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Written By WD Feature Desk
Last Modified: सोमवार, 5 मई 2025 (18:22 IST)

डाकू का पोता UPSC क्रेक कर बना अधिकारी, जानिए देव तोमर की प्रेरणादायक कहानी

Dev Tomar
Dev Tomar, UPSC: चंबल की घाटियां, एक ऐसा नाम सुनते ही जेहन में बागियों और बंदूकों की तस्वीर उभर आती है। दशकों तक इस क्षेत्र ने अपराध और विद्रोह की स्याह कहानियों को जिया है। लेकिन इसी चंबल की मिट्टी ने एक ऐसी शख्सियत को जन्म दिया है, जिसने अपनी मेहनत और लगन से न केवल अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि की नकारात्मक छवि को धुंधला किया, बल्कि सफलता का एक नया इतिहास भी रचा है। हम बात कर रहे हैं देव तोमर की। देव के दादा चम्बल के कुख्यात डाकू थे लेकिन उन्होंने प्रतिष्ठित UPSC परीक्षा को उत्तीर्ण कर अधिकारी बनकर दिखाया है। उनकी यह कहानी न केवल प्रेरणादायक है, बल्कि यह इस बात का भी जीवंत प्रमाण है कि दृढ़ संकल्प और शिक्षा के माध्यम से किसी भी पृष्ठभूमि की बेड़ियों को तोड़ा जा सकता है।

दादा थे चम्बल के कुख्यात डाकू
देव तोमर का नाता चंबल के कुख्यात डाकू रामगोविंद सिंह तोमर से है। उनके दादा, रामगोविंद सिंह तोमर, कभी चंबल के बीहड़ों में अपनी दहशत के लिए जाने जाते थे। देव के लिए यह विरासत आसान नहीं थी। बचपन से ही उन्हें अपने दादा के अतीत के कारण लोगों के तानों और नकारात्मक टिप्पणियों का सामना करना पड़ा। समाज का एक वर्ग उन्हें उसी नजर से देखता था, जिस नजर से उनके दादा को देखा जाता था। यह मानसिक दबाव किसी भी बच्चे के लिए असहनीय हो सकता है, लेकिन देव ने इसे अपनी कमजोरी नहीं, बल्कि अपनी ताकत बनाया।

पिता ने दिखाया रास्ता
देव के जीवन में एक मजबूत स्तंभ की तरह उनके पिता, बलवीर सिंह तोमर खड़े रहे। बलवीर सिंह ने अपने पिता के विपरीत, शिक्षा को अपना हथियार बनाया। अपनी अथक मेहनत और समर्पण के बल पर वे एक सरकारी स्कूल में प्रिंसिपल के पद तक पहुंचे। उन्होंने देव को हमेशा शिक्षा के महत्व को समझाया और उन्हें प्रेरित किया कि वे अपने दादा के अतीत को अपनी पहचान न बनने दें। पिता की यह प्रेरणा देव के लिए एक मार्गदर्शक की तरह थी। उन्होंने देखा कि कैसे शिक्षा के दम पर सम्मान और सफलता हासिल की जा सकती है।

सिविल सेवा के लिए ठुकराया 88 लाख का पैकेज
उनकी प्रतिभा का लोहा तब माना गया जब उन्होंने प्रतिष्ठित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT), रोपड़ में दाखिला हासिल किया। यह उनके अथक परिश्रम और तीव्र बुद्धि का प्रमाण था। IIT जैसे संस्थान में पढ़ना अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है, लेकिन देव यहीं नहीं रुके। उन्होंने अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी लगन से की और उत्कृष्ट प्रदर्शन किया।

उनकी शैक्षणिक प्रतिभा को देखते हुए, उन्हें नीदरलैंड की एक प्रतिष्ठित कंपनी से सालाना 88 लाख रुपये का आकर्षक नौकरी प्रस्ताव मिला। यह किसी भी IIT स्नातक के लिए एक सपने जैसा अवसर होता है। लेकिन देव ने कुछ और ही सोच रखा था। उनके मन में हमेशा से अपने देश और समाज के लिए कुछ करने की इच्छा थी। इसलिए, उन्होंने एक ऐसा फैसला लिया जिसने सभी को हैरान कर दिया। उन्होंने नीदरलैंड के उस शानदार नौकरी प्रस्ताव को ठुकरा दिया और UPSC की तैयारी में जुट गए। यह एक जोखिम भरा निर्णय था, लेकिन देव अपने लक्ष्य के प्रति दृढ़ थे। उन्होंने 2019 से ही UPSC परीक्षाओं के लिए तैयारी शुरू कर दी थी और आखिरकार 2025 में उनकी मेहनत रंग लाई और उन्होंने UPSC की सिविल सेवा परीक्षा में 629वीं रैंक हासिल की।

पत्नी ने दिया हर कदम पर साथ, नौकरी कर संभाली घर की जिम्मेदारी :
देव की सफलता की इस यात्रा में उनकी पत्नी का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा। UPSC जैसी कठिन परीक्षा की तैयारी में आर्थिक स्थिरता एक बड़ी चुनौती होती है। देव की पत्नी ने नौकरी कर उन्हें आर्थिक रूप से सहारा दिया, ताकि वे बिना किसी चिंता के अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित कर सकें। पत्नी का यह त्याग और समर्थन देव के हौसले को और मजबूत करता गया।

देव तोमर की UPSC में सफलता कोई रातों-रात मिली उपलब्धि नहीं है। इसके पीछे वर्षों की कड़ी मेहनत, अटूट लगन और विपरीत परिस्थितियों से लड़ने का जज्बा छिपा हुआ है। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा में भी उत्कृष्ट प्रदर्शन किया और हमेशा सीखने के लिए उत्सुक रहे। UPSC की तैयारी के दौरान उन्होंने घंटों तक किताबों में डूबे रहकर अपने ज्ञान को बढ़ाया और परीक्षा के प्रारूप को समझा। उन्होंने सही मार्गदर्शन और सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ अपनी तैयारी को जारी रखा।

देव की कहानी उन युवाओं के लिए एक प्रेरणास्रोत है, जो अपनी पृष्ठभूमि या परिस्थितियों के कारण खुद को कमजोर महसूस करते हैं। यह कहानी सिखाती है कि अतीत को बदला नहीं जा सकता, लेकिन भविष्य को अपने हाथों से संवारा जा सकता है।
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