गुरुवार, 21 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. »
  3. वेबदुनिया विशेष 08
  4. »
  5. मातृ दिवस
Written By WD

बस एक माँ है जो ख़फ़ा नहीं होती

बस एक माँ है जो ख़फ़ा नहीं होती -
- मुनव्वर राना

ND
सिरफिरे लोग हमें दुश्मने जाँ कहते हैं
हम जो इस मुल्क की मिट्टी को भी माँ कहते हैं

मुझे बस इसलिए अच्छी बहार लगती है
कि ये भी माँ की तरह खुशग्वार लगती है

मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू
मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना

लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती
बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती

किसी को घर मिला हिस्से में या दुकाँ आई
मैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई

इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत गुस्से में होती है तो रो देती

ये ऐसा कर्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता
मैं जब तक घर न लौटू मेरी माँ सजदे में रहती है

खाने की चीज़ें माँ ने जो भेजी थीं गाँव से
बासी भी हो गई हैं तो लज्जत वही रही

बरबाद कर दिया हमें परदेस ने मगर
माँ सबसे कह रही है बेटा मज़े में है

लिपट जाता हूँ माँ से और मौसी मुस्कुराती है
मैं उर्दू में ग़ज़ल कहता हूँ हिन्दी मुस्कुराती है।