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Written By Author विकास सिंह
Last Updated : शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2022 (16:00 IST)

मणिपुर विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के कांटे के मुकाबले के साथ दांव पर दिग्गजों की प्रतिष्ठा

भाजपा ने एन बीरेन सिंह पर साफ की स्थिति, कांग्रेस के नैय्या ओकराम इबोबी सिंह के सहारे

मणिपुर विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के कांटे के मुकाबले के साथ दांव पर दिग्गजों की प्रतिष्ठा - Tight contest between BJP and Congress in Manipur Assembly Elections
देश में हो रहे पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में पूर्वोत्तर का राज्य मणिपुर भी शामिल है। 60 विधानसभा के साथ भले ही मणिपुर एक छोटा राज्य माना जाता है लेकिन यहां पर चुनावी मुकाबला काफी बड़ा है। भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे के मुकाबले वाले मणिपुर में पांच साल से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने वाले एन बीरेन सिंह और 15 साल तक कांग्रेस के मुख्यमंत्री रहे ओकराम इबोबी सिंह की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। राज्य में 60 सीटों पर दो चरणों में 28 फरवरी और 5 मार्च को मतदान होना है।
 
भाजपा के सामने किला बचाने की चुनौती-ऐसे में जब मणिपुर में मतदान में अब जब 10 दिन से भी कम का समय शेष बचा है राज्य दोनों प्रमुख दलों भाजपा और कांग्रेस ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। गुरुवार को भाजपा ने अपना घोषणा पत्र जारी करते हुए कई लोकलुभावन वादे किए। भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में हर आयु वर्ग के वोटरों को लुभाने के लिए कई वादे करने के साथ मुफ्त स्कूटी और मुफ्त सिलेंडर का दांव भी चला है।

इसके साथ ही भाजपा ने चुनाव के दौरान ही साफ कर दिया है कि अगर भाजपा सत्ता में लौटती है तो मौजूदा मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह दोबारा सरकार का चेहरा होंगे। पांच साल तक सत्ता में रहने भाजपा को अपने पूर्वोत्तर के इस किले को बचाने में एड़ी चोटी को जोर लगाना पड़ रहा है। इस बार के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 40 सीटों पर जीत का लक्ष्य रखने के साथ अपने दम पर सरकार बनाने की हुंकार भरी है। भाजपा की पूरी कोशिश है कि इस बार उसे बैसाखियों पर टिकी सरकार न बनानी पड़ी।

सत्ता में वापसी के लिए कांग्रेस का दांव- वहीं कांग्रेस ने चुनाव से ठीक पहले छह छोटे दलों के साथ गठबंधन कर भाजपा के लिए चुनौतियां काफी बढ़ा दी है। ‘मणिपुर प्रोग्रेसिव सेक्युलर अलायंस’ (MPSA) नाम से बने गठबंधन में कांग्रेस, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा), मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा), फारवर्ड ब्लॉक, आरएसपी और जेडी(एस) शामिल है। मणिपुर में कांग्रेस की सत्ता में वापसी का जिम्मा काफी कुछ पूर्व मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह पर ही टिका है जो 15 साल तक राज्य की बागडोर संभाल चुके है। हलांकि कांग्रेस ने इस बार चुनाव में सीएम चेहरा का एलान नहीं किया है। 

वहीं मणिपुर में भाजपा और कांग्रेस से साथ-साथ ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल भी कुछ सीटों पर मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश कर ही है। हलांकि चुनाव से ठीक पहले तृणमूल कांग्रेस के एकमात्र विधायक तोंग्ब्राम रविंद्र सिंह भाजपा में शामिल हो गए थे।

क्या है चुनावी मुद्दा- सामरिक रूप से बेहद संवेदनशील माने जाने वाले मणिपुर में कानून व्यवस्था और अफस्पा (Armed Forces (Special Powers) Act) कानून को वापस लिया जाना मुख्य मुद्दा है। पड़ोसी राज्य मिजोरम में अफस्पा पर बवाल होने के बाद मणिपुर में चुनाव से ठीक पहले अफस्पा को हटाने की मांग ने जोर पकड़ लिया था जो अब मुख्य चुनावी मुद्दा बन गया है। कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में इसे शामिल करते हुए एलान किया है कि सत्ता में आने पर वह अफस्पा कानून को हटाएगी। बेहद अशांत रहने वाले राज्य में शांति स्थापित करके उसको विकास की मुख्य धारा से जोड़ना भी एक प्रमुख  चुनावी मुद्दा है।
 
2017 के चुनाव की दिलचस्प कहानी-मणिपुर का चुनावी इतिहास भी खासा दिलचस्प है। लगातार 15 साल सत्ता में रहने वाली कांग्रेस 2017 के विधानसभा चुनाव में 28 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी और मैजिक नंबर से केवल तीन विधायक दूर थी लेकिन वह सरकार नहीं बना पाई थी। वहीं भाजपा 21 सीटें के साथ क्षेत्रीय दलों के सहयोग के साथ सरकार बनाने में सफल हो गई थी। पांच साल तक सत्ता में रही भाजपा ने अपने को मजबूत करने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ी और 2017 में 28 विधायकों के साथ जीती कांग्रेस के पास आज 13 विधायक ही शेष बचे है। 
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