शनिवार, 21 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. साहित्य
  3. मेरा ब्लॉग
  4. corona time stories

कोरोना काल की कहानियां : राम विमुख अस हाल तुम्हारा...

कोरोना काल की कहानियां : राम विमुख अस हाल तुम्हारा... - corona time stories
ऊधौ, कर्मन की गति न्यारी...
 
“राम विमुख अस हाल तुम्हारा, रहा न कुल कोऊ रोवन हारा.”
 
रावण वध के पश्चात् उसके शव के पास बैठी अकेली मंदोदरी ने यह कथन विलाप करते हुए कहा था कि ‘राम से विमुख हो कर तुम्हारी ऐसी दुर्दशा हुई कि तुम्हारे शव पर विलाप करने वाला भी कुल में कोई नहीं बचा। जो राम अर्थात् सत्य और नैतिकता से विमुख है वह स्वयं के साथ साथ पूरे परिवार का भी नाश करते हैं। आज कलजुग में भी यही सत्य अपने रूप बदल कर सामने आ रहा है।
 
इतने बड़े घर में वे तेज बुखार में कराह रहे हैं। आज पांचवां दिन हो गया है। कोई पूछने वाला नहीं। उनके बच्चे विदेश में हैं। एक मध्यम वर्गीय संघर्षशील परिवार का कोई सदस्य जब अपनों के कंधों पर बैठ विदेशी सम्पन्नता को पाता है तो उसे वही कंधे कंटीले और कमजोर लगने लगते हैं। धीरे धीरे सभी कंधो को लातें मारकर जलालत के सिंहासन पर बैठ वो खुद को बादशाह समझने लगे।

पड़ोसियों को जो उनके रिश्तेदार भी थे जब वे दिखे नहीं तब तहकीकात की।ये वही लोग थे जिनके साथ इन्होनें उठना-बैठना हमेशा अपनी तौहीन समझा।यहां तक कि इनके पोते होने की खुशी में जब भोजन रखा तब रोड़ पर टाटपट्टी बिछा कर अहसान जताते हुए रिश्तेदारों को निपटाया।और जो थोड़े देरी से आये उन्हें ठंडा ही खाना परोस दिया। न तो ये अपनों से रिश्ते रखते न परायों से। आग्रह मनौव्वल का तो प्रश्न ही नहीं उठता और सम्मान की परिभाषा तो वे लोग कबसे ही भूल चुके थे। सारी बिरादरी इनकी मूर्खताओं का मजाक बनती और ये अपनी शान समझते।
 
शहर के हालत तो किसी से छुपे नहीं हैं। ऐसे में न तो उन्हें अस्पतालों में जगह मिली न ही कोई दवा मिल सकी। इनके और इनके बच्चों के कमाए रुपये, डॉलर कचरे लग रहे थे जिसके दम पर इन्होनें दूर शहर से आई अपनी छोटी बहन को चोटी पकड़ कर, दीवार में उसका सर दे मारा था उसके पति के सामने। केवल वो अपनी मां के घर रुकना चाहती थी, उनसे मिलना चाहती थी। अपनी दूसरी बहन को सरे आम घरों में जा जा कर चरित्रहीन घोषित करते इन्हें जरा लज्जा छू कर भी नहीं गई। एक और बहिन के सारे जेवर धोखे से दबा लिए। आज वही सारे कुकर्म उनकी आंखों में चलचित्र के सामान घूम रहे हैं। बेटा बहू आने तैयार नहीं।
 
बेटी जंवाई भी अपनी मजबूरी बता रहे।पारिवारिक डॉक्टर भी दवाएं लिख कर फारिग हो गए।मुद्दा ये है कि इस भयंकर भयग्रस्त माहौल में दवाओं के लिए लाईनों के दोजख में खुद को झोंके कौन? अस्पतालों का नरक कौन भोगे? किस मुंह से बोले अपने रिश्तेदारों को जिनसे अपने बेटे बहू, बेटी जंवाई को इसलिए नहीं मिलने, रखने दिया कि कहीं कोई रिश्तेदार विदेश से कोई सामान न मंगा ले।ऐसा यही सभी दूर बकते फिरते थे।
 
आज वही रिश्तेदार याद आ रहे हैं। बड़ा सा मकान जो इन्होने मां-बाप का हड़पा, सारी धन-दौलत, सोना संपत्ति का लालच जिसके कारण अपने छोटे भाई को घर से निकाला था। जात समाज ने कितनी थू थू करी थी इनको, धिक्कारा था जब इन्होंने अपने बच्चों की शादी में अपनी ही बहनों को निमंत्रण नहीं दिया था। पर निसड्ले नकटे बने रहे।आंखों पर अहंकार की मोटी पट्टी चढ़ी हुई थी। जिस पर पैसों का काला रंग चढ़ा था।आज ये सब कुछ भी काम नहीं आ रहा।मुंह मांगे पैसों से भी आज वो किसी भी रिश्ते को खरीद नहीं पा रहे।वो हड़पा मकान अस्पताल नहीं बन सकता, पैसे दवाओं में नहीं बदल सकते, धोखे से दबाये हुए धन-सम्पदा से घुटती सांसों को ऑक्सिजन नहीं बना पा रहे।विदेशी बच्चों का घमंड अपनों से इतनी दूर ले जा चुका है कि सिवाय मौत के कुछ नजर नहीं आ रहा।
 
वे दोनों जीवन की उम्मीद छोड़ चुके थे कि उनके घर की घंटी बजी। कुछ लोग उनके दरवाजे पर थे। उनकी मदद करने। जिन्हें उनकी बहनों ने बड़ी मिन्नतें कर के भेजा था। इस सन्देश के साथ कि “चिंता न करें हमें आपकी किसी भी चीज में कोई रूचि या लगाव नहीं। हम तो यूंही खूब मालामाल हैं रिश्तों की और अपनों के प्यार की संपत्ति से।संवेदनाओं और इंसानियत की दौलत से भरपूर हैं हम। और हां...हमारी सबसे बड़ी पूंजी हैं हमारे सत्कर्म और नेक नियति जो आपके पास कभी थी ही नहीं। हमेशा कुबुद्धि सवार रही. और हम यह भी जानते हैं आपके जैसा गरीब, दिवालिया, दरिद्री इस धरती पर आज की तारीख में कोई दूसरा भी नहीं होगा’... 
 
वे निशब्द थे...शब्द सारे मौन थे....वे सोच रहे थे....अपने-पराये कौन थे?   
ये भी पढ़ें
भारत का यश अब मंगल पर होगा वश