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तुम सर्वस्व हो !
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शैली माँ, तुम्हारी स्मृति,प्रसंगवश नहींअस्तित्व है मेरा।धरा से आकाश तकशून्य से विस्तार तक।कर्मठता का अक्षय दीपमंत्रोच्चार सा स्वरअनवरत प्रार्थनारत मनजीवन यज्ञ में स्वत: समिधा बनपुण्य सब पर वार।अवर्णनीय, अवर्चनीयतुम सर्वस्व होसृष्टि हो मेरी !