महाभारत के 2 दासी पुत्र भी राजकुमार और कौरव क्यों कहलाए और क्यों नहीं लड़ा कुरुक्षेत्र का युद्ध
Mahabharata 2024: गांधारी के पुत्रों को कौरव पुत्र कहा गया लेकिन उनमें से एक भी कौरववंशी नहीं था। धृतराष्ट्र और गांधारी के 99 पुत्र और एक पुत्री थीं जिन्हें कौरव कहा जाता था। गांधारी ने वेदव्यास से पुत्रवती होने का वरदान प्राप्त कर किया था। इस वरदान के चलते ही गांधारी को 99 पुत्र और एक पुत्री मिली थीं। उक्त सभी संतानों की उत्पत्ति 2 वर्ष बाद कुंडों से हुई थी। गांधारी की बेटी का नाम दु:शला था। गांधारी जब गर्भवती थी तब धृतराष्ट्र ने अन्य 1 महिला के साथ रात बिताई थी। इसके कारण 1 पुत्र का जन्म हुआ।
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युयुत्सु: गांधारी जब गर्भवती थी तब धृतराष्ट्र की सेवा आदि कार्य करने के लिए एक वणिक वर्ग की दासी रखी गई थी। धृतराष्ट्र ने उस दासी से ही सहवास कर लिया। सहवास के कारण दासी भी गर्भवती हो गई। उस दासी से एक पुत्र उत्पन्न हुआ जिसका नाम युयुत्सु रखा गया।
युयुत्सु एक धर्मात्मा था, इसलिए दुर्योधन की अनुचित चेष्टाओं को बिल्कुल पसन्द नहीं करता था और उनका विरोध भी करता था। इस कारण दुर्योधन और उसके अन्य भाई उसको महत्त्व नहीं देते थे और उसका हास्य भी उड़ाते थे। युयुत्सु ने महाभारत युद्ध रोकने का अपने स्तर पर बहुत प्रयास किया था लेकिन उसकी नहीं चलती थी। जब युद्ध प्रारंभ हुआ तो पहले तो वह कौरवों की ओर ही था। लेकिन युधिष्ठिर के कहने पर उन्होंने एन वक्त पर पाला बदल लिया था।
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अपने खेमे में आने के बाद युधिष्ठिर ने एक विशेष रणनीति के तहत युयुत्सु को सीधे युद्ध के मैदान में नहीं उतारा बल्कि एक महत्वपूर्ण कार्य सौंपा। युधिष्ठिर जानते थे कि वह इस कार्य में सबसे योग्य है। युधिष्ठिर ने उसकी योग्यता को देखते हुए उसे योद्धाओं के लिए हथियारों और रसद की आपूर्ति व्यवस्था का प्रबंध देखने के लिए नियुक्त किया। पांडवों की 7 अक्षौहिणी (9 लाख के आसपास) सेना थी। युयुत्सु ने अपने इस दायित्व को बहुत जिम्मेदारी के साथ निभाया और अभावों के बावजूद पांडव पक्ष को हथियारों और रसद की कमी नहीं होने दी।
विदुर: शांतनु से विवाह करने के पूर्व सत्यवती ने अपनी कुंवारी अवस्था में ऋषि पराशर के साथ सहवास कर लिया था जिससे उनको वेदव्यास नामक एक पुत्र का जन्म हुआ था। वे अपने इसी पुत्र से अम्बिका और अम्बालिका के साथ संयोग करने का कहती है। अंबिका से धृतराष्ट्र और अंबालिका से पांडु का जन्म हुआ जबकि एक दासी से विदुर का।
सबसे पहले बड़ी रानी अम्बिका और फिर छोटी रानी अम्बालिका गई, पर अम्बिका ने उनके तेज से डरकर अपने नेत्र बंद कर लिए जबकि अम्बालिका वेदव्यास को देखकर भय से पीली पड़ गई। वेदव्यास लौटकर माता से बोले, 'माता अम्बिका को बड़ा तेजस्वी पुत्र होगा किंतु नेत्र बंद करने के दोष के कारण वह अंधा होगा जबकि अम्बालिका के गर्भ से पाण्डु रोग से ग्रसित पुत्र पैदा होगा।'
यह जानकर के माता सत्यवती ने बड़ी रानी अम्बिका को पुनः वेदव्यास के पास जाने का आदेश दिया। इस बार बड़ी रानी ने स्वयं न जाकर अपनी दासी को वेदव्यास के पास भेज दिया। दासी बिना किसी संकोच के वेदव्यास के सामने से गुजरी। इस बार वेदव्यास ने माता सत्यवती के पास आकर कहा, 'माते! इस दासी के गर्भ से वेद-वेदांत में पारंगत अत्यंत नीतिवान पुत्र उत्पन्न होगा।' इतना कहकर वेदव्यास तपस्या करने चले गए।...अम्बिका से धृतराष्ट्र, अम्बालिका से पाण्डु और दासी से विदुर का जन्म हुआ। तीनों ही ऋषि वेदव्यास की संताने थीं।