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आखिर मुंबई के दुर्दान्तों के सिर पड़ा कानून का हथौड़ा

आखिर मुंबई के दुर्दान्तों के सिर पड़ा कानून का हथौड़ा - Hindi Blog On Mumbai Blast
अब लोग इसे अधूरा न्याय कहें या न्याय राह में प्रत्यर्पण की बाधा! ये उनकी सोच है, सच यही है कि 24 सालों के लंबे इंतजार के बाद आए इस फैसले ने पीड़ितों (जो बचे हैं) और न्याय के प्रति आस्थावानों में जरूर विश्वास पैदा कर दिया है। 1993 में मुंबई में कुछ ही मिनटों के अंतर से लगातार हुए 13 बम धमाकों ने पूरी मुंबई सहित भारत को हिला कर रख दिया था। इसमें मुंबई स्टॉक एक्सचेंज, एयर इंडि‍या बिल्डिंग, जावेरी बाजार सहित कई बड़ी होटलों को निशाना बनाया गया था। सिलसिलेवार बम धमाकों के इस मामले में टाडा अदालत ने अबू सलेम और करीमुल्ला शेख को उम्र कैद की सजा सुनाई है वहीं ताहिर मर्चेंट, फिरोज अब्दुल राशिद को सजा-ए-मौत यानी फांसी की सजा दी गई है जबकि रियाज सिद्दीको 10 साल की सजा सुनाई गई है। अबू सलेम को 2 लाख रूपए का जुर्माना भी लगाया है। 
 
12 मार्च 1993 को हुए लगातार धमाकों में 257 लोगों की जान चली गई थी और लगभग 700 से ज्यादा घायल हो गए थे वहीं 27 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति नष्ट हुई थी। इस मामले में बीते 26 जून को ही जस्टिस जीए सनप ने अबू सलेम, मुस्तफा डोसा, करीमुल्लाह खान, फिरोज अब्दुल रशीद खान, रियाज सिद्दीकी और ताहिर मर्चेंट को लगातार हुए धमाकों का षडयंत्र रचने का आरोपी माना वहीं एक आरोपी अब्दुल कयूम बरी कर दिया था जबकि एक अन्य आरोपी मुस्तफा डोसा की मौत हो चुकी है।
 
कानून की सीमा कहिए या प्रत्यर्पण संधि के तहत समझौता, जिसके चलते 2005 में पुर्तगाल से संधि के तहत भारत लाए गए अबू सलेम को अधिकतम 25 साल की सजा ही हो सकती है जो हुई। इसके लिए भी भारत ने तीन साल तक अंतर्राष्ट्रीय कानूनी लड़ाई लड़ी थी, तब जाकर अबू सलेम और मोनिका बेदी को लिस्बन से भारत लाने में कामयाबी मिली थी। 2002 में उसे भारत के इसी दबाव के बाद पुर्तगाल में गिरफ्तार किया गया और उस समय भारत के उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने पुर्तगाली लिस्बन अदालत को भरोसा दिया कि भारत को प्रत्यर्पित किए जाने की स्थिति में उसे फांसी की सजा नहीं दी जाएगी। अबू सलेम ने मुंबई हमलों के लिए एके-56 और ग्रेनेड्स को भरूच से मुंबई पहुंचाया, करीमुल्लाह शेख ने डोसा के जरिए हथियारों को लक्ष्य तक पहुंचाया, फिरोज अब्दुल राशिद खान ने हथियारों के जखीरे को एक से दूसरी जगह पहुंचाया, रियाज सिद्दीकी ने हथियारों सलेम के साथ गुजरात से मुंबई पहुंचाए तथा इनके उपयोग में मदद की। जबकि मोहम्मद ताहिर मर्चेंट ने आरोपियों को ट्रेनिंग के लिए पाकिस्तान भेजने में मदद की थी। अबू सलेम पुर्तगाल में गिरफ्तार होने से पहले अमरीका से भाग निकलने में कामयाब रहा जबकि पुर्तगाल में अवैध रूप से घुस जाने की वजह से उसे और मोनिका बेदी को वहां 5 साल की सजा हुई थी। इसके बाद सीबीआई हरकत में आई और भारत के वकील पुर्तगाल गए और मजबूती से अपना पक्ष रखा। तब कहीं जाकर यूनाइटेड नेशन्स कनवेंसन ऑन सप्रेशन ऑफ टेररिज्म 2000 पुर्तगालियो से समझौते के बाद अबू सलेम और मोनिका बेदी को भारत लाया जा सका था। बस यही एक वजह थी, जिसके चलते मुख्य आरोपियों में शामिल अबू सलेम फांसी पर झूलने से बच गया। लेकिन यहां भी दोषी ठहराए जाने काफी पहले ही अबू सलेम ने यूरोपियन कोर्ट ऑफ ह्यूमन राइट्स (ईसीएचआर) में एक याचिका दाखिल कराकर वापस पुर्तगाल भेजे जाने की मांग की थी इस याचिका में उसने भारत में उसकी उपस्थिति और मुकदमें दोनों को ही गलत ठहराया था।
 
गौरतलब यह है कि मुंबई ब्लास्ट प्रकरण में दोषियों को सजा सुनाए जाने का यह दूसरा मामला है जबकि पहला मामला 2007 में ही पूरा हो गया था जिसमें 100 आरोपियों पर दोष सिध्द हुआ था और अभिनेता संजय दत्त भी मुजरिम थे। याकूब को पिछले साल ही फांसी दी शेष बचे आरोपियों पर अलग-अलग मुकदमे इसलिए चले कि क्योंकि ये बाद में गिरफ्तार हुए थे या प्रत्यर्पण के जरिए भारत लाए गए थे। सीबीआई ने माना था मुंबई धमाके वास्तव में 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के बाद बदला लेने के लिए किए गए थे और इसमें सबसे खास बात यह थी कि ये एक ऐसा आतंकी हमला था जिसमें दूसरे विश्वयुद्ध के बाद इतने व्यापक पैमाने पर आरडीएक्स का इस्तेमाल किया गया था। 19 वर्षों बाद 2011 में शुरू हुई इस सुनवाई में इसी 16 जून को 6 आरोपियों को दोषी करार दिए जाने की सजा के साथ अपने अंजाम पर पहुंची। लेकिन गौरतलब यह है कि इसी से जुड़े 33 आरोपी अब भी फरार ही रहे जिनमें मुख्य साजिशकर्ता दाउद इब्राहिम, उसका भाई अनीस इब्राहिम, मुस्तफा दौसा का भाई मो. दौसा और टाइगर मेमन शामिल हैं। इतना तो है कि इस फैसले ने भारतीय न्याय प्रणाली ने जांच एजेंसियों की मेहनत और  कानून के इंसाफ के चलते अपराधियों को फिर मुंह की खिलाई है। शायद इससे एक अच्छा संदेश भी जाएगा कि अपराधी कितना भी बड़ा हो कानून के हाथ उससे भी बड़े हैं और इंसाफ का हथोड़ा चाहे कोई भी हो, सभी पर बराबर चलेगा।
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