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...तो क्या उपचुनाव तय करेगा शिवराज की कुर्सी?

...तो क्या उपचुनाव तय करेगा शिवराज की कुर्सी? - BJP, Shivraj singh chauhan, cm mp, mp cm, by election
मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह चौहान मध्यप्रदेश में आगामी समय में होने वाले लोकसभा एवं विधानसभा उपचुनावों के लिए कमर कसकर अपने अभियान में जुट गए हैं।

मध्यप्रदेश में नन्दकुमार सिंह चौहान के निधन से रिक्त हुई लोकसभा सीट खण्डवा व विधानसभाओं में जुगुलकिशोर बागरी के देहावसान के कारण रैगांव,कांग्रेस विधायक बृजेंद्र सिंह राठौर की निवाड़ी जिले की सीट पृथ्वीपुर व कांग्रेस से ही अन्य विधायक कलावती भूरिया के निधन के बाद अलीराजपुर की जोबट सीट रिक्त हो गई थी।

निवाड़ी (पृथ्वीपुर) व जोबट जहां कांग्रेस की सीट थी, वहीं रैगांव भाजपा की लगभग तीन दशक से अधिक समय की परम्परागत सीट है। शिवराजसिंह चौहान उपचुनाव वाले क्षेत्रों में 'जनदर्शन' के सरकारी कार्यक्रम द्वारा आगामी चुनाव के लिए मतदाताओं को रिझाने में लगे हुए हैं। जब तक चुनाव की तिथियों की घोषणा नहीं हो जाती और राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा आचार संहिता नहीं लग जाती है, तब तक शिवराज सरकार ने उपचुनाव क्षेत्रों के लिए सरकारी कोषागार को आंख बन्द कर खोल दिया है। शिवराज सिंह इसे भले जनदर्शन कहते हैं किन्तु यह 'जनदर्शन' न होकर 'मतदाता आकर्षण' है।

भाजपा व मुख्यमन्त्री के लिए ये उपचुनाव : भाजपा व मुख्यमन्त्री के लिए ये उपचुनाव प्रतिष्ठा और जनता के बीच उनकी स्वीकार्यता की अग्निपरीक्षा हैं, साथ ही ये उपचुनाव सिन्धिया खेमें के भाजपा में विलय के उपरान्त हुए उपचुनावों के बाद दो हजार तेईस के आगामी विधानसभा चुनावों के भविष्य को तय करने वाले हो सकते हैं। ऐसे में भाजपा का प्रयास यही रहेगा कि वह येनकेन प्रकारेण इन सीटों में विजय प्राप्त करने में सफल रहे।

ऐसे में भाजपा व शिवराज सिंह चौहान : ऐसे में भाजपा व शिवराज सिंह चौहान कोई भी अवसर नहीं गवांना चाहते,क्योंकि दो हजार अठारह के विधानसभा चुनावों से पहले मुंगावली, कोलारस व चित्रकूट उपचुनावों ने कांग्रेस को संजीवनी देने और भाजपा को विपक्ष के तौर पर बैठाने में अहम भूमिका निभाई थी। भले, ही इन उपचुनावों में हार या जीत से भाजपा की कुर्सी पर कोई खतरा नहीं उत्पन्न होना है। किन्तु दमोह उपचुनाव की हार के जख्म में अभी भरे नहीं है,इसलिए उन जख्मों को भुलाने के लिए इन उपचुनावों को जीतना शिवराज व भाजपा की नाक बचाने के सवाल बने हुए हैं।

मुख्यमन्त्री के चेहरे में हुए बदलाव भी शिवराज सिंह की नींद उड़ाए हुए हैं : वर्तमान में शिवराज के इस प्रकार एक्टिव होने के पीछे कई सारे प्रश्न एवं भीतरखाने की राजनीति के रहस्य भी छुपे हुए मालूम पड़ते हैं।
बीते तीन-चार महीनों में कर्नाटक, उत्तराखंड व हाल ही में गुजरात में मुख्यमन्त्री के चेहरे में हुए बदलाव भी शिवराज सिंह की नींद उड़ाए हुए हैं। उनकी आए दिनों दिल्ली से भोपाल, भोपाल से दिल्ली के लिए होने वाली यात्रा कई सारी राजनैतिक आशंकाओं को जन्म देती हैं। चूंकि सिन्धिया खेमें के भाजपा में शामिल होने के बाद भाजपा में सन्तुलन की स्थिति के लिए शिवराज को मुख्यमन्त्री भले ही चुन लिया गया है,किन्तु उनके खिलाफ भी भाजपा में असंतुष्टों की एक लम्बी फौज है।

शिवराज के लिए 'करो या मरो' जैसी स्थिति : हालांकि भाजपा के सांगठनिक अनुशासन के आगे यह उतना मुखर नहीं हो पाता,किन्तु अपने साथ कई सारी आशंकाएं जरूर समेटे रहता है। शिवराज जिस गति व स्फूर्ति से इन उपचुनाव क्षेत्रों में स्वयं सक्रियता दिखलाते हुए आगामी उपचुनाव में अपनी पार्टी के लिए व्यापक जनसमर्थन जुटाने में लगे हुए हैं। उससे क्या ऐसा नहीं लगता है कि जैसे शिवराज के लिए भाजपा संगठन द्वारा 'करो या मरो' जैसी स्थिति उत्पन्न कर दी गई हो? और उन्हें यह स्पष्ट संकेत दे दिया गया हो कि- यदि उपचुनाव में ये सीटें जीतने में आप सफल नहीं होते हैं,तो मुख्यमन्त्री का चेहरा बदलने में विचार किया जावेगा।

हालांकि शिवराज मप्र में दीर्घावधि तक मुख्यमन्त्री रहने और लीक से हटकर 'मामा' वाली छवि के अनुरूप भले ही चुनाव के समय ही क्यों न हो। लेकिन समूचे म.प्र. के कोने-कोने तक अपने कार्यकाल में स्वयं पहुंचे हैं। फिर भी सम्भव है कि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व द्वारा दिए गए संकेतों को गलत सिध्द करने के लिए वे अपने चुनावी अभियान-भविष्य बचाओ अभियान में तत्परता के साथ जुट गए हैं।

ऐसा केवल उपचुनाव में ही क्यों हो रहा है?
बात के मुख्य केन्द्र में पुनश्च आते हुए- शिवराज उपचुनाव क्षेत्रों में 'जनदर्शन' के दौरे पर हैं। उन्होंने जल्दी ही जल्दी रैगांव में दो बार अपने दौरे पूरे कर लिए। निवाड़ी की पृथ्वीपुर सीट में जनदर्शन के कार्यक्रम में सीएमओ व उपयन्त्री का फैसला ऑन द स्पॉट करते हुए -निलम्बन करने,जांच के आदेश देने से नहीं चूक रहे हैं। अभिप्राय यह है कि शिवराज जनता को यह विश्वास दिलाने का प्रयास कर रहे हैं कि वे पूरी तरह से जनहितैषी और सख्त तेवर अपनाते हुए सुशासन के लिए प्रतिबद्ध हैं। किन्तु ऐसा केवल उपचुनाव में ही क्यों हो रहा है? क्या सुशासन और कर्त्तव्यपारायणता का पाठ; बिना चुनाव के उन्हें या अन्य नेताओं को याद नहीं आता है?

अधिकारियों की जनता के सामने क्लास : वे उपचुनाव वाली विधानसभाओं, संसदीय क्षेत्रों में लगातार विकास की बयार बहाते हुए हजारों करोड़ों की घोषणाएं कर रहे हैं। अधिकारियों की जनता के सामने क्लास ले रहे हैं। और वन-टू-वन चर्चा करते हुए जनसमस्याओं का निराकरण करने के कठोर आदेश दे रहे हैं। रैगांव में ही उन्होंने अपने विगत दौरे की लगभग बारह घोषणाओं को स्वीकृति भी दिला दी है। और इस बार भी चिन्हित गांवों में घोषणाओं का बम्पर पिटारा खोल दिया है।

शिवराज 'जनदर्शन' वाले क्षेत्रों के मतदाताओं को अपने पाले में करने के लिए कोई भी कदम उठाने से नहीं चूक रहे हैं। वे जहां भी जाते हैं आसपास के क्षेत्रों से उनके मन्त्रिमण्डल के सदस्य,जिले के सभी विधायक,सांसद,कलेक्टर व समस्त विभागों के अधिकारी उनके साथ कदमताल करने में लगे रहते हैं।

केवल यस! सर की ही हाजिरी : कलेक्टर व सम्बन्धित विभाग के अधिकारी- शिवराज व जनता के साथ की प्रश्नोत्तरी करते हुए - केवल यस! सर की ही हाजिरी लगाते हैं। वे जनता की समस्याएं सुन रहे हैं और सम्बन्धित ग्रामों, कस्बों के सभी आंकड़े लेकर राशन पात्रता पर्ची,आवास, सड़क,पानी,बिजली, नाली,स्कूल, कॉलेज व अन्य लोकलुभावन घोषणाएं त्वरित करते हुए अधिकारियों को शीघ्रता से उन पर अमल लाने के व स्वीकृति देते हुए पूर्णता देने के सख्त निर्देश दे रहे हैं।उनके दौरे वाले क्षेत्रों में रातोंरात सभी ट्रान्सफार्मर बदल जाते हैं, हैण्डपम्प व अन्य सामान्य समस्याएं जिनके लिए आम आदमी दर- दर भटकता है। उन्हें पूरा कर दिया जाता है।

और मुंह फेरकर झांकने तक नहीं जा रहे हैं : जहां 'उपचुनाव' नहीं होना है,वहां शिवराज, उनकी सरकार, पार्टी के विधायक, सांसद, पदाधिकारी व प्रशासन के अधिकारी- कर्मचारी मुंह फेरकर झांकने तक नहीं जा रहे हैं। उन्हें जनता के दु:ख दर्द से कोई सहानुभूति नहीं है और न जनता के प्रति उनका कोई उत्तरदायित्व है। प्रदेश भर का सामान्य आदमी व किसान अघोषित बिजली कटौती,लो-वोल्टेज व ट्रॉन्सफार्मर जल जाने के कारण कई महीनों बिजली विभाग और अधिकारियों के आगे नाक रगड़कर थक जाता है। किसानों की फसल बिजली आपूर्ति न हो पाने के कारण सूख जाती हैं, लेकिन किसानों की कहीं सुनवाई नहीं होती है।

केवल आंकड़ों में तरक्की : पटवारी, तहसीलदार, कलेक्टर, पीएचई, एमपीईबी सहित नागरिकों को मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करवाने के जिम्मेदार अधिकारी -कर्मचारी अपनी मदमस्त नींद में सोते हुए जनता को अपनी डेहरी से ही भगा देते हैं। रिश्वत का बोलबाला ,शिक्षा व्यवस्था की धरातलीय अराजकता, मंहगाई, बेरोजगारी, स्वास्थ्य-उपचार, सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार व पात्र हितग्राहियों को समय पर लाभ न मिलने सहित आधारभूत ढांचों की कमीं व निरंकता से प्रदेश जूझ रहा है। लेकिन इन मुद्दों की कहीं कोई सुनवाई नहीं है, जनता अधिकारियों के इस ऑफिस से उस ऑफिस का चक्कर काटने के लिए मजबूर है। और सुशासन व विकास के दावे केवल आंकड़ों में तरक्की पा! रहे हैं।

सुराज या सुशासन आने में : ऐसा ही कुछ दो हजार बीस के अठ्ठाईस सीटों के विधानसभा उपचुनाव में नवाचार करते हुए 'प्रत्येक विधानसभा का मेनीफेस्टो' जारी किया गया था,किन्तु चुनाव के बाद वह केवर 'मेनीफेस्टो' तक ही सिमट कर रह गया। इन सभी विश्लेषणों से जो बात निकलकर आती है,वह यह कि जिस प्रकार से शिवराज उनकी सरकार, भाजपा, प्रशासन उपचुनाव के क्षेत्रों की समस्याओं का तुरन्त निराकरण कर रहे हैं और विकास कार्यों की घोषणा कर रहें। क्या उसी प्रकार समूचे प्रदेश के गांव-गांव,कस्बे, शहरों की समस्याओं को दूर करने और अनिवार्य एवं आवश्यक सुविधाओं, आधारभूत संरचनाओं की स्थापना के लिए तत्परता व प्रतिबद्धता दिखलाते हुए काम किया जाए तो सुराज या सुशासन आने में एक वर्ष का भी समय नहीं लगेगा। यह ठीक बात है कि उपचुनाव जीतने के लिए काम करें,लेकिन इसके अलावा पूरे प्रदेश की उपेक्षा करना किस दृष्टिकोण से सही है? 

उपचुनाव में छटपटाहट : उपचुनाव में जिस प्रकार की छटपटाहट देखी जा रही है, यदि इसे राजनीति की परिपाटी बना लिया जाए और 'जनता-सरकार-प्रशासन' के बीच बनी गहरी खाई को पाट दिया जाए तो स्वस्थ, लोकल्याणकारी राज्य व व्यवस्था का निर्माण आसानी से किया जा सकता है। प्रशासनिक अधिकारियों कर्मचारियों को अपनी अन्तरात्मा में हाथ रखकर यह सवाल खुद से पूछना चाहिए कि-यदि सरकार की उनकी नौकरी में भृकुटि टेढ़ी न हो,तो क्या वे जनता के लिए इस प्रकार से पेश आते?जैसा कि शिवराज व उनके मन्त्रियों के दौरे में अपना-अपना नम्बर बढ़ाने के लिए अपनी नाटकीय पाखण्ड से भरी कर्मठता का परिचय दे रहे हैं। सरकारों को जागना चाहिए और उनके सांसदों,विधायकों, प्रशासनिक अधिकारियों को अपने कार्यालय में कम और जनता के बीच अधिक जाकर निष्ठावान होकर काम करना चाहिए।

(आलेख में व्‍यक्‍त विचार लेखक के निजी अनुभव हैं, वेबदुनिया का इससे कोई संबंध नहीं है।)
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