शनिवार, 21 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. साहित्य
  3. मेरा ब्लॉग
  4. blog on pulwama attack

पुलवामा : शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि....

पुलवामा : शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि.... - blog on pulwama attack
समूचा देश पुलवामा में हुए आतंकी हमले से स्तब्ध है। हर देशवासी की आंखें नम है। चहुं ओर जहां आतंकियों के इस कायराना कुकृत्य की निंदा हो रही है वहीं इस आतंकी हमले में शहीद हुए 40 वीर जवानों को श्रद्धासुमन भी अर्पित किए जा रहे हैं। 
 
देश का हर नागरिक यथासामर्थ्य अपने शहीदों को विदाई दे रहा है, श्रद्धांजलि दे रहा है। अधिकांश लोग सोशल मीडिया के माध्यम से शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पण कर रहे हैं। राजनीतिक व सामाजिक पृष्ठभूमि से जुड़े व्यक्ति सभागारों व चौक-चौराहों पर श्रद्धांजलि सभा का आयोजन कर मां भारती की सेवा करते हुए शहीद हो चुके वीर सपूतों को श्रद्धांजलि दे रहे हैं। 
 
हमारे देश में श्रद्धांजलि देने का यह सर्वाधिक सुलभ तरीका है, लेकिन क्या यह उन शहीदों के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि है? इस पर आज विचार करना आवश्यक है। जब भी देश में इस प्रकार की घटनाएं होती हैं हम इसी प्रकार बैनर-पोस्टर व सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी श्रद्धांजलि का प्रकटीकरण कर अपने कर्त्तव्य का औपचारिक निर्वहन करते हुए स्वयं को संतुष्ट कर लेते हैं। 
 
क्या हमने कभी इस बात पर विचार किया है कि इस प्रकार सुलभ श्रद्धांजलि व्यक्त कर हम उन शहीदों को ही नहीं अपितु स्वयं को भी धोखा दे रहे हैं। इस प्रकार की श्रद्धांजलि एक आत्मवंचना है। मेरी यह बात आपको निश्चित ही कड़वी लगी होगी किन्तु सत्य सदैव कड़वा होता है। यदि ऐसा नहीं है तो सामान्य दिनों में हमारी दिनचर्या व आचरण अपने देश के प्रति श्रद्धा व प्रेम से परिपूर्ण क्यों नहीं होता? 
 
आख़िर हम उन शहीदों को ही तो श्रद्धांजलि देकर अपनी देशभक्ति का प्रकटीकरण कर रहें हैं जिन्होंने देशसेवा के लिए अपने प्राणों तक को न्यौछावर कर दिया। फ़िर क्यों नहीं हम उनकी शहादत से प्रेरणा लेकर अपनी दैनिक दिनचर्या व आचरण में देशभक्ति व देशसेवा को सम्मिलित करते? 
 
 हम क्यों नहीं अपने राष्ट्र के प्रति निष्ठावान रहते? आप कहेंगे हम तो अपने राष्ट्र के प्रति निष्ठावान है तो मैं आपकी यह गलतफ़हमी दूर किए देता हूं। जब भी देश में कोई आन्दोलन या विरोध प्रदर्शन; जिनमें से अधिकतर निजी स्वार्थ के लिए किए जाते हैं, तो हमारे द्वारा राष्ट्र की सम्पत्ति को कितना नुकसान पहुंचाया जाता है?
 
 सरकारी सम्पत्तियों, राजमार्गों, बसों, रेल इत्यादि में तोड़फ़ोड़-आगजनी यह सब हम ही तो करते हैं। शासकीय योजनाओं में भ्रष्टाचार भी हम ही करते हैं। निष्ठापूर्वक अपना कार्य करने के स्थान पर रिश्वत लेकर कार्य हम करते हैं और सबसे बड़ी बात यह कि देशहित के स्थान पर अपने निजी हित को ध्यान में रखकर अपने वोट की नीलामी भी हम ही करते हैं। फ़िर किस मुंह से हम अपने देशभक्त होने का दंभ भरते हैं? 
 
केवल इसलिए कि हमने शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए अपने वाट्स-अप की डी.पी. में मोमबत्ती की फ़ोटो लगा ली या किसी चौक-चौराहे पर दो मिनट का मौन रखकर तस्वीर खिंचा ली या फ़िर ऊंचे स्वर में 'मुर्दाबाद' के नारे लगाकर दुश्मन देश का पुतला जला दिया। क्या इतने भर से हम देशभक्त कहलाने के अधिकारी हो जाएंगे? 
 
कितने लोग हैं जो केवल स्वदेशी सामान का उपयोग अपने दैनिक जीवन में करते हैं? कितने लोग हैं जो आतंकियों का साथ देने वाले देश की सामग्री का बहिष्कार करते हैं? कितने लोग हैं जो सेना के जवानों के लिए बस या ट्रेन में अपनी सीट छोड़ देते हैं या लाईन में स्वयं पीछे होकर उन्हें आगे कर देते हैं? मेरे देखे शहीदों की जयंती-पुण्यतिथि मनाना व श्रद्धांजलि कार्यक्रम करना अपनी जगह सही है लेकिन अपने शहीदों व राष्ट्र के प्रति सच्ची श्रद्धा व निष्ठा रखना उससे कहीं श्रेष्ठ बात है। 
 
यदि हम अपने शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि देना ही चाहते हैं तो उनसे प्रेरणा लेकर वह कार्य करें जिसके लिए उन्होंने अपने प्राणों तक का बलिदान दे दिया, वह है- देशप्रेम व अपने देश के प्रति निष्ठा। जिस दिन हम एक भी कार्य ऐसा करेंगे जिसका उद्देश्य निजी हित के स्थान पर देशहित होगा केवल उसी दिन हम अपने शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि दे पाएंगे।