के बदले दोषी साबित कर दें।

दुर्भाग्य से इस मामले में ऐसा हो रहा है। जंतर-मंतर पर इससे भी खतरनाक भाषण, आपत्तिजनक नारों का लंबा रिकॉर्ड है। ऐसा नहीं सुना गया कि उसके कारण लोगों पर मुकदमा हुआ हो, पुलिस पूछताछ कर रही हो, गिरफ्तारी हो रही हो। आम आदमी पार्टी के धरना में ,जिसमें अरविंद केजरीवाल सहित सारे नेता उपस्थित थे एक किसान ने आत्महत्या कर लिया। उस समय तो किसी ने इसकी जहमत नहीं उठाई कि केजरीवाल और बाकी लोगों से पूछताछ हो, उनकी गिरफ्तारी हो।

हिंदुत्व के खिलाफ वहां अनेक बार आपत्तिजनक भाषण दिए गए। भारत देश के ही खिलाफ वहां भाषण हुए हैं। भारतीय संविधान की प्रतियां तक वहां जलाई गई है। कभी नहीं सुना गया कि इस तरह की कार्रवाई हो। इस समय देश में जिस ढंग से विचारधारा की लड़ाई चल रही है उसमें सेक्येलरवाद की विकृत व्याख्या करने वाले तथाकथित सेकुलर ब्रिगेड को केवल यही कार्यक्रम नागवार गुजरा।

उन लोगों ने सोशल मीडिया पर इसको मुद्दा बनाया, पुलिस के पास कार्रवाई के अलावा कोई चारा नहीं था। जो लोग हिंदुत्व की व्यापक अवधारणा को समझते हैं और भारत सहित विश्व में उसकी स्वीकृति की कल्पना करते हैं उन्हें इस घटना से पूरी तरह सतर्क हो जाना चाहिए। आप अपनी मांग रखिए,अपनी बात कहिए लेकिन ध्यान रहे कि अतिवादी तत्व इसका दुरुपयोग कर आपके पक्ष को कमजोर न कर दें। इस समय समान नागरिक संहिता, जनसंख्या नियंत्रण कानून आदि की मांग ही इनके कारण कमजोर पड़ गया।

(आलेख में व्‍यक्‍त विचार लेखक के निजी अनुभव हैं, वेबदुनिया का इससे कोई संबंध नहीं है।)