गुरुवार, 28 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. साहित्य
  3. मेरा ब्लॉग
  4. blog on married life

रोचक गाथा : गृहस्थ जीवन क्या है?

रोचक गाथा : गृहस्थ जीवन क्या है? - blog on married life
इसे समझाने के लिए मैं आपको एक कहानी के माध्यम से समझाने का प्रयास करता हूं।
 
एक आदमी ने शराब पी ली थी और वह रात को बेहोश हो गया। आदत के वश अपने घर चला आया। पैर चले आए घर लेकिन बेहोश था। घर पहचान नहीं सका।सीढ़ियों पर खड़े होकर पास-पड़ोस के लोगों से पूछने लगा कि मैं अपना घर भूल गया हूं, मेरा घर कहां है, मुझे बता दो?
 
लोगों ने कहा, यही तुम्हारा घर है।उसने कहा, मुझे भरमाओ मत, मुझे मेरे घर जाना है, मेरी बूढ़ी मां मेरा रास्ता देखती होगी। और कोई कृपा करो, मुझे मेरे घर पहूंचा दो।शोरगुल सुनकर उसकी बूढ़ी मां भी उठ आई। दरवाजा खोलकर उसने देखा कि उसका बेटा चिल्ला रहा है, रो रहा है कि मुझे मेरे घर पहुंचा दो। उसने उसके सिर पर हाथ रखा और कहा, बेटा यह तेरा घर है और मैं तेरी मां हूं।

 
उसने कहा, हे बुढ़िया, तेरे ही जैसी मेरी बूढ़ी मां है और वह मेरा रास्ता देखती होगी। मुझे मेरे घर का रास्ता बता दो। पर ये सब लोग हंस रहे हैं, कोई मुझे घर का रास्ता नहीं बताता। मैं कहां जाऊं? मैं कैसे अपने घर जाऊं?
 
तब एक आदमी ने, जो उसके साथ ही शराब पीकर लौटा था, कहा कि ठहर, मैं बैलगाड़ी लेकर आता हूं और तुझे तेरे घर पहूंचा देता हूं। तो उस भीड़ में से लोगों ने कहा कि पागल तू इसकी बैलगाड़ी में मत बैठ जाना, नहीं तो घर से और दूर निकल जाएगा, क्योंकि तू घर पर ही खड़ा हुआ है। तुझे कहीं भी नहीं जाना है। सिर्फ तुझे जागना है, सिर्फ होश में आना है और तुझे पता चल जाएगा कि तू अपने घर पर खड़ा है। और किसी की बैलगाड़ी में मत बैठ जाना नहीं तो जितना-जितना खोज पर जाएगा, उतना ही दूर निकल जाएगा।

 
हम सब वहीं खड़े हुए हैं, जहां से हमें कहीं भी जाना नहीं है लेकिन हमारा चित्त एक ही तरह की भाषा समझता है- जाने की, दौड़ की, लालच की, पाने की, खोज की, उपलब्धि की। तो वह जो हमारा चित्त एक तरह की भाषा समझता है, उसे ही गृहस्थ कहते हैं।

असल में अगर हम ठीक से समझें तो जो पाने की, खोजने की, पहुंचने की लोभ (greed) की भाषा समझता है ऐसे चित्त का नाम ही गृहस्थ है। और गृहस्थ का कोई मतलब नहीं।