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Last Updated : गुरुवार, 10 अक्टूबर 2024 (12:30 IST)

डाक दिवस पर रोचक वार्तालाप

Post Day: डाक दिवस पर रोचक वार्तालाप - Interesting conversation on Post Day
मित्रों, 
आज डाक दिवस है। सभी पत्र लेखकों को हार्दिक बधाई। इस पोस्ट को पोस्ट कार्ड मानकर स्वीकारें। 
 
मुझे यह बताते हुए गर्व है कि मैं अपने जमाने का एक ऐसा पत्र लेखक रहा हूं जिसकी पत्र लेखन शैली को उन सभी (बहन, भाभी, साले, साली, होने वाली तथा बाद में हो चुकी पत्नी और दोस्तों) ने सराहा जिन्हें मैंने पत्र लिखे। जिन्हें मेरे पत्रों का इंतजार रहता था। मेरा हास्य व्यंग्य बोध उस पत्र लेखन से ही परवान चढ़ा। पर आज बात मेरे पत्रों की नहीं।
 
विश्व के प्रथम हिंदी पोर्टल 9वेबदुनिया डॉट काम’ की सन 2000 में स्थापना के बाद सन 2002 में मेरी मुलाकात नईदुनिया के ’पत्र संपादक के नाम’ कॉलम के प्रसिद्ध पत्र लेखक मंदसौर के आदरणीय विषपाई जी से हुई। मैंने एक अनौपचारिक आत्मीय भेंट में उन्हें अपने दो हास्य व्यंग्य के आलेख समीक्षा के लिए भेंट किए, जो वेबदुनिया पर अपलोड हो चुके थे।
 
कुछ ही दिनों में उनकी और से मुझे एक साथ तीन पोस्ट कार्ड प्राप्त हुए। जिनमें तारीफों की अतिरंजित चाशनी में तैरते मेरे दोनों आलेखों की समीक्षा के दो रसगुल्ले तैर रहे थे। 
 
उनके इन पोस्ट कार्ड की छवि तथा अंकित मजमून को मैं अपने गौरव गान के लिए नहीं बल्कि अग्रिम पंक्ति के एक विशिष्ट पत्र लेखक की अंदरूनी छवि तथा किसी नवोदित लेखक को किस तरह से प्रेरित किया जाता है, यह दर्शाने के लिए जग जाहिर कर रहा हूं। 
 
प्रस्तुत हैं तीन पोस्ट कार्ड में समाहित पत्र मां मजमून।
 
कार्ड 1.
 
456, विषपाई,
अभिनंदन विस्तार, 
मंदसौर, मध्य प्रदेश,
दिनांक- 5 मार्च 2002।
 
आदरणीय भाई महेंद्र सांघी जी। सस्नेह नमस्कार। आपके वेब दुनिया में मिल जाने से वेबदुनिया अपरिचित नहीं लगी। महेंद्र भाई आपके पास जितना प्रेम है उससे ज्यादा उदारता है। आपका प्रेम तो खुलकर बोलता है। आपकी सहजता और सरलता ने मेरे मन को छुआ है। आपका आत्मीयता से मिलना....... चाय पिलाना...... आग्रहपूर्वक बिठाना ......माउस पकड़ना समझाना..... ईमेल मेरे नाम की बनाना...... यह बातें आज की कारोबारी दुनिया में दुर्लभ हो गई हैं। फिर आप तो चारों तरफ कंप्यूटर नाम की मशीनों से घिरे हुए हो, जहां संवेदना नाम का आता-पता तो दूर-दूर तक नहीं होता। 
 
इतनी कारोबारी दुनिया में भी महेंद्र भाई ने अपनी संवेदना और प्रेम को बचाए रखा है। सच महेंद्र भाई आपसे मिलकर मुझे बहुत-बहुत अच्छा लगा है। मेरा यह विश्वास और मुकम्मल हुआ है कि इस धरती पर अभी अच्छे लोग अच्छी मात्रा में जीवित हैं। इंदौर में आप जैसा स्नेही उदार और सरल चित्त मित्र बन जाना सौभाग्य की बात है। 
 
चलिए आपके प्रथम आलेख 'कैसा रहा पिछला साल' पर भी गुफ्तगू हो जाए। महेंद्र भाई आपका घूमता आईना पिछले साल को जानने के लिए निकला तो उसने टीवी सीरियलों को निशाना बनाया, तो उसे व्यक्ति की सोच की और भी इंगित किया जिसके घर में पूरे साल चोरी नहीं हुई और वह व्यक्ति अपनी जमा पूंजी को बचाने लेने में स्वयं को भाग्यशाली समझ रहा है। 

कार्ड 2.
 
आपका घूमता आईना अपनी जद में मुरली मनोहर जोशी जी का नया पाठ्यक्रम (ज्योतिष और कर्मकांड की पढ़ाई), महंगाई की मार, व्हाया शनि महाराज क्रेडिट कार्ड के आ जाने से उत्पन्न संकट, नए बाजारीकरण में आजकल चल रहे स्पेशल एक्सचेंज ऑफर, रेजगारी संकट, अमेरिका में मंदी का दौर जिसमें आईटी के इंजीनियरों का बेकार होने के साथ नाउम्मीदी, नए-नए वायरसों की भरमार आदि आदि को समेटते, नव वर्ष की शुभकामनाएं देते हुए अपने घर की सुध लेता है।
 
वर्ष 2002 पर भी यदि आपकी खोजी प्रवृत्ति जोर मारे तो किसी साहित्यकार को लेना ना भूलें। वह आपको पुरस्कार ना मिलने और खुद की जेब से छपाई पुस्तक कम बिकने का रोना अवश्य रोएगा। खैर .....इस व्यंग्य पर मेरी बधाई स्वीकारें। 
 
आपने अपने दूसरे व्यंग्य आलेख 'मतदान प्रक्रिया का उदारीकरण’ मुझे एक मतदाता समझ कर ही दी होगी। सच विषपाई तो इस उदारीकरण की अभिनव योजना का प्रारूप पढ़कर लोटपोट हो गए। वाह... महेंद्र भाई... वाह। आपका मस्तिष्क निश्चय ही उर्वर है, लगता है खूब बादाम ना केवल खाते हो बल्कि अपनी चांद पर घिसते भी हो जिससे अभिनव कल्पनाओं के कल्ले के कल्ले फूटे पड़ते हैं।

चुनाव के मतदान के प्रतिशत को कैसे बढ़ाया जाए यह प्रारूप जो महेंद्र भाई ने बनाया है वह सरकार के अनुमोदन के लिए अवश्य भेज जाना चाहिए। किंतु महेंद्र भाई इसमें जटिलता भी कम नहीं हैं। प्रायोजकों में वे ही फायदे में रहेंगे जो पूंजीपति होंगे। गरीब को तो अपना प्रायोजक मिलने से रहा। लेकिन भविष्य की कौन कह सकता है। क्या पता आने वाले समय में महेंद्र भाई की योजना (मतदाता आकर्षण) क्रियान्वित हो। 

कार्ड 3.
 
महेंद्र भाई, आप में व्यंग्य बहुत और कल्पना शक्ति दोनों है, आप अपने इन दोनों गुणों का लेखन में बढ़िया उपयोग कर लेते हैं। अच्छा हुआ हम दोनों अनायास मिले और आपने मुझे अपनी दो रचनाओं से पढ़ने हेतु नवाजा। पढ़कर जैसा अपनी अल्पबुद्धि में समझ में आया वह इन तीन पोस्टकार्ड श्रृंखला में आपके सामने प्रस्तुत है, साधारणतः मैं पोस्टकार्ड ही लिखता हूं। इसके पीछे मेरा उद्देश्य बचत ही है। रुपयों पैसों की इफराती हो तो लिफाफा लिखना नापसंद भी नहीं है।
 
आपने ’ईमेल से आईडी’ तो बनवा दिया। यह वी सी पी होने का एहसास जरूर दे रहा है। इंदौर से पुत्र ने कहा कि बाबूजी मैंने ईमेल किया है। एक कंप्यूटर वाले के पास गए तो उसने 10 झटक लिए.....बहुत अखरी। हां ’वेलकम टू वेब दुनिया इंदौर’ पढ़कर जरूर मन प्रसन्न हुआ। लड़के का ईमेल नहीं था। खैर ........
 
हां कल बीबीसी पर श्री विनय छजलानी जी को सुना। उनका कहना था कि कंप्यूटर पर अंग्रेजी का ही होना सही धारणा नहीं है। भारतीय भाषाओं में भी अब काम हो रहा है। किंतु Sir, it is still out of reach for a person whose income is near about Rs. 6000/- p.m.
 
महेंद्र भाई परिवार में सबको सादर नमन।
सस्नेह विषपाई'
आपकी प्रतिक्रियाओं के इंतजार में महेंद्र सांघी
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